संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Sunday, March 7, 2010

लोन ले लो, लोन

लोन ले लो,,,,,,,,लोन
     आजकल चारों तरफ फाईनेन्स कम्पनियों, बैंकों, सरकारों का मिश्रीघुला शोर सुनाई देता है ‘आओ बाबू, आओ अंकल, आओ अन्टी, आओ जवान, आओ विद्यार्थियों, आओ, आओ, और आकर ‘लोन‘ ले जाओ।  नौकरी करते हो, तो सैलेरी सर्टिफिकेट ले आओ, बिजनेसमैन हो, तो इनकमटेक्स रिर्टन की कॉपी ले आओ, पेंशनर हो तो पी पी ओ ले आओ, गृहिणी हो तो पतिदेव की प्यार से आपके नाम खरीदी गई जमीन, मकान के कागजात ले आओ, और भैये, कैसे भी करो पर लोन ले जाओ।   चुकाने की चिन्ता अभी क्यों करते हो ? वो तो हम वसूल कर ही लेंगे, ब्याज सहित, आखिर धन्धे की बात है ।‘‘ 
जिस प्रकार अमृत मंथन के बाद विष्णु ने मोहिनीरूप धर कर असुरों को ठगा था, वैसे ही ये लोनदाता कभी ‘सपनों का अपना घर‘ कभी ‘बच्चों को एस्ट्रोनेट, सिंगर, क्रिकेटर बनाने का गुड़ लेकर‘ रिटायरमेंट के नाम से डरा कर आम आदमी को अपनी ओर बुलाते हैं । जो आम आदमी मुश्किल से ही कभी स्कूटर खरीद पाता था, उसे महलों के ख्वाब हकीकत मंे बदलने के प्रलोभन ये रोकड़दाता दे रहे हैं । अब कोई समझदार आदमी इनसे पूछे कि भैयाजी, अभी दस पांच साल पहले तक तो लोन लेने के लिए बैंकों के चक्कर लगाते लगाते जूते घिस जाते थे, फिर ये अचानक आपको हम गरीबों पर नजरें इनायत करने की क्या सूझी । तो इनके पास जवाब हो ना हो, अपुन के पास है ।
अपने मन अंकल हैं ना, नहीं समझे, अरे पीएम मनमोहन सिंह जी, हां, उन्होंने आम आदमी के मन की बात बहुत पहले ही समझ ली थी । मन अंकल ने बड़े मन से अपने मौनी बाबा प्रधानमंत्री नरसिंम्हाराव जी के विचारों के आयातित गुब्बारों में लिब्रलाईजेशन की हवा भरी । इन गुब्बारों को पिछडे़ भारत के आकाश में छोड़े थे। अपने वित्तमंत्रीत्वकाल में गई फूंकी हुई हवा अब उनके प्रधानमंत्रीत्वकाल में भूखमरी, बेरोजगारी, और रोजी रोटी का रोना रोने वाले इन आम लोगों को खास सपने दिखा रही है । 
उदारीकरण के ये उपहार गरीबी, बेरोजगारी, कूपोषण नामक भारत की प्राचीन संगिनीयों को जीन्स, टॉपर से ढक रहे है । यहां अपने अटलजी को याद ना करना गुस्ताखी होगी। अटल जी ने इस लिब्रलाईजेशन को पाला-पोसा और आज जवान होकर यही लिब्रलाईजेशन आम भारतीय को रोटी, कपड़ा और मकान को भूला कर सपनों का महल, बाइक कार, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, कलर टीवी, म्यूजिक सिस्टम, कम्पयूटर और वीसीडी, डीवीडी खरीदने के लिए आव्हान कर रहा है ।  वाह भई उदारीकरण, तुम जीयो हजारों साल, साल के दिन हों पचास हजार । 
