संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Saturday, November 26, 2016

नोट बंदी - मोदी की नियति का दस्‍तावेज

नोट बंदी - मोदी की नियति का दस्‍तावेज
संजय पुरोहित

नोट बंदी पर बहुत दिनों से सूखी खबरें चलाने वाले उकताए न्‍यूज चैनलों के लिये मसाले का क्विंटलों माल मिल गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इतना बडा कदम उठाया है जिससे सवा सौ करोड इंसानों वाले इस देश में हर कोई प्रभावित हुआ है। नरेन्‍द्र मोदी प्रचण्‍ड बहुमत से सत्‍ता में आये थे। किसी भी सरकार द्वारा कठोर कदम उठाने की प़ष्‍ठभूमि में उसका खुद का जनमानस पर आधार ही होता है। 238 के संसदीय आंकडे ने ही नरेन्‍द्र मोदी को यह साहस अथवा दुस्‍साहस भरा कदम उठाने का माद्दा दिया होगा। वर्ष 2016 के नवम्‍बर महीने की आठ तारीख और समय रात्रि आठ बजे। एक घोषणा ने भारतीय जनमानस की दैनिन्‍दिनी को उलट-पुलट कर रख दिया। निश्चित रूप से यह कदम साहसिक, जोखिमभरा और इस प्रधानमंत्री के लिये अकल्‍पनीय चुनौती भरा रहा होगा। नोट बंदी अचानक ही उठाया हुआ कदम तो कतई नहीं था। सरकार के कदमों को हम सिलसिलेवार रखें तो इसकी परत-दर-परत खुलने लगती है। इस कदम को उठाने एक लम्‍बी तैयारी का सुराग मिलता है, जिसका परिणाम अंतत नोट बंदी के रूप में हुआ। आप गौर कीजिये करोडों जन-धन खाते खुलवाने वाला क्‍वार्टर फाईनल जैसा पहला कदम, फिर 30 सितम्‍बर तक अपनी काली कमाई को उजागर करने के अल्‍टीमेटम वाला सेमीफाईनल जैसा दूसरा कदम। आखिरकार पांच सौ और हजार के नोटों को प्रचलन से बाहर करने का ग्राण्‍ड फिनाले। एक-एक कदम, सोचा-समझा हुआ। इस ऐतिहासिक कदम के कई फायदे तो तत्‍काल ही हो गये। सबसे बडा फायदा तो यह कि काले धन का सौ फीसदी हिस्‍सा तत्‍काल ही रददी बन गया। विदेशों से गुप्‍त फण्डिंग से चलते भारत विरोधी एनजीओ ठण्‍डे हो गये। हवाला के जरिये समानान्‍तर अर्थव्‍यवस्‍था चलाने का पूरा नेटवर्क ही तबाह हो गया। सटोरिये, काला बाजारिये फलक से अर्श पर धडाम से आ गिरे। आतंकियों को रूपया मुहैया कराने वालों के मूंह पर नोटबंदी का झन्‍नाटेदार चांटा पडा। कश्‍मीर में पत्‍थरबाजी बंद हो गयी।
अर्थशास्‍त्री इस कदम का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। उनके अनुसार अर्थव्‍यवस्‍था में नयी जान आनी तय है। रूपये का अवमूल्‍यन होना तो दूर आने वाले समय में रूपया जोरदार मजबूती से उभरेगा। इधर कदम उठाया गया, उधर राजनैतिक दल इसके पक्ष-विपक्ष को गुणते हुए अपने लाभ हानि को सूंघने लगे। आरम्भिक दिनों में तो किसी एक की भी इतनी हिम्‍मत नहीं हुई कि इस कदम का विरोध करते। समर्थक और विरोधी, सभी जनता की भावना से सहमे हुए सरकार के इस कदम का स्‍वागत कर रहे थे। मोदी के प्रति अटूट आस्‍था और अंध भक्ति के स्‍तर तक आये समर्थकों ने मोदी के इस कदम का इतना हल्‍ला मचाया कि जनता के कानों में मीठास की जगह कर्कशता ने ले लिया। यह बात तो सौ फीसदी सही है कि नोट बंदी से अंधभक्‍तों की श्रेणी में आने वाले समर्थकों की उर्जा में जनमानस की भावनाओं से उबाल आया, जो कि स्‍वाभाविक ही है। दूसरी ओर अंधविरोधी अपनी मानसिकता के वशीभूत विरोध करने की जुगत में जुट गये। विरोधियों को तो इसका काट ही नहीं मिल रहा था, अंधविरोधियों के शातिर दिमाग विरोध के लिये तर्क ढूंढने में लगे रहे, पर तर्क न मिले। एक सामान्‍य आकलन यह कहता है कि बीमार होती अर्थव्‍यवस्‍था के ऑपरेशन को टालते टालते रूपये की हालत खस्‍ता हो चुकी थी। किसी को तो यह कदम उठाना ही था। डॉ.मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी साल में उठा लेते तो हो सकता है जनता भ्रष्‍टाचार के खिलाफ जंग में उनके साथ खडी होती, हारना तो यों भी था, और यों भी। बहरहाल इस सरकार ने आखिरकार यह कदम उठाया। इतना विलम्‍ब से उठाया गया कदम अपने साईड इफेक्‍ट के साथ आना लाजमी था।

फिर कुछ और दिन गुजरे। जनता की बैंकों में लगी कतारें लम्‍बी, और लम्‍बी होती रही। आमजन आरम्भिक दिनों में अपनी भावना के साथ लाईनों में खडा था, वही धीरे धीरे उकताने लगा। उसका कारण आमजन का इस कदम का विरोध नहीं बल्कि नकदी की धीमी सप्‍लाई थी। कोढ में खाज कर रहे थे वे लोग जो कि येन केन प्रकारेण अपने धन को सफेद करने में लगे हुए थे। मोटे सेठों ने अपनी फेक्ट्रियों, होटलों, ढाबों, कोटडियों में लगे हुए मजदूरों को हर दिन दहाडी पर काले धन को सफेद करने में लगा दिया। पेट्रोल पम्‍प, हॉस्‍पीटल जैसे स्‍थानों को नोटबंदी से छूट इसलिये दी गयी थी कि आमजन को परेशानी नहीं हो। इन संस्‍थाओं ने बिल्‍ली के भाग का छींका टूटा मुहावरा चरितार्थ करते हुए काले को सफेद करना शुरू कर दिया। बैंककर्मी बेशक बहुत मेहनत भरा काम कर रहे हैं लेकिन उन पर प्रति दिन अंगुलियां उठने का कोई सबब तो रहा होगा। हर दिन सरकार कुछ आदेश लाती, हर दिन काले धन वाले नया रास्‍ता निकालते। जिन घरों में विवाह या महत्‍वपूर्ण अवसर है, उन्‍हे सबसे ज्‍यादा परेशानी हो रही है। लाईनें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। धैर्य जवाब देने लगा है। खुशनुमा माहौल में आरम्‍भ हुआ समर्थन देने का हौसला धीरे धीरे कुछ लोगों में तो सुलगती भडास में बदलने लगा है। आमजन धीमे ही सही पर आक्रोश की ओर बढ रहा है। सौ बात की बात एक है और वो यह कि जनता परेशान है। है।। है।।।
          राजनैतिक विरोधियों को यही सुहाता है। परेशान जनता ही राजनीति का चूल्‍हा होती है। निराश, परेशान, थकी हुई जनता को सूंघते हुए राजनैतिक दल अब खुल कर नोट बंदी का विरोध करने में जुट गये हैं। लाईनों से मुददे मिलना संजीवनी की तरह बन गया है। अब नोट बंदी की घोषणा को वापिस लेने के लिये दबाव बनाने में जुटे हैं। ऐसा संभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। अब भारत एक ऐसे मार्ग पर चल पडा है, जिसकी कोई पगडण्‍डी नहीं है। इस राह से गुजरना ही होगा। समर्थन देते हुए या बकबक करते हुए। अंध विरोधियों और अंध भक्‍तों की भडास को अगर एक ओर रखकर वास्‍तविक धरातल पर इस घोषणा का विश्‍लेषण किया जाये तो कई बातें साफ साफ निकल कर आती है। आलोचना में कुछ तो दम है। नये नोटों की अस्‍तव्‍यस्‍त सप्‍लाई से इस कदम की धार कुंद हुई है। पर यह बात भी साक्षात नजर आ रही है कि जो अधिसंख्‍यक जनमानस बडी तादाद में इस कदम के समर्थन में रहा और अभी भी है किंतु वह अब उहापोह की स्थिति में है। आरम्भिक दिनों में उपजी यह समर्थन की भावना धीरे-धीरे अवरोह पर है। यह भी लग रहा है कि हर गुजरते दिन के साथ नोट बंदी सरकार के गले की फांस बनती जा रही है। भारतीय जनता ने नरेन्‍द्र मोदी को सशक्‍त भारत के लिये अपना मत दिया था। मोदी अपने इस कदम को इसी दिशा में बढने का प्रतीक बनाने में दिन रात एक किये हुए हैं।  जनता के मन में क्‍या है कोई नहीं जानता। जनता अब दो घंटे तक पक कर तैयार हुए रसीले व्‍यंजन का लुत्‍फ उठाने की बजाय दो मिनिट में नूडल्‍स खाना चाहती है। पांच दिन के टेस्‍ट मैच की जगह टवेंटी टवेंटी युग में आ चुकी है। जनता को रिजल्‍ट चाहिये जल्‍दी, जो कि इस सदी के महत्‍वपूर्ण कदम में संभव ही नहीं है। आज भी लोग लाईनों में खडे परेशान होते हुए भी इस कदम को सराह रहे हैं। पूरा का पूरा जनमानस मोदी के विरोध में नहीं बल्कि अधिसंख्‍यक लोग तो पूरजोर समर्थन में है। लेकिन साथ ही हो रही प्रतिदिन की परेशानियों से आम आदमी बौखलाया हुआ है। वह नोटबंदी का समर्थन तो कर रहा है किंतु व्‍यवस्‍था से पीडित है। एक दो महीने तक हालात ऐसे ही बने रहने की आशंका है, जब तक सब कुछ पटरी पर सामान्‍य चलने लगेगा तब तक देश विचलन की स्थिति में ही रहेगा।

अब नोट बंदी के बाद के डेढ-दो साल में नरेन्‍द्र मोदी को इसके फायदे आम जन तक दिखते हुए स्‍वरूप में पहुंचाने ही होंगे। रोटी, कपडा और मकान और पेट्रोल के दामों को न्‍यूनतम स्‍तर तक लाना ही होगा। तभी वह इसकी सार्थकता सिद्ध कर पायेंगे। मेरा निजी आकलन यह संकेत करता है कि नोट बंदी का यह कदम मोदी की नियति का दस्‍तावेज बनेगा। यह कदम आने वाले एक दो सालों में यह निर्धारण करेगा कि नरेन्‍द्र मोदी इतिहास में देश और सदी के सर्वश्रेष्‍ठ प्रधानमंत्री गिने जायेंगे अथवा सर्वाधिक असफल प्रधानमंत्री। बहरहाल लाईनें लम्‍बी हैं।

Tuesday, October 18, 2016

इम्‍तेहान :: कहानी :: संजय पुरोहित

इम्तेहान
कहानी- संजय पुरोहित
छत्तरपुर नामक छोटा सा एक गांव। गांव की भुल-भुलैया सी पगडण्डियों के दोनों ओर चैकीदारी करते छोटे-बड़े पेड़। चैकीदारों की संगत में बैठी झाड़ियां और पसरी हुई सूखी पत्तियां और टहनियां। यहीं घर है मंगत का। पूरा नाम मंगतलाल योगी। इस घर में रहती है मंगतलाल की माई और पत्नी लछमी और एक बेटा भगत। मंगत को तो घर छोड़े अरसा हो गया। वह शहर में रिक्शा चलाता है। वह शहर में अपना आधा पेट पालता है और शेष बचा पेट काटकर कमाई घर भेजता है। वैसे घर कहना ठीक नहीं होगा, झोंपड़ी कहना ही ज्यादा ठीक होगा। स्थायी सम्पत्ति के नाम पर इस झोंपड़ी के अलावा एक पीपल का पेड़, बस। चल सम्पत्ति के रूप में लछमी की एक जोड़ी चांदी की पायल, दो खटिया, आठ दस बरतन और मंगतलाल की भेजी गई राशि के सौ सवा सौ रूपये। एक दौर में साढ़े बारह बीघा बारानी जमीन भी हुआ करती थी। जब बिटिया का गौना हुआ तो उससे पहले ज़मीन का भी गौना हो गया। मंगतलाल ने जमीन का सौदा अपनी खानदानी परम्परा निभाते हुए किया। उसके दादा के समय तो सौ बीघा हुआ करती थी। दादा ने बुआ के विवाह के लिये आधी जमीन बेची। पिता ने मंगत की बहन के विवाह के लिये फिर आधी जमीन को निपटा दिया। इसी परम्परा को निभाते हुए उसने पुरखों की सिकुड़ती जमीन को पूरी तरह सलटा दिया। जब भी ज़मीन बिकती, तो घर के मुखिया को भरोसा होता कि हमारा बेटा कमायेगा, तो फिर खरीद लेंगे। ना किसी बेटे ने ऐसी कमाई की, ना जमीन ही खरीद पाये। मंगत भी फकत पेट ही पालने तक अपने को समर्थ बना पाया। बस, यूं ही चल रही थी मंगतलाल योगी के कुनबे की छकड़ा गाड़ी।
हां, एक बात जो मंगतलाल के परिवार में जरा हट के थी। ये बात थी मंगत लाल का बेटा भगत। गांव की पाठशाला का सबसे मेधावी छात्र। गुदड़ी का लाल था भगत। जब से दसवीं पास की, उसके साथ ही परिवार को भी उम्मीद जगने लगी। उसने बचपन से ही अपने पिता को दाल-रोटी की जुगाड़ में पिसते देखा था। घोर विपन्नता में भी अपनी मां की जीवन की गाड़ी को घसीटने की अद्भुत कला को उसने करीब से देखा था। कभी सुबह, तो कभी शाम को बिन खाना जीवन जीने का महारथ भी उसने अपने परिवार में महसूस किया था। उसमें अपने परिवार को कंगाली के चक्रव्यूह से निकाल पाने की जबर्दस्त लालसा थी। जब से बारहवीं की पढ़ाई के लिये कस्बे की स्कूल में गया, मां की एक जोड़ी पायजेब भी खेत रही।  भगत को इन सभी बातों का अहसास था। उसे भरोसा था कि एक दिन ऐसा आयेगा जब वह कमाने लगेगा। बस, एक बार नौकरी लग जाये, तो सारे कष्टों से निजात मिल सकेगी।
जब भी भगत कस्बे की बस पकड़ने के लिये निकलता। मां और दादी उसे आंखों से ओंझल होने तक ताकती रहती। उन्हे यकीन हो चला था कि जैसा जीवन वे जीती आई हैं, उसमें बदलाव होकर रहेगा।
-माई, तु देखना, तेरा भगत खूब कमायेगा‘, लछमी अपनी सास को भरोसा दिलाती।
-हां री बहु, सुनते हैं, तीन पीढ़ी में भाग करवट लेते हैं। तीन पीढ़ी बाद तो कुभाग भी सुभाग बनने लगते हैं।‘ माई हामीं भरती।
उधर शहर में रिक्शा चलाते मंगत को भी अपने बेटे पर भरोसा था। बस इतना ही कि वो कम से कम रिक्शा तो नहीं चलायेगा। जब जब उसे पीड़ा घेर लेती, वह अपने बेटे भगत को याद करता। उसके शिथिल हुए पैरों में फिर ऊर्जा समा जाती। वह दुगुनी गति से पैडल मारने लगता। सवारियां इस कृषकाय की ताकत देखकर हैरान होती। मंगत दो-तीन महीनों में कभी-कभार गांव आता। बेटे भगत की पढ़ाई में रूचि देखकर उसके मन में भी भविष्य के सुखी जीवन की कोंपलें फूटने लगती।
जब भगत ने बारहवीं परीक्षा पास कर ली, तो मंगतलाल के कुनबे में खुशी की सीमा नहीं रही। इत्ती पढ़ाई तो उसके सात पुरखों में भी किसी ने नहीं की थी। खुशी से सराबोर माहौल में लछमी ने गुड़ का सीरा बनाया। आस-पड़ोस मंे खुद बांट कर आई। भगत पढ़ाई से उपजे दायित्व को समझ रहा था।
एक दिन जब भगत घर आया तो काफी खुश था। लछमी ने कारण पूछा तो बोला, ‘‘अम्मा, मैंने फौज में भरती का फाॅर्म भर दिया है। लछमी गौर से उसे देखने लगी।
-अम्मा, क्या सोचने लगी, अरे हिंदुस्तानी फौज में भर्ती लगी है।
-फौज में कित्ते रूपये मिलेंगे ? बोल तो जरा ?
-अम्मा, तु भी नां। अरे बहुत मिलेंगे।
-पर लल्ला, उसके लिये तुझे करना क्या होगा ?
-अरे मेरी भोली अम्मा, अभी इम्तेहान होगा। जब तेरा लल्ला इम्तेहान में पास हो जायेगा। तब दौड़ होगी। दौड़ में पार पा लिया तो नौकरी पक्की।
-नौकरी ?
-हां अम्मा। नौकरी। पक्की नौकरी। बस एक बार फौज में नम्बर लग जाये, फिर अपने रसोई में आटा-दाल के कनस्तर भरे रहेंगे। सब्जी भी खायेंगे अम्मा। तु देखना। खुशियों के दिन आयेंगे।
-सच लल्ला ?
-अरे हां अम्मा, हां।
लछमी ने अपने लाल की बलईयां ली। उधर माई मुळकती हुई अपनी बातों में पुरखो के इतिहास को ले  बैठ गयी।
-अरे भगत, तुझे पता है, तोहरे पड़दादा अंगरेजों की फौज में लड़ने दूर देस गये थे। उनके बाद कोई ना गया। तुने तो पड़दादा के नाम को रोशन कर दिया।
-अरे माई, अभी कहां किया है ? अभी तो फोरम भरे हैं, जब पास हो जायेगे तब ना !
-पास तो होवेगा। ये जो मैं सुमरण करती हूं, उसका कोई फरक ना पड़ेगा का ?
-पड़ेगा माई पड़ेगा। बस तू तो यूं ही राम जी को मनाती रहो।
माई ने उपर देखा और हाथ जोडे़।
कुछ और दिन गुज़रे। भगत की मेहनत रंग लाई। वह लिखित इम्तेहान में पास हो गया था। उसने आधी जंग तो जीत ही ली थी। अब दूसरा इम्तेहान बाकी था। इम्तेहान था दौड़ का।
भगत की कद-काठी कोई खास नहीं थी। वजन होगा यही कोई पचपन साठ किलो। लम्बाई पांच फीट से कुछ ज्यादा। भगत अपनी सीमाएं जानता था और ये भी जानता था कि असली इम्तेहान तो दौड़ ही है। दौड़ में नम्बर लगना उसकी पढ़ाई पर नहीं ताकत पर निर्भर करता था। भगत अपने जीवन की पहली लड़ाई में मात नहीं खाना चाहता था। उसने सुबह-सवेरे दौड़ का अभ्यास लगाना शुरू कर दिया। उसके शरीर का सामथर््य इतना था ही नहीं कि वह पांच सौ मीटर को एक बारगी में ही पूरा कर पाता। यही उसके लिये निराशा का कारण बन रहा था।
वह दौड़ शुरू करता। तीन सौ मीटर के बाद उसका सांस उठने लग जाता। पैर जवाब देने लगते। उसे न चाहते हुए भी रूकना पड़ता। उसका ध्येय उसे ज्यादा देर विश्राम नहीं करने देता। कुछ क्षण रूक कर वह फिर से दौड़ना शुरू कर देता। अपनी दौड़ में लगने वाले समय से उसे आशंका होने लगती कि कहीं उसका सपना तो टूट नहीं जायेगा। ये सपना उसका भी होता तो वह सहन भी कर लेता पर माता-पिता और दादी भी उसके इस सपने में गूंथ गये थे। यह ख्याल आते ही वह दुगुने जोश के साथ दौड़ने लगता। पर उसकी शारीरिक क्षमता की सीमा बार बार उसके आगे आ खड़ी होती।
एक सवेरे दौड़ लगाने के बाद निराश लौटे भगत को देखकर लछमी को कुछ संदेह हआ।
-क्या हुआ लल्ला ? चेहरा उतरा हुआ क्यूं है ? क्या हुआ ?
-कुछ नहीं अम्मा। बस जित्ता दौड़ रहा हूं, उससे पार न पड़ेगी।
-ये क्या कह रहा है ? कीत्ती तो दौड़ लगाता है। घर से झूलन के कुए तक। कुए से कस्बे की सड़क तक और वहां से फिर कुए और घर तक। फौज में क्या दौड़ने का ही काम है ?
-अरे ना अम्मा। पर फौजी के शरीर में ताकत होनी चाहिये कि ना ? बोल ? अब दौड़ने से ही तो मालूम पड़ता है ना कि कित्ता दम है शरीर में।
-अरे तो तु दौड़ तो रहा है। फिर काहे मुंह लटकाये है ?
-अरे अम्मा। दौड़ने से नहीं, फुरती से दौड़ने से काम बनता है। मैं दौड़ लगाता हूं पर फुरती से नहीं। दौड़ में मेरी सांस भर आती है। झूलन के कुए पर रूकना पड़ता है। ऐसे तो नहीं चलेगा ना ?
मायूस भगत झौंपड़ी के भीतर चला गया। लछमी और माई दोनो ही देर तक एक दूसरे को देखते-सोचते रहे। रात को दोनो महिलाओं ने मशविरा किया। दोनों के जीवन के अनुभव का सार इकट्ठा हुआ। अगले दिन जब भगत दौड़ कर आया तो अम्मा ने कटोरी में उसे गुड़ चना दिया।
-ये क्या है अम्मा ?
-अरे खा ले। माई कहती है कि गुड़-चना खाने से शरीर में ताकत आती है।
-पर अम्मा। गुड़ कहां से आया ? और चना ? ये कौन लाया ?
-तुझे उससे क्या ? ले खा ले।
लछमी ने जिस अधिकारपूर्वक मनुहार की, भगत फिर न पूछ पाया। उसने गुड़ चना की कटोरी ले ली और गोबर लीपी दीवार का सहारा लेकर बैठा और खाने लगा। दोपहर हुई। लछमी सूखी टहनियां चुगने जब बाहर गई तो उसने झोंपड़ी के किनारे पड़ी संदूक को खोला। मंगतराम के भेजे सवा सौ रूपये में से अब सिर्फ 20-30 ही बचे थे। भगत समझ गया कि उसको ताकत देने के लिये अम्मा ने इन रूपयो को स्वाह कर दिया था।
वह दिन आ गया, जब दौड़ होनी थी। लछमी ने कुंमकुम का टीका लगाकर, दही से मुंह चटा कर भगत को विदा किया। भगत जब कस्बे के स्टेडियम पहुंचा। वह यह देखकर हैरान रह गया कि बड़ी तादाद में युवक दौड़ के इम्तेहान के लिये आये हुए थे। अपनी दौड़ की तैयारी के संशय ने भगत को निराशा में डाल रखा था। यह भीड़ देखकर उसके हौसले पस्त होने लगे। जल्द ही उसने अपने आप को तैयार किया। जब उसे दिये गये नम्बर को पुकारा गया तो वह लाईन मे जा पहुंचा। भगत को अनजान भय घेर रहा था।
‘गेट-सेट-गो‘ यह ध्वनि सुनते ही सभी प्रतिभागी दौड़ पड़े। पहले सौ मीटर तक भगत आसानी से दौड़ लिया। उसकी गति दूसरों से काफी अच्छी थी। अगले सौ मीटर उसके लिये परेशानी भरे रहे लेकिन वह दौड़ता रहा। तीन सौ मीटर के निशान से चार सौ मीटर तक के निशान तक वह हांफने लगा।
एक सौ मीटर का फासला अभी भी बाकी था। उसे लगा कि वह अंतिम सिरे तक नहीं पहुंच पायेगा। उसने दौड़ना जारी रखा। उसके पीछे रहे युवक धीरे धीरे उसके करीब तक आये, फिर आगे निकलने लगे। भगत को लगा वह जीती हुई जंग हारने जा रहा है। उसका सपना टूटने वाला है। अचानक ही उसकी आंखो के सामने अपनी अम्मा लछमी का चेहरा घूमने लगा। कितनी आशा और विश्वास है उसे अपने बेटे पर। मां के चेहरे ने उसे फिर ऊर्जा दे डाली। वह कुछ कदम और दौड़ा। उसे दौड़ लगाने के साथ साथ अपने दुबले-पतले पिता का चेहरा याद आया। पिता का रिक्शा याद आया। रिक्शे को चलाते हुए पिता के पैर दिखे। भगत के पैरों में जैसे पिता के पैरों की ताकत भी समा गई। उसे लगा कि उसके पिता उसके साथ-साथ ही दौड़ लगा रहे हैं। भगत की दौड़ में तेजी आ गई। उसने अपनी जान झोंक डाली। दौड़ के समाप्ति बिन्दु की तरफ बढ़़ते हर कदम के साथ उसका हौसला बढ़ता रहा। वह बुरी तरह हांफ रहा था। सांस तो जैसे उखड़ कर बाहर आने को हो रही थी। उसने अपनी रही सही ताकत को निचोड़ा और अपने शरीर के अंतिम कतरे तक को झोंक डाला।
भगत के शरीर की ताकत पस्त हो चुकी थी पर वह दौड़ता रहा। दौड़ता रहा, दौड़ता ही रहा। उसके शरीर का सामथर््य जवाब दे चुका था। उसी क्षण भगत की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। उसे चक्कर आये और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा।
जब उसे होश आया, तो देखा। वह एक तम्बू में लेटा था। उसने चारों ओर अपनी नजर घुमाई। तम्बू अस्थायी अस्पताल का था। भगत मायूस था, उसकी आखों में आंसू थे। तभी सेना का एक अधिकारी उसके पास आया।
-भगत लाल ?
-जी
-कांग्रेट्स माई बाॅय। तुमने इम्तेहान पास कर लिया है। जिस समय तुम गिरे, आखिरी निशान पार कर चुके थे।
भगत के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। जिस दौड़ का इम्तेहान उसने पास किया था, उससे बड़ी दौड़ उसका परिवार जीत गया था। वह अम्मा को खुश खबरी देने के लिये बेताब हो उठा। 