वैसे लोन की महिमा अपरम्पार है। कुकरमुत्ते की तरह उग आई फाईनेन्स कंपनियों के दलाल हर छोटे-बडे शो-रूम में एफबीआई एजेंटों की तरह नजर रखते हैं ।  जैसे ही कोई ‘शिकार‘ शो-रूम में दाखिल होता है, इनकी तजुर्बेकार नजरें तुरन्त पहचान लेती हैं कि ये पत्नी-बच्चों के तानों का मारा है, यही मासिक रूप से हरे नोट देने वाली मुर्गी है। फिर क्या, मीठी, मधुर मुस्कान के साथ कागजी कार्यवाही चालू हो जाती है।  इधर-उधर और ना जाने किधर-किधर फटाफट साईन करवाये जाते है । एडवांस चैक पर पहले ही इन भारतीय कॉमन आईडल्स‘ के ऑटोग्राफ ले लिये जाते हैं। कसमसाया असमंजस से भरा भारत का ये आम नागरिक कन्फयुज्ड हो जाता है कि वो आईटम का मालिक बनने की खुशी मनाये या ऋणी होने का गम। इस चक्कर में वो ना तो हंस पाता है और ना ही रो पाता है। इधर चीज आपकी हुई नहीं और उधर ऋणदाताओं की भूमिका बदली। पहले ही दिन किस्तों को टाईम पर जमा करवाने की ताकीद कर दी जाती है। वैसे भी आम आदमी पैसा डकार कर जाएगा कहॉं ? अव्वल तो उसे देसी घी हजम ही नहीं होगा और यदि हो भी गया तो क्या, ये ऋणदाताभाई उन ‘भाईलोग‘ से भी रिलेशन रखते हैं, इधर एडवांस चैक बाउन्स हुआ उधर चार सौ बीसी का का केस तैयार । 
एक मध्यमवर्गीय परिवार दो तीन किस्तों को चुकाने के बाद ही उस क्षण को कोसने लगता है, जिस क्षण लोन पर कार खरीदी थी। सपनों की कार की किस्त चुकानी उनके लिए दुःस्वप्न बन जाती है ।  अपनी मीलों चलती मुस्कान वाली बाईक, महीनों लम्बी किस्तों में बदल जाती है । सपनों से, अपने प्यारे से घर में घुसते ही लोनदाता का एजेन्ट तैयार मिलता है ।  आम आदमी के खास सपने चूर-चूर होने लगते हैं, जिन्दगी की गाड़ी किस्तों के गड्ढों पर कूदने लगती है।  दो-तीन किस्तें न भरने पर लोन से ली गई सम्पत्ति पर लोनदाता का अधिकार हो जाता है, और आम आदमी अपनी आम आदमीयत की परम्परा निभाते हुए शोषित होकर हाशिये पर आ जाता है। इसीलिये तो अपुन कहते हैं कि आम आदमी को सपने देखने का पूरा अधिकार है, लेकिन सपने पूरे करने का कोई अधिकार नहीं है, क्यों कि आम आदमी के इन सपनों को पूरा करने का रास्ता ऋणदाता  की गलियों से होकर निकलता है, जिसका कोई छोर नहीं ।  तो भाईजान, बच सकते हो तो बचो ।  हो सकता है, आने वाले दिनों में गली-गली ठेला लेकर ये लोग आएं और चिल्लाएं,‘‘लोन ले लो,,,,लोन‘‘ 
  