Tuesday, September 20, 2016

शंकर भोले का थाण***कहानी*** संजय पुरोहित

शंकर भोले का थाण

कहानी:- संजय पुरोहित

शांतिप्रसाद कुछ परेशान थे। उनकी बेटी सुमन को लड़के वाले देखने आने वाले थे। पैसे वाले लोग थे, बिटिया सुख से रहेगी। लड़का सरकारी मुलाजिम था, अच्छी तनख्वाह थी। काश! यह रिश्ता हो जाए, यही कामना करते हुए मन मंे कहीं यह भी आशंका थी कि कहीं मना कर दिया तो ? मन ही मन ईष्ट का ध्याया और सवा किलो देसी घी के लड्डू चढाने का संकल्प लिया।
शंातिप्रसाद खुद सरकारी मुलाजिम थे। पत्नी, एक बीस साल की बेटी सुमन और दो बेटे बाईस साल का शंकर और इक्कीस साल का विमल। बिटिया ने ग्रेजुएशन कर लिया था और अब बी.एड. कर रही थी। बड़ा लड़का शंकर मंदबुद्धि बालक था। उसके लिए सदैव ही शांतिप्रसाद चिंतित रहते कि उनके बाद इसका क्या होगा। बहुत इलाज करवाया। ओझा तांत्रिकांे के पास भटके, मंदिर-मंदिर मन्नते मांगी लेकिन शंकर ठीक ना हो पाया। उस पर ना जाने किसकी छाया थी या भगवान ने उसे बनाया ही ऐसा था। शंकर पर अचानक ही जैसे कोई हावी हो जाता था। वह पागलांे जैसी हरकतें करने लगता। कभी कभी खुद को ही घायल कर लेता तो कभी चिल्लाने लगता। छोटा बेटा विमल पढ़ाई में तेज था। कम्पाउंडरी का कोर्स कर रहा था और प्राईवेट अस्पताल में ट्रेनिंग ले रहा था। शांतिप्रसाद जी को उम्मीद थी कि वह अपना रास्ता पकड़ ही लेगा।
विमल ने शांतिप्रसाद को सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं बस कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। शांतिप्रसाद ने खुद रसोई मंे जाकर सब व्यवस्थाएं देखीं और संतुष्ट हुए कि सब कुछ ठीक-ठाक है। शंकर को लेकर वे कुछ चिंतित थे। परिवार ने निर्णय किया कि शंकर की उपस्थिति से कुछ भी गड़बड़ हो सकता है इसलिए क्यांे न उसे किसी रिश्तेदार के पास भेज दिया जाये। शांतिप्रसाद को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी। उन्हे लगा कि इससे लोगांे को चार बातंे और बनाने का मौका मिल जाएगा। वे ऐसा नहीं चाहते थे। बल्कि वे तो लड़के वालेे  को भी शंकर के बारे में बताना चाहते थे। आखिरकार रिश्ते में  बातें छिपाने से बात बनती नहीं, बल्कि बिगड़ जाती है। अंत मंे यह निर्णय लिया गया कि शंकर को कमरे में बंद कर दिया जाए। सभी ने सहमति में सिर हिलाया। विमल प्यार से अपने भैया को बहला-फुसला कर कमरे में ले गया।
थोड़ी देर में लड़के वाले आ गए। उन्हे सम्मान सहित बिठाया गया। सुमन चाय-नाश्ता लेकर आई। बातचीत चल रही थी। शांतिप्रसाद अपने संभावित समधी को परिवार के बारे में बता रहे थे। शंकर के बारे में वे कुछ बताने वाले ही थे कि अचानक शंकर को जैसे दौरा पड़ा। शांतिप्रसाद अचकचा गए। शंकर ने अपने हाथोंों से दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति के लिए कोई तैयार नहीं था। शांतिप्रसाद ने विमल को इशारा किया कि वो शंकर को बाहर आने दे। विमल ने जैसे ही दरवाजा खोला तो शंकर झट से बाहर निकला। उसकी नजर सीधे टेबल पर पड़ी मिठाई पर पड़ी और वह सीधा टेबल की ओर लपका। कोई उसे रोक पाता उससे पहले ही उसने अपने हााथों में मिठाई उठाई और उसे खाना शुरू कर दिया। मेहमान यह देखकर कुछ असहज हो गए। शांतिप्रसाद उठे और शंकर को प्यार से अन्दर जाने के लिए कहा। वह कहां सुनने वाला था। उस पर जो जैसे जुनून सवार हो गया। उसने शांतिप्रसाद के हाथ को झटक दिया। उसके हाथ की मिठाई समाप्त होने को थी और उसने झट से लड़के के हाथ से मिठाई छीन ली। लड़के वाले इसे भला क्यों बर्दाश्त करते। लड़का क्रोधित हो गया और उसने अपने मां-बाप से तत्काल वहां से निकल जाने का इशारा किया। दो ही पल में सब किये धरे पर पानी फिर गया। लड़के वाले चले गये। पूरा परिवार पर जैसे मुर्दनी छा गई। शंकर अब भी मिठाई खा रहा था।
इस वाकये के बाद परिवार महीनों तक उबर नहीं पाया। शांतिप्रसाद ने हिम्मत नहीं हारी। नाते रिश्तेदारों से सुमन के रिश्ते के लिए बात करते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और आखिरकार एक अच्छे परिवार से बात हुई। उन्होंने लड़की को देखने का अनुरोध किया और शांतिप्रसाद ने हां कर दी। दिन, समय तय हुआ।
शांतिप्रसाद परिवार के साथ बैठे। पुराना अनुभव उनके सामने था। शंकर का क्या करें। वैसे वो हमेशा ऐसा नहीं करता था लेकिन यदि उसने फिर वैसा किया तो ? यह प्रश्न सभी को परेशान कर रहा था।
सब विचार कर ही रहे थे कि विमल ने सुझाव दिया, ‘बाबूजी, एक तरीका है। क्‍यों न हम शंकर को नींद का इन्जेक्शन दे दें। वह सोया रहेगा और मेहमानों के सामने ही नहीं आयेगा।‘ शांतिप्रसाद को विमल की यह बात समय के हिसाब से ठीक लगी। मां ने भी सहमति दे दी। विमल खुद कम्पाउण्डरी का ट्रेनिंग ले ही रहा था इसलिए इन्जेक्शपन उसने खुद ही लगाने का निर्णय लिया। मेहमानोंों के आने का दिन था। पहले जैसी ही तैयारियां दोबारा की गई। शंकर को प्यार से खाना खिलाया गया और फिर विमल ने उसे नींद का इंजेक्शन दे दिया। कुछ देर तो शंकर हाथ-पैर मारता रहा फिर शांत होकर सो गया। विमल ने सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं और कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। सब तैयारियां पूर्ण थी। लेकिन उपरवाले को शायद कुछ और ही मंजूर था। शंकर उठ गया। शांतिप्रसाद ने विमल को डांटते हुए पूछा कि नींद का इंजेक्शन देने के बावजूद वह उठ कैसे गया ?
विमल भी परेशान हो उठा, बोला ‘बाबूजी मैंने इंजेक्शन दे दिया था और शंकर सो भी गया था। हां, शायद कम पावर का दिया था, इसलिये उठ गया। अब ऐसा करता हूं कि एक हाई पावर का इंजेक्शन और दे देता हूं।‘ कहते हुए उसने हाथो-हाथ दूसरा इंजेक्शन तैयार कर दिया। शांतिप्रसाद कुछ परेशान हो उठे।  विमल ने उनको निश्चिन्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें बाबूजी!् इस इंजेक्शन से वह वापिस सो जायेगा, हां, यह जरूर है कि अब शाम तक सोता ही रहेगा।‘‘ कहते हुए विमल शंकर के कमरे में गया। आधे सोते, आधे जागते शंकर को एक इंजेक्शन और लगा दिया। कुछ ही पलों में शंकर सो गया। विमल ने उसके माथा सहलाया और बाहर निकला। ‘बाबूजी शंकर सो गया है, अब कोई चिंता की बात नहीं है।‘ विमल ने यह सूचना परिवार के सदस्यों को दी। यह सुनकर शांतिप्रसाद और परिवार ने राहत की सांस ली।
दरवाजे पर घंटी बजी। लड़के वाले आ गए थे। मेहमानों को बिठाया गया। शांतिप्रसाद ने उन्हे सभी के बारे में बताया और खास रूप से शंकर के बारे में भी ईमानदारी से बताया। परिवार सुसंस्कृत था। उन्‍होंने इसे उपर वाले की माया बताया। उन्हे सुमन पसंद आ गई और सभी ने एक दूसरे का मुंह मीठा किया। पंडित ने अगले महीने की बारह तारीख का शुभ मुहूर्त निकाला। लड़के वाले खुशी-खुशी विदा हुए। शांतिप्रसाद को ऐसा लगा जैसे एक बोझ उतर गया। रिश्तेदाारों  को फोन पर सूचना दी गई। बधाई की खबरों का आदान प्रदान होता रहा। इन सब कामों  में कब शाम हो गई किसी को पता ही नहीं चला। शाम को जब खाना बना तो शंकर को बुलाने के लिए आवाज लगाई। कोई जवाब नहीं आया।
‘शायद दवा का अभी भी असर है‘ एसा सोचते हुए विमल शंकर को संभालने गया। शंकर पलंग पर लेटा हुआ था। विमल ने उसे धीरे से सहलाया, ‘भैया...भैया।‘‘ शंकर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। विमल ने उसकी नब्ज टटोली तो धक्क से रह गया। शंकर कभी ना खत्म होने वाली नींद सो चुका था।
थोड़ी देर में घर में कोहराम मच गया। सब शंकर की मौत के लिए अपने आप को जिम्मेदार मान रहे थे। आखिरकार समझदारी की बात की गई। घर की बात घर में ही रहे इस लिए शंकर की दौरा पड़ने से मौत नाते रिश्तेदारों को बताई गई। अगले दिन धुंधलते की ओट में जवान मृत्यू होने के कारण उसका अंतिम संस्कार  कर दिया गया।
शंकर शरीर से चला गया था किंतु परिवार के हर सदस्य के मन में वह स्थायी घर बना चुका था। शंकर की यादों के साये में सुमन का विवाह हुआ। वह अपने ससुराल चली गई। परिवार अभी भी शंकर को भुला नहीं पाया।
एक दिन रात शांतिप्रसाद सोने का उपक्रम कर ही रहे थे कि उन्हे शंकर के कमरे से खटखटाने की आवाज आई। वे हड़बड़ा कर उठ बैठे। दरवाजा खोला तो कुछ नहीं था। ऐसा रोज होने लगा। कभी चिल्लाहटें सुनाई देती तो कभी विमल का पलंग हिलने लगता। कभी मां की साड़ी आग पकड़ लेती तो कभी घर के सारे कपड़े उलट-पुलट हो जाते।
आखिरकार एक दिन परिवारजन इकट्ठे होकर शंकर के कमरे में गए। शांतिप्रसाद ने हाथ जोड़ा बोले, ‘‘बेटा, हमें माफ कर दो, हम तेरे अपराधी हैं, तु हमारा बेटा है और सदैव रहेगा। देख, तु बड़ा बेटा है, तुझे परिवार का ख्याल रखना है‘ शांतिप्रसाद प्रसाद ने अपनी बात पूरी की ही नहीं थी कि विमल लहराने लगा। सब सन्न रह गए। अचानक ही विमल ने शंकर की आवाज में बोलना शुरू कर दिया ‘बाबूजी, मेरे साथ ईश्वर ने अन्याय किया और आप लोगों तो उससे भी बड़ा अपराध कर डाला, मैं जो करता था, क्या उस पर मेरा वश था ? आपने मुझे परिवार से अलग कर डाला। बाबूजी, मैं भटक रहा हूं, मेरी गति नहीं हुई है। मैं अकाल मौत मारा गया हूं। मुझे वापिस परिवार में स्थान दो।‘‘ ऐसा कहते हुए विमल बेसुध होकर गिर पड़ा। शांति प्रसाद, उनकी पत्नी हतप्रभ हो देर तक यूं ही खड़े रहे।
अतृप्त आत्माओं के किस्से तो शांतिप्रसाद ने खूब सुने थे। अनेक घरों में अपने पित्तरों, अतृप्त पारिवारिक सदस्यों के लिये ‘थाण‘ या ‘नाडा‘ स्थापित किये जाने की बातें उन्होंने सुनी थी। किंतु आज तो उनका साक्षात स्वंय के पुत्र की अतृप्त आत्मा से हो गया। वह हकबका गये। बहुत देर तक विचार शून्य बैठे रहे। परिवार नैतिकता के कटघरे में था। फिर विचारों ने आत्मा के दरवाजे खोलना शुरू किया। देर तक परिवार के सदस्य शंकर की मृत्यू के लिये अपने आप को कोसते रहे। फिर सबने मन कड़ा किया। कुछ निश्चय किया । पहले तो शंकर की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवाया। इसके बाद शंकर के कमरे में ही उसका स्थान बनाया गया। इस स्थान पर रखे दीपक के स्वयमेव प्रज्ज्वलित होते ही परिवार जान गया कि शंकर फिर से परिवार में आ गया है। ना होकर भी शंकर आज परिवार में है। जिस स्थान पर वह रहता है उसे शंकर का थाण या नाडा कहा जाता है।
शांतिप्रसाद के परिवार में अब आने वाला हर मेहमान अब पहले शंकर के थाण  के दर्शन करता है।
कॉपीराईट संजय पुरोहित 

Saturday, September 3, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव : भारत की आशाएं और आशंकाएं

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव विशेष सीरीज - समापन कडी

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव : भारत की आशाएं और आशंकाएं



       अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनावों पर इस विशेष सीरीज की पिछली चार कडियों में दोनों बडी पार्टियों, रिपब्लिकन्‍स और डेमोक्रेटस की नीतियों, उनके उम्‍मीदवारों, अमेरिकी जनता की प्रतिक्रियाएं, विश्‍व के देशों की दिलचस्‍पी पर चर्चा की गई। इस कडी में हम इस चुनाव के उपरान्‍त भारत अमेरिकी रिश्‍तों पर आने वाले सकारात्‍मक या नकारात्‍मक परिणामों का विश्‍लेषण करेंगे। भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र है। अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। दोनों ही देश लम्‍बे समय तक एक दूसरे को नजर अंदाज करते रहे। भारत का रूस की तरफ झुकाव, गुट निरपेक्ष आन्‍दोलन के अगुवा के रूप में उभार, भारत के नेताओं के विश्‍वनेता बनने के ख्‍वाब, अमेरिका के पाकिस्‍तान के प्रति आंख मूंद कर भरोसा करने की नीति आदि कुछ ऐसे विषय रहे जिनके कारण दोनों ही देशों के रिश्‍तों में कोई खास गर्मजोशी नहीं आई। अमेरिका भारत का स्‍वाभाविक मित्र कभी नहीं रहा। भारत चीन युद्ध के दौरान अमेरिका का बेरूखापन, भारत पाकिस्‍तान युद्धों में पाकिस्‍तान की तरफदारी, ईरान के प्रति भारत के सहानुभूतिपूर्ण रवैये से नाराजगी जैसे कई ऐसे विषय रहे जिनके कारण अमेरिका ने भारत को वैसी तवज्‍जो कभी नहीं दी] जिसका कि भारत हकदार था। अमेरिकी राष्‍ट्रपतियों के भारतीय दौरे रस्‍मी होते, समझौते कागजी होते और ताजमहल देख कर वे अपने देश चले जाते। भारत ने भी अमेरिका की तरफ कभी आशा भरी नजरों से नहीं देखा। भारत पाकिस्‍तान युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपने युद्धपोतों तक को तैनात किया था। दुनिया की दूसरी सबसे बडी शक्ति रूस का साथ मिला होने के कारण भारत ने अमेरिका के आगे हाथ नहीं फैलाया। बल्कि यूं कहना चाहिये कि अमेरिका भारत का कुटिल शत्रु ही था। आपको याद होगा कि एक दौर ऐसा भी आया जब भारत में अकाल से लोग भूखे मर रहे थे, किंतु अमेरिका ने अपने देश में अनाज का अधिक उत्‍पादन होने पर उसे समुद्र में फेंक दिया पर भारत को नहीं दिया। पूंजीवाद के गढ के रूप में, दुनिया के शक्तिकेन्‍द्र के रूप में अमेरिका ने रूस के साथ शक्ति संतुलन बनाया। शीत युद्ध की समाप्ति पर अमेरिका दुनिया का 'दादा' बन गया। रूस के कमजोर होने का अमेरिका को तो दुनिया भर में अपनी बढत बनाने का मौका मिला, पर भारत असमंजस में रहा। लेकिन भारत पस्‍त नहीं हुआ। धीरे-धीरे ही सही पर भारत ने अपने कदम ठोस रूप से रखे। भारत के लिये तब भी अमेरिका शत्रु के मित्र शत्रु के रूप में ही परिभाषित रहा था।
      अब दुनिया बदल चुकी है। भारत भी बदल चुका है। अमेरिका भी। आज भारत दुनिया की एक तेजी से बढती अर्थव्‍यवस्‍था है। अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया के देशों के लोगों के लिये भारत एक विशाल बाजार है। इस बाजार के नियंत्रकों, यानी भारत सरकार से दोस्‍ती का हाथ बढाने के लिये व्‍यापारी देश तैयार खडे हैं। वैसे तो चीन, ब्राजील, युरोपियन युनियन का हर देश कतार में है लेकिन अमेरिका इनमें सबसे आगे रहा है। इस का कारण भारत के प्रति दुनिया का बदलता रवैया है। पूर्व पी.एम.मनमोहन सिंह ने भारत के आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया बिल्‍कुल सही समय पर शुरू की। इसका जबर्दस्‍त फायदा भारत को आर्थिक शक्ति की कुर्सी की ओर बढने में हो रहा है। अब भारत उस स्थिति में पहुंच रहा है, जिसमें दूसरों को भारत की दरकार है, भारत को नहीं। भारत के युवाओं के देश होने, सस्‍ती लेबर उपलब्‍ध होने, विशाल जनसंख्‍या में विशाल बाजार के मौजूद होने, प‍रमाणु शक्ति बनने, अंतरिक्ष में लगातार मिल रही सफलताओं ने, एक से एक मारक मिसाईलें, हेलीकॉप्‍टर, सुपर कम्‍प्‍युटर भारत में ही बनाने, सूचना और प्रादयोगिकी क्षेत्र में भारत के युवाओं का कब्‍जा होना जैसी उपलब्धियों ने दुनिया को भारत को सोचने के नजरिये में आमूलचूल बदलाव ला दिया है।
      अमेरिका के नागरिक ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग इस बात को भलि-भांति जानते हैं, कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति का चुनाव कोई भी जीते, अमेरिका की पारम्‍परिक नीतियों में कोई खास बदलाव नहीं आता। अमेरिका दुनिया भर में अपने हितों के लिये ही रणनीतियां बनाता है, उनको क्रियान्वित करता है। फिर भी बदलते विश्‍व परिद़श्‍य में इन उम्‍मीदवारों के भाषणों, नीतियों का विश्‍लेषण करने पर जो तसवीर सामने आती है, वह आशाएं भी जगाती है और आशंकाएं भी। हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्‍मीदवार है। यदि हिलेरी चुनाव जीतती हैं तो मेरा विश्‍लेषण ये है कि भारत के लिये इसके परिणाम सकारात्‍मक होंगे। हिलेरी अपने पति पूर्व राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ अमेरिका की प्रथम लेडी के रूप में दो बार भारत आ चुकी है। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री के रूप में भी भारत का दौरा एक नहीं बल्कि तीन बार कर चुकी हैं। हिलेरी भारत की संस्‍क़ति की रग-रग से वाकिफ है। वह भारत को एक आध्‍यात्मिक देश, एक सुसंस्‍क़त देख, विशाल संपदा वाला और दुनिया का नेत़त्‍व करने के गुण रखने वाला स्‍वाभाविक मित्र मानती हैं। हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा की नीतियों को ही आगे बढाने की पक्षधर है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत के प्रति बराक ओबामा शासन की सैन्‍य, सामरिक, आर्थिक नीतियां ही आगे बढेंगी।

      चाहे कोई नाक-भौं सिकोडे, लाख आलोचना करे, पर यह मानना ही होगा कि बराक ओबामा और नरेन्‍द्र मोदी की कैमिस्‍ट्री ने विश्‍व के दो महानतम लोकतांत्रिक राष्‍ट्रों को बेहद करीब ला दिया है। भारत ने अमेरिका को हमेशा मुददों पर आधारित समर्थन दिया था, लेकिन बदलती हुई विश्‍व व्‍यवस्‍था के चलते भारत ने परम्‍परागत नीतियों से हट कर देशहित में कुछ ऐसे कदम उठाये हैं, जिनका दूरगामी अनुकूल परिणाम सामने आयेगा। हाल ही में अमेरिका और भारत में एक ऐसा रणनीतिक समझौता हुआ है जो अनतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मील का पत्‍थर साबित होगा। भारत ने अपनी जमीन, समुद्र और वायू सीमा का सामरिक एवं अन्‍य कारणों से उपयोग करने की अनुमति अमेरिका को दे दी है। वहीं अमेरिका ने विश्‍वभर में फैले अपने सभी बेस पर भारतीय विमानों के उतरने में सहमति दी है। आतंकवाद से पीडित इन दोनों देशों के बीच बढते जा रहे सटीक समन्‍वय और साझा सम्‍पर्क ने नयी सफलताएं दिलाई है। भारत और पाकिस्‍तान को एक तराजू में तोलने के पूर्व के अमेरिकी रवैये को कब्रिस्‍तान में दफना दिया जा चुका है। आज पाकिस्‍तान आतंकवाद की पाठशाला और मजहबी दरिंदों का देश बन कर रह गया है। भारत हर लिहाज से काफी आगे निकल चुका है। इसके अलावा ओबामा की नीतियों में भारत को प्राथमिकता के आधार पर सूची में सबसे उपर रखा जाने लगा है। यदि हिलेरी इन्‍ही नीतियों पर चले तो भारत को फायदा होगा। इसके अलावा भारतीय भारत की चिंता आप्रवासियों और विशेष रूप से आउटसोर्सिंग को लेकर रही है। हिलेरी वर्तमान नीतियों की ही पक्षधर है, जिसका मतलब ये है कि भारत के छात्रों को पूर्ववत लाभ मिलता रहेगा। हिलेरी का चुना जाना भारत के हित में होगा और यही शायद विश्‍व हित में भी होगा।

      डोनाल्‍ड ट्रम्‍प रिपलब्लिक पार्टी के उम्‍मीदवार हैं। उनका सोच अलग है और अमेरिका की नीतियों से बिल्‍कुल अलग है। स्‍थापित नीतियों को पूरी तरह बदलने की उनकी योजना से भारत को नकारात्‍मक परिणाम झेलने के लिये तैयार रहना होगा। सबसे पहले तो उनके बयान का विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है। मुसलमानों के प्रति उनके सख्‍त रवैये से नयी समस्‍या उत्‍पन्‍न हुई है। उन्‍होंने मुसलमानों को अपने देश में घुसने नहीं देने की धमकी दी है। वैसे हर देश को यह अधिकार है कि वह समस्‍त कदम उठाये जो देश की सुरक्षा के लिये जरूरी हो लेकिन इसकी आड में एक धर्म को कटघरे में खडा करने की उनकी कोशिश खतरनाक है। ट्रंप यकीनन आईएसआईएस सहित सभी आतंकी संगठनों को अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोप से भी भगाने की नीति अपनायेंगे। यदि ऐसा होता है तो यह भारत के लिये खतरे की घंटी है। आतंकियों का अगला टारगेट भारत हो सकता है। उनका मार्ग सरल होगा। अफगानिस्‍तान में अलकायदा, तालीबान उनका स्‍वागत करेंगे तो पाकिस्‍तान पलक पांवडे बिछायेगा। लश्‍कर ए तोयबा, जमात उल दावा जैसे संगठन तो वैसे ही पूरी दूनिया में इस्‍लामिक शासन की स्‍थापना के मंसूबे पाले हुए है। इधर कश्‍मीर में आईएसआईएस के झंडे लहराते हुए लोग उनका रास्‍ता बुहारने के लिये तत्‍पर है। भारत से युवाओं का आईएसआईएस में भर्ती होने का मामला छोटा हो सकता है, पर कम गंभीर नहीं। यह संकेत करता है कि आतंकवादियों की हरकतों के प्रति मौन रहने वाले, चुपचाप अपना काम करने वाले 'स्‍लीपर सेल' जैसे लोग कभी भी अपने असली रंग में सक्रिय हो सकते हैं। इन सबका मिश्रण भारत के लिये घातक हो सकता है।
      ट्रंप के चुने जाने पर दूसरी बडी समस्‍या जिससे भारत को दो चार होना पडेगा, वह है उसके छात्रों के हाथ से रोजगार छीन कर अमेरिकन्‍स को दिये जाने की योजना। अमेरिका की सेकडो कम्‍पनियां विश्‍व और विशेष रूप से भारत के मेधावी छात्रों से अपना काम करवाती हैं। इससे अमेरिका में बेरोजगारी निरन्‍तर बढती जा रही है। ट्रंप ने इस पर कडा रूख अपनाने का वादा किया है। इससे भारत को विदेशी मुद्रा के साथ ही अपने छात्रों के लिये नये क्षेत्र तलाशने होंगे। ट्रंप व्‍यापारी है और उनके चुने जाने पर यह संभव है कि विशाल भारतीय बाजार के मध्‍यनजर भारत उनकी आंखों का तारा भी बन जाये। यह भी हो सकता है कि भारत की वास्‍तविकता के अध्‍ययन के बाद ट्रंप का नजरिया कुछ बदल जाये। भारत के साथ अमेरिका इन विषयों पर और अधिक जुड जाये। मजे की बात यह भी कम नहीं है कि अमेरिका में करोडों डॉलर दोनों उम्‍मीदवारों को भारतीय उद्योगपति चंदे के रूप में दे रहे हैं, यकीनन वे इसका हिसाब भी मांगने की कूवत भी रखते होंगे, जिसका मतलब भारतीय हित होंगे।

      दोनों उम्‍मीदवारों से भारत को आशाएं हैं, तो आशंकाएं भी। हमें उम्‍मीद यही करनी चाहिये कि जो भारत के बारे में सकारात्‍मक सोच रखता हो, भारतीयों का भला करने की भावना रखता हो, वही अगला राष्‍ट्रपति बने। 

Sunday, August 28, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव सीरीज - 4

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव - विशेष फीचर - 4
मुददे और द़ष्टिकोण