 

Thursday, March 4, 2010

बोये पेड आतंक का तो अमन कहां ते होय

बोये पेड़ ‘आतंक‘ का तो ‘अमन‘ कहां ते होये

पाकिस्तान के हुक्काम बौखलाये हुए हैं। अमेरिकी भीख के मोहताज बनी पाकिस्तानी सरकार बेमन से तालिबानियों के विरूद्ध युद्ध कर रही है। जिस प्रकार गली के श्वानों को ‘उश..उश‘ कर भौंकने के लिए उकसाया जाता है, ठीक वैसा ही अमेरिका पाकिस्तान सरकार को ‘उश..उश‘ कर तालीबानियों के खिलाफ लड़ने के लिए उकसा रहा है। 
पाकिस्तान में आए दिन बम धमाकों की खबरें आ रही है। मौत के आगोश में समाने वालों की तादाद बढती जा रही है। पाकिस्तान ने जिस दहशत का बीज लगाया था, मासूमों के खून से वर्षो सींचा था, वही बीज अब दहशत का विशाल पेड़ बन चुका है। ठीक ही तो है बोये पेड़ बबूल का तो आम कहां ते होय। पाकिस्तान अपने ही बनाये भस्मासुरों की कैद में है। इस्लामाबाद, पेशावर, लाहौर या कराची पाकिस्तान का कोई शहर महफूज नहीं रह गया है। 
ये बदकिस्मती ही होगी उस मुल्क की कि जहाँ के लोग अमन को तरस रहे हैं और हुक्काम बेसिर पैर के निर्णयों से अवाम के लिए मुश्किल दर मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। वजीरिस्तान में एक लाख लोगों के लिए जीवन-मृत्यु का प्रश्न खड़ा हो गया है। हजारांे लोग बेघर हो गये हैं। उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। पाकिस्तान सेना आज भी सरकार से बड़ा रूतबा रखती है। जब आतंकियों ने सेना के मुख्यालय, आई एस आई के इन्टेरोगेशन सेन्टर में भी हमला किया तो सेना ने आखिरकार वजीरिस्तान में कार्यवाही आरम्भ की। तालीबान को पाकिस्तान ने जितना कमजोर समझा था उतने वे थे नहीं। यदि कोई ग्रुप सेना मुख्यालय पर कब्जा कर बंधक बना सकता है तो यह एक गंभीर संकेत था। पाकिस्तानी सेना को समझ में आ रहा है कि अब आर या पार की लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी। यहाँ एक बात बड़ी रोचक है। पाकिस्तान तालीबान के सभी कमाण्डरों के विरूद्ध हमला नहीं कर रहा है बल्कि जो पाकिस्तानी सेना के कहने में नहीं है उन्ही के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है। पहले वजीरिस्तान में मौलाना फजलुल्लाह से समझौता किया गया। ये समझौता अवाम की आजादी को गिरवी रख कर किया गया था। इसके बाद सोचा गया कि सब कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा। लेकिन तालिबान की नजरें पूरे पाकिस्तान पर थी। तालीबान एक सोची-समझी रणनीति के तहत हमले पर हमले कर रहा है। अन्ततः अमेरिकी दबाव ने पाकिस्तान को तो मजबूर कर दिया कि वो तालीबान के खिलाफ कार्यवाही करे लेकिन पाकिस्तान ने तालीबानियों के सामने विकल्प रख दिया-या तो हमारी गोली से मरो, या कश्मीर में जाकर ‘जिहाद‘ लड़ो। तालीबान प्रमुख हकीमुल्ला का हालिया बयान-‘हम पाकिस्तान को इस्लामी मुल्क बनायेंगे और उसके बाद इण्डिया के बॉर्डर पर लडे़गे‘, इसी परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है। भारत के लिए यह खतरे की घंटी है। हमें तत्काल ही सर्तक हो जाना चाहिये।
यह विडम्बना ही है कि दुनियां का सबसे खतरनाक, बिगड़ैल, आतंक का कारखाना और वह भी परमाणु शक्ति से सम्पन्न देश हमारा पड़ोसी है जिसके घर की लपटें हमारे मुल्क को भी झुलसा सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी के पास विकल्प सीमित-दर-सीमित होते जा रहे हैं। पाकिस्तान विश्व शांति के गले में एक एसी हड्डी बन चुका है, जिसे ना तो निगला जा सकता है और ना ही उगला जा सकता है। बेसिरपैर निर्णय लेते राष्ट्रपति, असमंजस में वजीरे आजम, झूठ पर झूठ बोलते सूचना मंत्री और रहस्यमयी मौन धारण किये हुए सेनाध्यक्ष कियानी। क्या ऐसे मे आशा की जा सकती है कि यह देश उबर पायेगा। बेशक नहीं। भारत के पंजाब, कश्मीर, दिल्ली, मुम्बई में हजारों का खून बहाने वाले आतंकियों के सहयोगी पाकिस्तान को अब हर दिन खुद ही के मुल्क में हो रहे धमाकों से मरने वाले अनजान लोगों की चिल्लाहटों सुनाई देती होगी और शायद अहसास भी होता होगा कि ‘‘बोये पेड़ ‘आतंक‘ का तो ‘अमन‘ कहाँ ते होये‘‘