      8 नवम्‍बर 2016 को अमेरिकी राष्‍ट्रपति के चुनाव की तिथि नियत है। दुनिया की नजर इस चुनाव पर है। ग्‍लोब पर जितने देश नजर आते हैं, उनमें जिज्ञासा है। तनाव है। उत्‍साह है। आशंका है। उम्‍मीद है। ये तो सभी जानते हैं कि वामवादी रूस का भटठा बैठने के बाद से अमेरिका विश्‍व का स्‍वंयभू लीडर है। सभी देशों के हित-अहित किसी न किसी रूप में अमेरिका से जुडे रहते हैं। नाटो देशों की अगुवाई करने वाला यह शक्तिशाली देश इस धरती पर विचरण करने वाले प्रत्‍येक प्राणी के जीवन को प्रभावित करता है। कई देश आर्थिक मदद की आस लगाये बैठे हैं, कई आर्थिक मदद में इजाफे के इंतजार में है। कई देश अपने घर में उत्‍पात मचाये हुए आतंकियों को जमीदोज करने में अमेरिका की गुहार लगा रहे हैं। कई देशों के नेता ऐसे भी हैं कि अपने देश में विरोधियों को शांत करने के लिये अमेरिकी उम्‍मीद पाले हैं। अमेरिका सबकी पंचायती करता है। लेकिन अपने हितों को सर्वप्रथम रखता है। देश छोटा हो या बडा अमेरिका गुण-दोष के आधार पर वहां अपनी राजनीति चलाता है। प्रभुत्‍व जमाने का ये गुण दशकों से अमेरिका खेल रहा है। इसमें कोई कमी आयेगी, इसकी आशा कम ही है। विश्‍व की नजर इसलिये भी अमेरिकी चुनावों पर है क्‍योंकि खुद अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवारों के विभिन्‍न मुददों पर आ रहे बयानों से स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रही है कि आखिर विश्‍व के प्रति अमेरिका की आगामी रणनीति क्‍या होगी।
      आज हम विभिन्‍न मुददों पर दोनों उम्‍मीदवारों के विचारों का विश्‍लेषण करते हैं। सबसे पहले वह मुददा जिससे डोनाल्‍ड ट्रंप उभरे। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि वे मुसलमानों के अमेरिका धुसने पर प्रतिबंध लगा देंगे। इस बयान ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। रिपब्लिकन्‍स पार्टी के भीतर और देश में भी असमंजस का माहौल हो गया। यही वह बयान था जिससे अमेरिका में राष्‍ट्रवाद उभरा। खुले, स्‍वतंत्र और उदारवादी लोगों के अलावा जितने भी अमेरिकन्‍स हैं उनसे डोनाल्‍ड ट्रंप को भारी समर्थन मिलना आरम्‍भ हुआ। ट्रंप का तो ये भी कहना है कि जो लोग संदिग्‍ध हैं उन्‍हे पर्याप्‍त स्‍क्रीनिंग तक अमेरिका से तब तक बाहर कर देना चाहिये जब तक कि अमेरिकी अधिकारी उनके प्रति पूरी तरह आश्‍वस्‍त नहीं हो जाये। डेमोक्रेटिक उम्‍मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने इस बयान का जमकर विरोध किया। इस बयान से एक प्रकार का उदारवादी और कटटरवादियों के बीच ध्रुवीकरण हुआ। डोनाल्‍ड ट्रंप इस बात के भी मुखर समर्थक हैं कि जो आतंकवाद के आरोप में पकडे गये हैं उन्‍हे कोई कानूनी मदद नहीं दी जानी चाहिये, जबकि हिलेरी इस पक्ष की हैं कि उन्‍हे निष्‍पक्ष सुनवाई का अधिकार दिया जाना चाहिये। ये मुददा चुनाव होने तक गर्म रहने की संभावना बनी रहेगी।
      एक मुददा जो कि हाल ही के पांच-सात सालों में पूरे यूरोप के लिये सांसत बना हुआ है, वह शरणार्थियों का। आई.एस.आई.एस. के बर्बर आतंक, निदोर्षों को गाजर मूली की तरह काटने, बच्‍चों से लेकर व़द्धों तक को पैशाचिक तरीके से मारने से अपनी मौत की आशंका से बदहवास लोग अपना घर-बार छोड कर पलायन कर रहे हैं। इनके पलायन से शरणार्थियों के रूप में एक बडी समस्‍या पूरे यूरोप में आ गई है। ये निश्‍चय ही गंभीर समस्‍या है। युरोपियन देशों में इसको लेकर बहस हो रही है। मानवीयता के आधार पर यूरोप के देश शरणार्थियों की दिल खोल कर मदद कर रहे हैं। लेकिन ये दरियादिली उन्‍हे भारी पड रही है। आर्थिक रूप से तो परायों को बैठे-बिठाये खिलाने पर खजाने खाली हो रहे हैं पर इससे बडा डर इस बात का है कि शरणार्थियों के रूप में जिहादी भी घुस आये हैं। पिछले एक साल में आतंक की जितनी घटनायें यूरोप में हुई, उनके तार कहीं न कहीं आई.एस.आई.एस. से जुडे नजर आये। हर देश को अधिकार है कि वह अपने लोगों को बचाने के लिये किसी भी हद तक जाये। हिलेरी क्लिंटन सीरियन शरणार्थियों को शरण दिये जाने की पक्षधर हैं। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बिल्‍कुल सख्‍त हैं। उनका ये मानना है कि अमेरिका में किसी शरणार्थी को शरण नहीं दी जानी चाहिये। इससे भी आगे बढ कर ट्रंप कहते हैं कि जो आ गये हैं, उन्‍हे भी वापिस भेज देना चाहिये।

      रूस के पतन के बाद से अमेरिका का दो दशक तक कोई बराबरी का राष्‍ट्र नहीं था। यह शून्‍य चीन ने भर दिया है। अब दोनों बराबरी की शक्ति वाले ध्रुव राष्‍ट्र बन गये हैं। चीन की शक्ति से उपर रहने में अमेरिका रक्षा खर्च बढाना चाहता है। साथ ही अमेरिका अपनी सैन्‍य ताकत के बल पर दुनियाभर में अभियान चलाता रहा है। अमेरिका का सैन्‍य खर्च भारी भरकम है। इसमें कटौती किये जाने का मुददा जब सामने आया तो डोनाल्‍ड ट्रंप ने स्‍पष्‍ट मत दिया कि वे चाहते हैं कि अमेरिका को आतंक से लडने के लिये और संसाधनों की आवश्‍यकता है। वे सैन्‍य खर्च में भारी बढोत्‍तरी के पक्ष में है। वहीं हिलेरी क्लिंटन की नजर में वर्तमान सैन्‍य बजट पर्याप्‍त है।
      अगला मुददा है अवैध आप्रवास। अमेरिका इस समस्‍या से सबसे ज्‍यादा पीडित है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी संसद सभी जीवित इंसानों के कल्‍याण के लिये प्रतिबद्ध है। दुनिया भर से लोग अवैध तरीके से कैसे भी करके अमेरिका पहुंचना चाहते हैं। अमेरिका की आर्थिक स्थिति अब ऐसा नहीं है कि उनका खर्च भी उठाये। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर कहती है कि आप्रवासियों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये सरकारी सब्‍सिडी जारी रहनी चाहिये और यहां तक कि उन्‍हे नागरिकता अनुदान भी मिलना चाहिये। ट्रंप इसके सख्‍त विरोधी हैं। इसी से जुडा अगला मुददा है मेक्सिकन आप्रवासी। मेक्सिको के अवैध आप्रवासी अमेरिका के लिये गले की हडडी है। अमेरिका में लाखों मैक्सिकन रहते हैं। अमेरिका का मादक पदार्थों का धंधा लगभग पूरा ही मेक्सिकन के हाथों में है। अमेरिका इनसे चाह कर भी निजात नहीं पा सका है। ट्रंप ने यह बयान देकर इस मुददे को लाईम लाईट में ला दिया है कि वह अमेरिका और मेक्सिको की सीमा पर उंची दीवार बनवाना चाहते हैं जिससे मेक्सिको सीमा से अवैध रूप से घुसने वालों को रोका जा सके। जाहिर सी बात है कि हिलेरी इससे सहमत नहीं है।
      आप यदि भारत में हैं और आपको स्‍वरक्षा के लिये बन्‍दुक खरीदनी है तो सरकारी सिस्‍टम उसे इतना उलझा देता है कि केवल दबंग, प्रभावशाली नागरिक ही बन्‍दुक का लाईसेंस ले कर खरीद पाते हैं। अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां बंदुक संस्‍क़ति का हिस्‍सा बन गयी है। इसे 'गन कल्‍चर' के रूप में परिभाषित किया गया है। अमेरिका में पिस्‍तौल खरीदना उतना ही आसान है जितना कि रेस्‍टोरेंट से पिज्‍जा या हॉट डॉग खरीदना। पिछले पांच सालों में इसी संस्‍क़ति के भयानक परिणाम अमेरिका ने स्‍कूलों, कॉलेजों में छात्रों द्वारा की गई फायरिंग में अपने छात्रों को खोने के रूप भुगता है। बराक ओबामा ने अपने साढे सात सालों में इस पर रोक लगाने की पुरजोर कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाये। अमेरिकी नागरिक इन संहारक घटनाओं के बावजूद भी बन्‍दुक के प्रति अपने अधिकार को छोडने को कत्‍तई तैयार नहीं है। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर यह राय रखती है कि बन्‍दुक लेने वाले व्‍यक्ति की प़ष्‍ठभूमि की सख्‍त जांच होनी चाहिये। बन्‍दुक लेने वाले का मनोवैज्ञानिक परीक्षण होना चाहिये और इसके साथ उसे प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिये। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बन्‍दुक खरीदने के स्‍वतंत्र  अधिकार के हामी हैं। जलवायु परिवर्तन पूरे विश्‍व का एक ज्‍वलंत मुददा है। ग्‍लोबल वार्मिंग से दुनिया भर के देश प्राक़तिक घटनाओं को अप्राक़तिक रूप से घटित होते हुए देख रहे हैं। वैज्ञानिक चिंतित हैं लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप नहीं। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये पर्यावरणीय नियमों में परिवर्तन का ट्रंप विरोध करते हैं। उनका मानना है कि ग्‍लोबल वार्मिंग एक प्राक़तिक घटना है। वहीं इस मुददे पर हिलेरी क्लिंटन नियमों में परिवर्तन की पक्षधर है और वैकल्पिक उर्जा स्रोतों को प्रोत्‍साहन की समर्थक हैं। 

      भारत में समलैंगिकता अभी भी मुख्‍यधारा का मुददा नहीं है, लेकिन अमेरिका में है। हिलेरी क्लिंटन समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिये जाने की वकालत करती है लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप इसे अप्राक़तिक संबंध बताते हुए शादी को एक पुरूष और महिला के मध्‍य संबंध के रूप में ही परिभाषित किये जाने के हामीं हैं। इसी प्रकार आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाने के लिये ट्रंप अमेरिकी कम्‍पनियों पर दबाव बनाने के पक्षधर हैं कि वे अमेरिकी बेरोजगारी दूर करे। इसके दूरगामी परिणाम अमेरिकी विदेश नीति पर पड सकते हैं। हिलेरी क्लिंटन इसकी मुखर विरोधी है। उनके अनुसार प्रत्‍येक कम्‍पनी को यह अधिकार है कि वह अपने व्‍यापार के लिये श्रेष्‍ठ युवाओं को विश्‍व भर में कहीं से नियुक्‍त करे और अपना काम करवाए। अमेरिका में पढने वाले युवाओं को ऋण दिया जाता है। इस ऋण की ब्‍याज दर काफी उच्‍च होती है। यह मांग निरंतर उठती चली आ रही है कि छात्रों को दिये जाने वाले ब्‍याज दर को कम किया जाये और इसके बदले में अमीरों पर टेक्‍स में व़द्धि की जाये। हिलेरी इसकी पक्षधर है और धनकुबेर ट्रंप स्‍वाभाविक रूप से इसके विरोधी हैं। ओबामा अपने कार्यकाल में सभी अमेरिकी नागरिकों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दायरे में लाने के लिये 'अफोर्डेबल केयर एक्‍ट' में सुधार कर स्‍वास्‍थ्‍य बीमा करवाया जाना सभी के लिये अनिवार्य कर दिया गया। इसे अमेरिकी जनता 'ओबामा केयर' के रूप में भी जानती है। डेमोक्रेटस इस पर समर्थन जुटा रहे हैं वहीं रिपलिब्‍लकन्‍स का ये कहना है कि यदि वे सत्‍ता में आये तो इसे हटा देंगे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के केवल एक प्रतिशत लोगों के पास पूरी अमेरिका की नब्‍बे फीसदी दौलत है। इस घोर असमानता के मुददे को हिलेरी क्लिंटन के सामने पार्टी की पूर्व उम्‍मीदवार सेंडर्स ने उठाया था। आर्थिक असमानता का यह मुददा महत्‍वपूर्ण है। अमेरिकी जनता सोशल वेलफेयर पॉलिसी, जो कि यूरोपियन युनियन में लागू किया गया है, की तर्ज पर लागू किये जाने की उम्‍मीद हिलेरी क्लिंटन से की जा रही है। डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मुददे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यदि डोनाल्‍ड ट्रंप जीतते हैं तो अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी 'नासा' को भी आने वाले समय में संकट का सामना करना पड सकता है। डोनाल्‍ड ट्रंप का मानना है कि लोगों को अंतरिक्ष यात्राएं करवाने का काम नासा का नहीं है। यह काम निजी कम्‍पनियों पर छोड दिया जाना चाहिये। हिलेरी क्लिंटन इस बात पर सहमत नहीं है और नासा के किसी भी काम में हस्‍तक्षेप को उचित नहीं मानती। 
      बहरहाल मुददे दर मुददे पर दोनों उम्‍मीदवारों में काफी मतभेद है लेकिन कुछ मुददे ऐसे भी हैं जिन पर दोनों उम्‍मीदवारों की राय एक समान हैं। दोनों ही उम्‍मीदवार पुरूष और महिला को समान कार्य के लिये समान वेतन दिये जाने के पक्षधर हैं। पित़त्‍व निधि की सरकारी नीति को निरन्‍तर जारी रखने के लिये भी दोनों ही दिग्‍गज हामी भरते हैं। मादक पदार्थ और चिकित्‍सा के लिये आवश्‍यक मारीजुआना के चिकित्‍सीय प्रयोग की अनुमति प्रदान किये जाने पर भी दोनों ही उम्‍मीदवार अपनी सहमति देते हैं। आईएसआईएस जैसे बर्बर आतंकवादी संगठन सहित अल कायदा और अन्‍य आतंकी संगठनों को समाप्‍त करने के लिये भी दोनों दल एक राय रखते हैं। लेकिन ऐसे मुददे कम हैं जहां दोनों के विचार एक जैसे हों। ज्‍यादातर मुददों पर बंटी ये दोनों पार्टिंया, दोनों उम्‍मीदवार। अमेरिकी जनता इन्‍हे अपनी कसौटी पर एक एक मुददे के साथ परखेगी। गुणावगुण के आधार पर किसे भविष्‍य का राष्‍ट्रपति चुनेगी, इसकी प्रतीक्षा समूचा विश्‍व कर रहा है। 
      8 नवम्‍बर 2016 को अमेरिकी राष्‍ट्रपति के चुनाव की तिथि नियत है। दुनिया की नजर इस चुनाव पर है। ग्‍लोब पर जितने देश नजर आते हैं, उनमें जिज्ञासा है। तनाव है। उत्‍साह है। आशंका है। उम्‍मीद है। ये तो सभी जानते हैं कि वामवादी रूस का भटठा बैठने के बाद से अमेरिका विश्‍व का स्‍वंयभू लीडर है। सभी देशों के हित-अहित किसी न किसी रूप में अमेरिका से जुडे रहते हैं। नाटो देशों की अगुवाई करने वाला यह शक्तिशाली देश इस धरती पर विचरण करने वाले प्रत्‍येक प्राणी के जीवन को प्रभावित करता है। कई देश आर्थिक मदद की आस लगाये बैठे हैं, कई आर्थिक मदद में इजाफे के इंतजार में है। कई देश अपने घर में उत्‍पात मचाये हुए आतंकियों को जमीदोज करने में अमेरिका की गुहार लगा रहे हैं। कई देशों के नेता ऐसे भी हैं कि अपने देश में विरोधियों को शांत करने के लिये अमेरिकी उम्‍मीद पाले हैं। अमेरिका सबकी पंचायती करता है। लेकिन अपने हितों को सर्वप्रथम रखता है। देश छोटा हो या बडा अमेरिका गुण-दोष के आधार पर वहां अपनी राजनीति चलाता है। प्रभुत्‍व जमाने का ये गुण दशकों से अमेरिका खेल रहा है। इसमें कोई कमी आयेगी, इसकी आशा कम ही है। विश्‍व की नजर इसलिये भी अमेरिकी चुनावों पर है क्‍योंकि खुद अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवारों के विभिन्‍न मुददों पर आ रहे बयानों से स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रही है कि आखिर विश्‍व के प्रति अमेरिका की आगामी रणनीति क्‍या होगी।
      आज हम विभिन्‍न मुददों पर दोनों उम्‍मीदवारों के विचारों का विश्‍लेषण करते हैं। सबसे पहले वह मुददा जिससे डोनाल्‍ड ट्रंप उभरे। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि वे मुसलमानों के अमेरिका धुसने पर प्रतिबंध लगा देंगे। इस बयान ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। रिपब्लिकन्‍स पार्टी के भीतर और देश में भी असमंजस का माहौल हो गया। यही वह बयान था जिससे अमेरिका में राष्‍ट्रवाद उभरा। खुले, स्‍वतंत्र और उदारवादी लोगों के अलावा जितने भी अमेरिकन्‍स हैं उनसे डोनाल्‍ड ट्रंप को भारी समर्थन मिलना आरम्‍भ हुआ। ट्रंप का तो ये भी कहना है कि जो लोग संदिग्‍ध हैं उन्‍हे पर्याप्‍त स्‍क्रीनिंग तक अमेरिका से तब तक बाहर कर देना चाहिये जब तक कि अमेरिकी अधिकारी उनके प्रति पूरी तरह आश्‍वस्‍त नहीं हो जाये। डेमोक्रेटिक उम्‍मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने इस बयान का जमकर विरोध किया। इस बयान से एक प्रकार का उदारवादी और कटटरवादियों के बीच ध्रुवीकरण हुआ। डोनाल्‍ड ट्रंप इस बात के भी मुखर समर्थक हैं कि जो आतंकवाद के आरोप में पकडे गये हैं उन्‍हे कोई कानूनी मदद नहीं दी जानी चाहिये, जबकि हिलेरी इस पक्ष की हैं कि उन्‍हे निष्‍पक्ष सुनवाई का अधिकार दिया जाना चाहिये। ये मुददा चुनाव होने तक गर्म रहने की संभावना बनी रहेगी।
      एक मुददा जो कि हाल ही के पांच-सात सालों में पूरे यूरोप के लिये सांसत बना हुआ है, वह शरणार्थियों का। आई.एस.आई.एस. के बर्बर आतंक, निदोर्षों को गाजर मूली की तरह काटने, बच्‍चों से लेकर व़द्धों तक को पैशाचिक तरीके से मारने से अपनी मौत की आशंका से बदहवास लोग अपना घर-बार छोड कर पलायन कर रहे हैं। इनके पलायन से शरणार्थियों के रूप में एक बडी समस्‍या पूरे यूरोप में आ गई है। ये निश्‍चय ही गंभीर समस्‍या है। युरोपियन देशों में इसको लेकर बहस हो रही है। मानवीयता के आधार पर यूरोप के देश शरणार्थियों की दिल खोल कर मदद कर रहे हैं। लेकिन ये दरियादिली उन्‍हे भारी पड रही है। आर्थिक रूप से तो परायों को बैठे-बिठाये खिलाने पर खजाने खाली हो रहे हैं पर इससे बडा डर इस बात का है कि शरणार्थियों के रूप में जिहादी भी घुस आये हैं। पिछले एक साल में आतंक की जितनी घटनायें यूरोप में हुई, उनके तार कहीं न कहीं आई.एस.आई.एस. से जुडे नजर आये। हर देश को अधिकार है कि वह अपने लोगों को बचाने के लिये किसी भी हद तक जाये। हिलेरी क्लिंटन सीरियन शरणार्थियों को शरण दिये जाने की पक्षधर हैं। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बिल्‍कुल सख्‍त हैं। उनका ये मानना है कि अमेरिका में किसी शरणार्थी को शरण नहीं दी जानी चाहिये। इससे भी आगे बढ कर ट्रंप कहते हैं कि जो आ गये हैं, उन्‍हे भी वापिस भेज देना चाहिये।
      रूस के पतन के बाद से अमेरिका का दो दशक तक कोई बराबरी का राष्‍ट्र नहीं था। यह शून्‍य चीन ने भर दिया है। अब दोनों बराबरी की शक्ति वाले ध्रुव राष्‍ट्र बन गये हैं। चीन की शक्ति से उपर रहने में अमेरिका रक्षा खर्च बढाना चाहता है। साथ ही अमेरिका अपनी सैन्‍य ताकत के बल पर दुनियाभर में अभियान चलाता रहा है। अमेरिका का सैन्‍य खर्च भारी भरकम है। इसमें कटौती किये जाने का मुददा जब सामने आया तो डोनाल्‍ड ट्रंप ने स्‍पष्‍ट मत दिया कि वे चाहते हैं कि अमेरिका को आतंक से लडने के लिये और संसाधनों की आवश्‍यकता है। वे सैन्‍य खर्च में भारी बढोत्‍तरी के पक्ष में है। वहीं हिलेरी क्लिंटन की नजर में वर्तमान सैन्‍य बजट पर्याप्‍त है।
      अगला मुददा है अवैध आप्रवास। अमेरिका इस समस्‍या से सबसे ज्‍यादा पीडित है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी संसद सभी जीवित इंसानों के कल्‍याण के लिये प्रतिबद्ध है। दुनिया भर से लोग अवैध तरीके से कैसे भी करके अमेरिका पहुंचना चाहते हैं। अमेरिका की आर्थिक स्थिति अब ऐसा नहीं है कि उनका खर्च भी उठाये। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर कहती है कि आप्रवासियों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये सरकारी सब्‍सिडी जारी रहनी चाहिये और यहां तक कि उन्‍हे नागरिकता अनुदान भी मिलना चाहिये। ट्रंप इसके सख्‍त विरोधी हैं। इसी से जुडा अगला मुददा है मेक्सिकन आप्रवासी। मेक्सिको के अवैध आप्रवासी अमेरिका के लिये गले की हडडी है। अमेरिका में लाखों मैक्सिकन रहते हैं। अमेरिका का मादक पदार्थों का धंधा लगभग पूरा ही मेक्सिकन के हाथों में है। अमेरिका इनसे चाह कर भी निजात नहीं पा सका है। ट्रंप ने यह बयान देकर इस मुददे को लाईम लाईट में ला दिया है कि वह अमेरिका और मेक्सिको की सीमा पर उंची दीवार बनवाना चाहते हैं जिससे मेक्सिको सीमा से अवैध रूप से घुसने वालों को रोका जा सके। जाहिर सी बात है कि हिलेरी इससे सहमत नहीं है।
      आप यदि भारत में हैं और आपको स्‍वरक्षा के लिये बन्‍दुक खरीदनी है तो सरकारी सिस्‍टम उसे इतना उलझा देता है कि केवल दबंग, प्रभावशाली नागरिक ही बन्‍दुक का लाईसेंस ले कर खरीद पाते हैं। अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां बंदुक संस्‍क़ति का हिस्‍सा बन गयी है। इसे 'गन कल्‍चर' के रूप में परिभाषित किया गया है। अमेरिका में पिस्‍तौल खरीदना उतना ही आसान है जितना कि रेस्‍टोरेंट से पिज्‍जा या हॉट डॉग खरीदना। पिछले पांच सालों में इसी संस्‍क़ति के भयानक परिणाम अमेरिका ने स्‍कूलों, कॉलेजों में छात्रों द्वारा की गई फायरिंग में अपने छात्रों को खोने के रूप भुगता है। बराक ओबामा ने अपने साढे सात सालों में इस पर रोक लगाने की पुरजोर कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाये। अमेरिकी नागरिक इन संहारक घटनाओं के बावजूद भी बन्‍दुक के प्रति अपने अधिकार को छोडने को कत्‍तई तैयार नहीं है। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर यह राय रखती है कि बन्‍दुक लेने वाले व्‍यक्ति की प़ष्‍ठभूमि की सख्‍त जांच होनी चाहिये। बन्‍दुक लेने वाले का मनोवैज्ञानिक परीक्षण होना चाहिये और इसके साथ उसे प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिये। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बन्‍दुक खरीदने के स्‍वतंत्र  अधिकार के हामी हैं। जलवायु परिवर्तन पूरे विश्‍व का एक ज्‍वलंत मुददा है। ग्‍लोबल वार्मिंग से दुनिया भर के देश प्राक़तिक घटनाओं को अप्राक़तिक रूप से घटित होते हुए देख रहे हैं। वैज्ञानिक चिंतित हैं लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप नहीं। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये पर्यावरणीय नियमों में परिवर्तन का ट्रंप विरोध करते हैं। उनका मानना है कि ग्‍लोबल वार्मिंग एक प्राक़तिक घटना है। वहीं इस मुददे पर हिलेरी क्लिंटन नियमों में परिवर्तन की पक्षधर है और वैकल्पिक उर्जा स्रोतों को प्रोत्‍साहन की समर्थक हैं। 
      भारत में समलैंगिकता अभी भी मुख्‍यधारा का मुददा नहीं है, लेकिन अमेरिका में है। हिलेरी क्लिंटन समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिये जाने की वकालत करती है लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप इसे अप्राक़तिक संबंध बताते हुए शादी को एक पुरूष और महिला के मध्‍य संबंध के रूप में ही परिभाषित किये जाने के हामीं हैं। इसी प्रकार आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाने के लिये ट्रंप अमेरिकी कम्‍पनियों पर दबाव बनाने के पक्षधर हैं कि वे अमेरिकी बेरोजगारी दूर करे। इसके दूरगामी परिणाम अमेरिकी विदेश नीति पर पड सकते हैं। हिलेरी क्लिंटन इसकी मुखर विरोधी है। उनके अनुसार प्रत्‍येक कम्‍पनी को यह अधिकार है कि वह अपने व्‍यापार के लिये श्रेष्‍ठ युवाओं को विश्‍व भर में कहीं से नियुक्‍त करे और अपना काम करवाए। अमेरिका में पढने वाले युवाओं को ऋण दिया जाता है। इस ऋण की ब्‍याज दर काफी उच्‍च होती है। यह मांग निरंतर उठती चली आ रही है कि छात्रों को दिये जाने वाले ब्‍याज दर को कम किया जाये और इसके बदले में अमीरों पर टेक्‍स में व़द्धि की जाये। हिलेरी इसकी पक्षधर है और धनकुबेर ट्रंप स्‍वाभाविक रूप से इसके विरोधी हैं। ओबामा अपने कार्यकाल में सभी अमेरिकी नागरिकों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दायरे में लाने के लिये 'अफोर्डेबल केयर एक्‍ट' में सुधार कर स्‍वास्‍थ्‍य बीमा करवाया जाना सभी के लिये अनिवार्य कर दिया गया। इसे अमेरिकी जनता 'ओबामा केयर' के रूप में भी जानती है। डेमोक्रेटस इस पर समर्थन जुटा रहे हैं वहीं रिपलिब्‍लकन्‍स का ये कहना है कि यदि वे सत्‍ता में आये तो इसे हटा देंगे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के केवल एक प्रतिशत लोगों के पास पूरी अमेरिका की नब्‍बे फीसदी दौलत है। इस घोर असमानता के मुददे को हिलेरी क्लिंटन के सामने पार्टी की पूर्व उम्‍मीदवार सेंडर्स ने उठाया था। आर्थिक असमानता का यह मुददा महत्‍वपूर्ण है। अमेरिकी जनता सोशल वेलफेयर पॉलिसी, जो कि यूरोपियन युनियन में लागू किया गया है, की तर्ज पर लागू किये जाने की उम्‍मीद हिलेरी क्लिंटन से की जा रही है। डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मुददे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यदि डोनाल्‍ड ट्रंप जीतते हैं तो अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी 'नासा' को भी आने वाले समय में संकट का सामना करना पड सकता है। डोनाल्‍ड ट्रंप का मानना है कि लोगों को अंतरिक्ष यात्राएं करवाने का काम नासा का नहीं है। यह काम निजी कम्‍पनियों पर छोड दिया जाना चाहिये। हिलेरी क्लिंटन इस बात पर सहमत नहीं है और नासा के किसी भी काम में हस्‍तक्षेप को उचित नहीं मानती। 

      बहरहाल मुददे दर मुददे पर दोनों उम्‍मीदवारों में काफी मतभेद है लेकिन कुछ मुददे ऐसे भी हैं जिन पर दोनों उम्‍मीदवारों की राय एक समान हैं। दोनों ही उम्‍मीदवार पुरूष और महिला को समान कार्य के लिये समान वेतन दिये जाने के पक्षधर हैं। पित़त्‍व निधि की सरकारी नीति को निरन्‍तर जारी रखने के लिये भी दोनों ही दिग्‍गज हामी भरते हैं। मादक पदार्थ और चिकित्‍सा के लिये आवश्‍यक मारीजुआना के चिकित्‍सीय प्रयोग की अनुमति प्रदान किये जाने पर भी दोनों ही उम्‍मीदवार अपनी सहमति देते हैं। आईएसआईएस जैसे बर्बर आतंकवादी संगठन सहित अल कायदा और अन्‍य आतंकी संगठनों को समाप्‍त करने के लिये भी दोनों दल एक राय रखते हैं। लेकिन ऐसे मुददे कम हैं जहां दोनों के विचार एक जैसे हों। ज्‍यादातर मुददों पर बंटी ये दोनों पार्टिंया, दोनों उम्‍मीदवार। अमेरिकी जनता इन्‍हे अपनी कसौटी पर एक एक मुददे के साथ परखेगी। गुणावगुण के आधार पर किसे भविष्‍य का राष्‍ट्रपति चुनेगी, इसकी प्रतीक्षा समूचा विश्‍व कर रहा है।
 

Saturday, August 20, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव विशेष सीरीज - 3

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव-3

ट्रंप बनाम हिलेरी : प्‍लस बनाम माईनस
      वर्तमान अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की लोकप्रियता के लिये हाल ही में हुए सर्वेक्षण में 54 फीसदी लोगों ने उन्‍हे पसंद किया। यह बात इसलिये जरूरी है कि इस शख्‍स ने साढे सात साल से अमेरिकी राष्‍ट्रपति का पद संभाल रखा है। सामान्‍यता विदा होने के वक्‍त समर्थन की घडी उल्‍टी चलने लगती है, किंतु ओबामा के साथ ऐसा नहीं है। ये तो हुई एक बात पर दूसरी और हकीकत की बात ये है कि बराक ओबामा की विदाई का वक्‍त करीब आ रहा है। कुछ माह का समय शेष रहा है। अगले चार सालों तक विश्‍व के सबसे शक्तिशाली व्‍यक्ति के पद के चुनाव का बिगुल बज चुका है। ट्रंप बनाम हिलेरी। दोनों ही उम्‍मीदवार लगभग बराबरी पर चल रहे हैं। मजे की बात ये भी है कि दोनों ही उम्‍मीदवारों को अपनी ही पार्टी में शत-प्रतिशत समर्थन नहीं मिला। डोनाल्‍ड ट्रंप ने तो अपनी गिनती शून्‍य से ही आरम्‍भ की। हिलेरी भी जॉन मैक्‍क्‍ेन और सैंडर्स से बराबरी की टक्‍कर के बाद आगे बढी। रिपलब्लिकन्‍स तो आज भी एकमत से अपने उम्‍मीदवार के पक्ष में नहीं है। डोनाल्‍ड ट्रंप की उम्‍मीदवार से रिपलब्लिकन्‍स भी परेशान हैं। हाल ही में लगभग पचास वरिष्‍ठ रिपलब्लिकन्‍स ने एक बयान जारी कर कहा है कि 'यदि डोनाल्‍ड ट्रंप राष्‍ट्रपति बनते हैं, तो यह सबसे खतरनाक राष्‍ट्रपति होंगे'। यहां यह बात उल्‍लेखनीय है कि यह बयान जारी करने वाले वे रिपलब्लिकन्‍स हैं, जिन्‍होने जॉर्ज डब्‍ल्‍यू बुश के साथ काम किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डोनाल्‍ड ट्रंप के लिये अपनी पार्टी की राह भी आसान नहीं रही होगी। डोनाल्‍ड ट्रंप के लिये जितनी मुश्किलें पार्टी ने खडी की, लगभग उतनी ही मुश्किलों के साथ हिलेरी क्लिंटन भी अपनी पार्टी में आगे बढी। लगभग आठ साल पहले के चुनावों में पार्टी की उम्‍मीदवारी से चूकने के बाद इस बार हिलेरी ही डेमोक्रेटिक पार्टी की स्‍वाभाविक उम्‍मीदवार थी। लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गये, हिलेरी के लिये भी राह मुश्किल होती गई। जॉन मैक्‍केन और सैंडर्स ने हिलेरी को कडी टक्‍कर दी, लेकिन आखिरकार बाजी हिलेरी के हाथ लगी। ये सब बातें भूतकाल के गर्भ में समा चुकी है, इतिहास के पन्‍ने बन चुकी है। वर्तमान में चुनाव दो चेहरों के बीच लडा जा रहा है - ट्रंप और हिलेरी
      चुनाव अभियान तेजी पकड़ रहा है। हर दिन कोई ना कोई नई बात आती जा रही है। हिलेरी क्लिंटन का कैम्‍प आरम्भिक दिनों में उतना सक्रिय नजर नहीं आ रहा था। जैसे-जैसे डोनाल्‍ड ट्रम्‍प की लोकप्रियता बढती जा रही थी, उसने एकबारगी तो डेमोक्रेटस को हिला कर रख दिया। हिलेरी हार मानने वाली महिला है ही नहीं। पूरी तरह मैदान में कूदने के बाद हिलेरी के तेवर बदल गये हैं। अब वह ट्रम्‍प के हमलो से खुद का बचाव ही नहीं कर रही, बल्कि आगे बढ कर हमले कर भी रही है। अमेरिका दुनिया का दबंग देश है। उसका राष्‍ट्रपति बनने के लिये मुख्‍य दोनों ही दलों ने इस बार जो प्रत्‍याशी मैदान में उतारे हैं, वे पहले के सभी चुनावों से अलग हट कर है। तेजी से बदलती जा रही दुनिया में चुनावों के रंग-रूप भी बदल गये हैं। नीतियों से ज्‍यादा व्‍यक्ति और उससे भी ज्‍यादा व्‍यक्ति की निजी जिंदगी चुनावों में चटखारों के साथ हावी हो रही है। लेकिन इसके साथ ही दोनों उम्‍मीदवारों के गुण-दोष भी कसौटी पर हैं। 
      पहले बात डोनाल्‍ड ट्रंप के प्‍लस-माईनस की। अमेरिका में रिपलब्लिकन पार्टी को 'ग्रेंड ओल्‍ड पार्टी' कहा जाता है। संयोग है कि रिपलब्लिकन्‍स ने अपना उम्‍मीदवार भी 'ग्रेंड ओल्‍डमैन' को ही चुना है। डोनाल्‍ड ट्रंप अपने आक्रामक तेवरों के साथ मैदान में आये हैं। इस तेजी से बदलते, खुले स्‍वतंत्र अमेरिकी समाज में वे अपना नया शफूगा लाये हैं। ट्रंप के अब तक के भाषणो का विश्‍लेषण किया जाये, तो लगता है कि वे अमेरिका को एक बंद समाज के रूप में आगे बढाना चाहते हैं। उनके बयान उनको न केवल अमेरिकी लोगों अपितु दुनिया भर के लोगों के निशाने पर ले आते हैं। कहना ही होगा कि आरम्भिक तौर पर यह माना जा रहा था कि यदि ट्रंप सामने आते हैं, तो हिलेरी आसानी से उन्‍हे हरा देगी। कुछ राजनैतिक विचारकों ने ट्रंप के रिपलब्लिकन्‍स उम्‍मीदवार बनने पर मखौल भी उडाया। समय गुजरने के साथ ही ट्रंप अपने बड़बोलेपन के साथ किसी स्‍पाईडर मैन की तरह उछल-उछल कर आगे बढ गये। ट्रंप की अति हमलावार नीति, मुसलमानों को अमेरिका में घुसने नहीं देने संबंधी बयान और कई मुददों पर बेहद कठोर बयान से हवा बदलने लगी। शुरूआत में बेवकुफाना बयानों के कारण उन्‍हे अधिक गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था, लेकिन बाद में वह अपनी जमीन बनाने मे सफल हो गये। जहां अमेरिका के एक तबके के लोग ट्रंप की इन नीतियों के कारण खफा नजर आते हैं, वहीं एक बडा तबका ऐसा भी है जो ट्रंप से सहमत नजर आता है। अमेरिकी मूल निवासियों की बढती बेरोजगारी, अमेरिकी समाज को खोखला करने वाले मादक पदार्थों की तस्‍करी पर ट्रंप की दो टूक उन्‍हे मुख्‍यधारा में ले आई। आतंकवाद को एक धर्म विशेष से जोड़ने की तुच्‍छ सी अमेरिकी मानसिकता को ट्रंप ने मुददा बना कर रख दिया। जिन लोगों की समझ में ये बातें ट्रंप के लिये माईनस पोईन्‍ट थीं, वही हकीकतन प्‍लस बन कर ट्रंप को आगे बढा ले गई। आतंक का धार्मिक चेहरा पढ सकने वाले अमेरिकियों को ट्रंप के रूप में विकल्‍प नजर आने लगा। महिलाओं और उदारवादी नेताओ के संबंध में उनके बयान भी उनके लिये नुकसानदेह ही हुए। उनके कई बयान तो इतने बेहुदा रहे कि अमेरिकियों को उनके मानसिक संतुलन पर ही शक हुआ। उत्‍तर कोरिया के तानाशाह शासक किंग जोंग उन को अमेरिका बुलाने जैसे कई बयान ट्रंप को उलटे भी पडे। फिर भी ट्रंप की लोकप्रियता तेजी से बढी। आतंकवाद पर उनका स्‍पष्‍ट कडा रूख, आई.एस.आई.एस. से निर्णायक लडाई लड़ने के संकल्‍प, 'अमेरिका के हित प्रथम' नीति, आउटसोर्सिंग में कटौती, अमेरिकी बेरोजगारी पर ठोस नीति, मैक्सिको से आव्रजन पर कडी दीवार जैसे कुछ मुददें हैं, जिन पर ट्रंप की बातें लोगों को पसंद आ रही है। यह हिलेरी के लिये चिंता की बात है। ट्रंप अरबपति व्‍यापारी है। अमेरिकी चुनावों में वे अपनी दौलत को जल-प्रपात से झर रहे पानी की तरह बरसा रहे हैं। अमेरिकी जनता से ट्रंप को मिल रहा समर्थन उनके इन्‍ही प्‍लस-माईनस पर निर्भर करता है।

      हिलेरी क्लिंटन पूरी तरह अलग हैं। वे द़ढ निश्‍चयी है, कठोर है, तार्किक है। ट्रंप से लगभग उलट। अमेरिका ने 234 साल लगा दिये तब कहीं जाकर पहला अश्‍वेत अमेरिकी राष्‍ट्रपति बन पाया। लगभग इतना ही समय अमेरिका ने लगाया जब 227 सालों बाद किसी मुख्‍य दल ने अपना उम्‍मीदवार महिला को बनाया। लेकिन इतिहास का यह दूसरा प़ष्‍ठ अ‍भी आधा ही है। हिलेरी को इतिहास बनाने के लिये इसे पूरा करना होगा। हिलेरी उम्‍मीद की लहर पर सवार नहीं है। हां, महिला होने के नाते और इससे भी अधिक अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के इतने करीब पहुंचने वाली 'पहली महिला' के रूप में हिलेरी को अतिरिक्‍त समर्थन बोनस के रूप में मिलेगा, ये तो तय है। उन लोगों का भी समर्थन हिलेरी को मिलेगा, जो अमेरिका के सबसे उदार और मजबूत लोकतत्र में यकीन रखते हैं। हिलेरी के अमेरिकी विदेशमंत्री के रूप में हुए कार्यकाल को अमेरिकी जनता ने भलि-भांति देखा हुआ है। हिलेरी पूर्णतया सफल नहीं हुई तो यह भी सही बात है कि असफल भी नहीं हुई। उनके प्रति अमेरिकी जनता में विश्‍वास है और वह पहले कम, तो अब अधिक रूप से लोगों के रैलियों में आने से दिख रहा है। ओबामा की लोकप्रियता का फायदा, पति बिल क्लिंटन की मेहनत के साथ हिलेरी आगे बढ रही है। हिलेरी कूटनीतिज्ञ हैं और ट्रंप के भ्रामक आक्रमण का जवाब तर्कपूर्ण ढंग से दे रही हैं। वे अमेरिकी जनता से निरन्‍तर कह रही है कि आपको 'नफरत और प्रेम के मध्‍य किसी एक को चुनना है'। हिलेरी को यह भी मालूम है कि वैश्‍वरीकरण आज विश्‍व व्‍यवस्‍था का मुख्‍य अंग बन चुका है। कोई देश ना तो इससे पीछे लौट सकता, ना हट सकता है। इसी बात को वे अपने बयानों में उठा भी रही है कि, ''कोई ऐसा व्‍यक्ति है जा वैश्‍वरीकरण की प्रक्रिया को ही रिवर्स-गियर में डालना चाहता है'' कहना ना होगा कि उनका इशारा किस ओर है। वे आम तौर पर अगली अमेरिकी राष्‍ट्रपति के रूप में स्‍वाभाविक तौर पर सही उम्‍मीदवार लगती हैं लेकिन लगना और हकीकत में हो जाना, दो अलग अलग बातें हैं। हिलेरी पारम्‍परिक अमेरिकी संस्‍क़ति से आती है। उनकी नीतियों में तर्क होता है। सामाजिक मुददों पर वे भावनात्‍मक तर्क को प्राथमिकता देती है, तो सामरिक मुददों पर 'अमेरिका फर्स्‍ट' नीति पर। अराकांसास प्रान्‍त की प्रथम लेडी के रूप में, अमेरिका की प्रथम लेडी के रूप में, सीनेटर के रूप में और अमेरिकी विदेश मंत्री के रूप में अर्जित किये गये अपार अनुभव उनके लिये ट्रंप की अकूत दौलत का सामना करने के लिये पर्याप्‍त लगती है। दूनिया भर के नेताओं से उनका अच्‍छा संबंध है। वे सही समय पर, सही पद के लिये, सही उम्‍मीदवार नजर आती है। अपनी कार्यशैली और कार्यक्षमता से उन्‍होंने निरन्‍तर ही देश के भीतर और बाहर लोगों को प्रभावित किये रखा है। वे एक ही समय लिबरल भी है और कन्‍जरवेटिव भी। यही बात हिलेरी क्लिंटन को दूसरों से अलग बनाती है। कागजों में, व्‍यवहार में, कुशलता में और प्रभावशीलता में निश्‍चय ही हिलेरी, ट्रंप से इक्‍कीस है किंतु लोकतंत्र की यही तो खूबी है कि उन्‍नीस हो या इक्‍कीस, निर्णय जनता ही करती है। अमेरिकी जनता के इस फैसले की घड़ी अब करीब आ रही है। 

Sunday, August 14, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव --- 2
    दिलेरी से मैदान में डटी हिलेरी

      हिलेरी क्लिंटन। पूरा नाम हिलेरी डायेन रोढम क्लिंटन। उम्र 69 वर्ष। अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की अधिकत उम्‍मीदवार। आम तौर पर हम हिलेरी क्लिंटन को अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रति बिल क्लिंटन की पत्‍नी के रूप में ही जानते हैं। हिलेरी क्लिंटन का परिचय इससे कहीं अधिक और कई माईनों में तो बिल क्लिंटन से अधिक प्रभावशाली भी है। 26 अक्‍टूबर 1947 में जन्‍मी हिलेरी अमेरिका के इलीनॉय प्रान्‍त की निवासी है। हिलेरी ने वर्ष 1969 में वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय से पोलिटिकल साईन्‍स में पोस्‍ट ग्रेजुएड डिग्री प्राप्‍त की। इसके बाद वर्ष 1973 में हिलेरी ने येल लॉ स्‍कूल से वकालत की पढाई पूरी की। इसके बाद अमेरिका के अरकांसास प्रोविन्‍स में वकालत आरम्‍भ की। वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय में हिलेरी की मुलाकात बिल क्लिंटन से हुई। दोनों ने 1975 में विवाह कर लिया। इनके एक पुत्री चेल्‍सा क्लिंटन है जिसका जनम 1980 में हुआ। हिलेरी एक कठोर तर्कशास्‍त्री है। विषयों की गहरी समझ और तार्किक पकड के बाद ही जुबान खोलने वाली महिला है। वकालत के पेशे में आने के कुछ ही समय बाद वह बेहद प्रभावशाली वकीलों की सूची में शामिल हो गई। अमेरिका के सर्वकालिक प्रभावी वकीलों की सूची में हिलेरी क्लिंटन का नाम शामिल हुआ। सफलता की सीढियां हिलेरी ने धीरे धीरे किंतु ठोस रूप से चढी। हिलेरी न्‍यूयॉर्क प्रोविन्‍स की कनिष्‍ठ सेनेटर रह चुकी है। अमेरिका के बयालिसवें राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में वर्ष 1993 से 2001 तक हिलेरी अमेरिका की प्रथम महिला रही। इससे आगे बढते हुए वर्ष 2001 में हिलेरी ने अमेरिकी सेनेटर का कार्य आरम्‍भ किया। हिलेरी हमेशा से दिलेरी के लिये जानी जाती रही है। येल लॉ स्‍कूल में अपने पहले ही भाषण से वह सुर्खियों में आई। अमेरिकी राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में बिल क्लिंटन-मोनिका लेंविस्किी प्रेम संबंधों पर अमेरिका सहित पूरे विश्‍व में जब गॉसिप का माहौल गरम था, उसी चटखारों से भरी गरमी में सबसे ज्‍यादा झुलसी महिला कोई थी तो वह हिलेरी क्लिंटन थी। हिलेरी ने अपने छलिये और विश्‍वासघाती पति राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन को माफ कर उस दौर में अमेरिकी समुदाय में अपना कद बहुत उंचा उठा लिया।
      वर्ष 2008 आया। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्‍ट्रपति पद के लिये उम्‍मीदवार का चयन होना था। हिलेरी क्लिंटन दौड में सबसे आगे थी। सब कुछ ठीक चलता रहा किंतु धीरे धीरे मालूम होने लगा कि अपनी खुद की पार्टी में ही हिलेरी को लेकर एक राय नहीं थी। अन्‍तत: हिलेरी क्लिंटन ने हवा का रूख पहचाना और अपनी उम्‍मीदवारी छोड दी। इसका निर्णय हुआ बराक ओबामा को डेमोक्रेटिक पार्टी के रूप में उम्‍मीदवार बनाने के रूप में। 5 जून को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने उम्‍मीदवार की घोषणा की अपनी राजनीति में कूटनीति की पहली शिकस्‍त मिली हिलेरी क्लिंटन को। अमेरिकी राजनैतिक दलों की की ये सबसे बडी खूबसूरती है कि अपनी पार्टी के भीतर आगे बढने के लिये चुनाव लडो। जीत जाओ तो ठीक, नहीं तो पराजय का लेबल चिपका कर दूसरे दलों की चौखट पर नाक मत रगडो। पार्टी तो अपनी ही है। पूरे तन-मन-धन से पार्टी के प्रत्‍याशी को जिताने में जुट जाओ। हिलेरी क्लिंटन ने ऐसा किया भी।  'यस वी केन' के साथ आशा का संचार करते हुए बराक ओबामा अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुने गये। हिलेरी की काबिलियत को ओबामा भलि भांति जानते, समझते थे। वह अमेरिकी विदेशमंत्री बनाई गई। अमेरिकी विदेश मंत्री का कार्य और पद बेहद गंभीर और महत्‍व का माना जाता है। पूरी दूनियां में मची उथल-पुथल के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी हितों के लिये विभिन्‍न देशों, समुदायों, शक्तिकेन्‍द्रेां, उग्रवादी दलों, बागियों से वार्ताएं जारी रखी। घोर विरोधी गुटों जैसे इजरायल और फिलीस्‍तीन जैसों को भी शांति वार्ता हेतु टेबल पर बिठाया। अफगानिस्‍तान, इराक से अमेरिकी सैनिको की कुशल और समयबद्ध वापसी तो कराई ही साथ ही आतंकवादी गुटों पर अमेरिकी कहर जारी रखा। नाटो देशों ने मजहबी मुखौटा लगाये बर्बर आतंकी संगठनों एक भी दिन चैन से नहीं बैठने दिया है, इसके पीछे हिलेरी क्लिंटन की रणनीति भी बहुत हद तक श्रेय की हकदार रही है। सीरिया, लेबनान, इराक में चल रहे ग़हयुद्धों के जिम्‍मेदार आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में अमेरिका कुछ हद तक कामयाब रहा है। हिलेरी क्लिंटन की सबसे बडी कामयाबी इरान के साथ अमेरिका के संबंधों में सुधार होना और साम्‍यवाद के अंतिम कुछ अवशेषों के साथ जीवित देश क्‍यूबा के साथ दोस्‍ताना संबंध स्‍थापित करना रहा। कुछ ऐसे मोर्चे भी रहे जिनमें हिलेरी क्लिंटन असफल रही। साथ ही पाकिस्‍तान जैसे विश्‍व के कालीन पर कलंक की तरह लगे धब्‍बे को हिलेरी भी नहीं सुधार सकी। अमेरिका के साढे तीन हजार निर्दोषों के कातिल ओसामा बिन लादेन को गोद में छिपाये पाकिस्‍तान को करारा चांटा तब पडा, जब उसकी सेना के गढ में ओसामा को अमेरिकी सैनिकों ने मौत की गोदी में सुला दिया। हिलेरी के प्रयासों के बावजूद पाकिस्‍तान अमेरिका की बिगडैल पैदाईश से बिगडा ही बना रहा। हिलेरी क्लिंटन पाकिस्‍तान से आतंकी समूह हक्‍कानी नेटवर्क को खत्‍म करवाने में भी असफल रही। रूस और अमेरिका से अमेरिकी रिश्‍ते उबड-खाबड बने रहे। उत्‍तर कोरिया अमेरिका को आंखें दिखाता रहा। तालीबान फिर से सिर उठाने लगा है। इराक में शांति बहाली अभी दूर की कौडी है। आईएसआईएस, बाको हरम जैसे बर्बर मजहबी आतंकी पिशाचों पर अमेरिका पार नहीं जा सका है। इन तमाम असफलताओं के बावजूद भी इस बात में रत्‍ती भर शक की गुंजाईश नहीं रही कि हिलेरी क्लिंटन शातिर कूटनीतिज्ञ और बेहद सक्रिय विदेश मंत्री रही जिसने दुनियां भर में मच रही उथल-पुथल के बीच भी संतुलन की अपनी कोशिशों में कमी नहीं होने दी। दुनियाभर के नीति-नियंताओं ने इस बात को माना भी। यह बात पिछले दो तीन सालों से निरन्‍तर उठती रही कि आगामी राष्‍ट्रपति चुनावों में हिलेरी के बराबर दूसरा योग्‍य और समर्थ उम्‍मीदवार हो ही नहीं सकता।
      और ऐसा हुआ भी। अमेरिका के लोकतंत्र के 227 वर्षों के इतिहास में ऐसा हुआ कि किसी मुख्‍य दल ने एक महिला को सर्वोच्‍च पद के लिये नामांकित किया। अपनी ही पार्टी में हिलेरी की आरम्भिक तौर पर विरोधी रही सेंर्डस ने ही हिलेरी के पक्ष में नामांकन कर पार्टी में विरोध की खबरों पर विराम लगा दिया। हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्‍मीदवार बनी और इतिहास रच दिया। हिलेरी क्लिंटन की काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान राष्‍ट्रपति ओबामा ने यह वक्‍तव्‍य दिया कि, ''मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि हिलेरी मुझसे और बिल क्लिंटन से कहीं अधिक योग्‍य है।''

      ये बातें यह तर्क स्‍थापित करती है कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के लिये एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकती है। अपनी पार्टी की उम्‍मीदवारी का एक बडा पडाव हिलेरी ने सफलता के साथ पार कर लिया है किंतु यह है तो एक पडाव मात्र ही। असली टक्‍कर तो अब है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्‍मीदवार डोनाल्‍ड ट्रम्‍प से। हिलेरी क्लिंटन पारम्पिरिक अमेरिकी लोगों की पहली पसंद है। हिलेरी की नीतियों, बातों, विचारों और डेमोक्रेटिक पार्टी की विचाराधारा के प्रति लोगों में विश्‍वास और आस्‍था नजर आती है। असली चुनौती अमेरिकी राष्‍ट्रवाद की धारा के पुन: उठने से ट्रम्‍प के प्रति बढ रहे समर्थन को रोकने की है। ट्रम्‍प, हिलेरी के कार्यकाल के दौरान की गई गलतियों, असफलताओं को प्रचारित कर अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की जुगत में लगे हैं। निजी ईमेल से हिलेरी के पत्र व्‍यवहार को देश की सुरक्षा के सबसे बडे खतरे का डर दिखा रहे हैं। मुकाबला काफी रोचक बन रहा है। एक के बाद एक होने वाली रैलियों में हिलेरी के समर्थन में उमड रहे लोगों के हुजूम से हिलेरी उत्‍साहित हैं। उनके पति बिल क्लिंटन सभी प्रान्‍तों में घूम घूम कर अपनी पत्‍नी के लिये समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। हिलेरी क्लिंटन को सबसे बडा साथ और समर्थन वर्तमान राष्‍ट्रपति बराक ओबामा से मिल रहा है। ट्रम्‍प नीतियों को पूरी तरह बदलने के लिये संकल्‍प‍बद्ध होने की बात कह रहे हैं तो हिलेरी संभल संभल कर विभिन्‍न विषयों पर स्‍थापित नीतियों को आगे बढाने की समर्थक है। अमेरिकी जनता दोनों की पक्षों को सुन रही है। समर्थन भी दे रही है, किंतु मन में क्‍या ठान कर बैठी है, इसका भान अभी किसी को नहीं है। अमेरिका ही नहीं बल्कि विश्‍व भर में ये चुनाव चर्चा का केन्‍द्र है। इसके बारे में उत्‍सुकता जहां देशों के राजनेताओं में है वहीं अवश्‍य ही विश्‍व शांति के लिये खतरा बने गुट भी प्रक्रिया को टकटकी लगाये देख रहे होंगे। देखना है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद चुनाव का उंट किस करवट बैठता है। अभी तो बस, दोनों उम्‍मीदवारों के भाषणों, नीतियों पर अमेरिकी जनता की पैनी निगाह ही थाह लेने में जुटी है।