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Tuesday, September 20, 2016

शंकर भोले का थाण***कहानी*** संजय पुरोहित

शंकर भोले का थाण

कहानी:- संजय पुरोहित

शांतिप्रसाद कुछ परेशान थे। उनकी बेटी सुमन को लड़के वाले देखने आने वाले थे। पैसे वाले लोग थे, बिटिया सुख से रहेगी। लड़का सरकारी मुलाजिम था, अच्छी तनख्वाह थी। काश! यह रिश्ता हो जाए, यही कामना करते हुए मन मंे कहीं यह भी आशंका थी कि कहीं मना कर दिया तो ? मन ही मन ईष्ट का ध्याया और सवा किलो देसी घी के लड्डू चढाने का संकल्प लिया।
शंातिप्रसाद खुद सरकारी मुलाजिम थे। पत्नी, एक बीस साल की बेटी सुमन और दो बेटे बाईस साल का शंकर और इक्कीस साल का विमल। बिटिया ने ग्रेजुएशन कर लिया था और अब बी.एड. कर रही थी। बड़ा लड़का शंकर मंदबुद्धि बालक था। उसके लिए सदैव ही शांतिप्रसाद चिंतित रहते कि उनके बाद इसका क्या होगा। बहुत इलाज करवाया। ओझा तांत्रिकांे के पास भटके, मंदिर-मंदिर मन्नते मांगी लेकिन शंकर ठीक ना हो पाया। उस पर ना जाने किसकी छाया थी या भगवान ने उसे बनाया ही ऐसा था। शंकर पर अचानक ही जैसे कोई हावी हो जाता था। वह पागलांे जैसी हरकतें करने लगता। कभी कभी खुद को ही घायल कर लेता तो कभी चिल्लाने लगता। छोटा बेटा विमल पढ़ाई में तेज था। कम्पाउंडरी का कोर्स कर रहा था और प्राईवेट अस्पताल में ट्रेनिंग ले रहा था। शांतिप्रसाद जी को उम्मीद थी कि वह अपना रास्ता पकड़ ही लेगा।
विमल ने शांतिप्रसाद को सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं बस कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। शांतिप्रसाद ने खुद रसोई मंे जाकर सब व्यवस्थाएं देखीं और संतुष्ट हुए कि सब कुछ ठीक-ठाक है। शंकर को लेकर वे कुछ चिंतित थे। परिवार ने निर्णय किया कि शंकर की उपस्थिति से कुछ भी गड़बड़ हो सकता है इसलिए क्यांे न उसे किसी रिश्तेदार के पास भेज दिया जाये। शांतिप्रसाद को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी। उन्हे लगा कि इससे लोगांे को चार बातंे और बनाने का मौका मिल जाएगा। वे ऐसा नहीं चाहते थे। बल्कि वे तो लड़के वालेे  को भी शंकर के बारे में बताना चाहते थे। आखिरकार रिश्ते में  बातें छिपाने से बात बनती नहीं, बल्कि बिगड़ जाती है। अंत मंे यह निर्णय लिया गया कि शंकर को कमरे में बंद कर दिया जाए। सभी ने सहमति में सिर हिलाया। विमल प्यार से अपने भैया को बहला-फुसला कर कमरे में ले गया।
थोड़ी देर में लड़के वाले आ गए। उन्हे सम्मान सहित बिठाया गया। सुमन चाय-नाश्ता लेकर आई। बातचीत चल रही थी। शांतिप्रसाद अपने संभावित समधी को परिवार के बारे में बता रहे थे। शंकर के बारे में वे कुछ बताने वाले ही थे कि अचानक शंकर को जैसे दौरा पड़ा। शांतिप्रसाद अचकचा गए। शंकर ने अपने हाथोंों से दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति के लिए कोई तैयार नहीं था। शांतिप्रसाद ने विमल को इशारा किया कि वो शंकर को बाहर आने दे। विमल ने जैसे ही दरवाजा खोला तो शंकर झट से बाहर निकला। उसकी नजर सीधे टेबल पर पड़ी मिठाई पर पड़ी और वह सीधा टेबल की ओर लपका। कोई उसे रोक पाता उससे पहले ही उसने अपने हााथों में मिठाई उठाई और उसे खाना शुरू कर दिया। मेहमान यह देखकर कुछ असहज हो गए। शांतिप्रसाद उठे और शंकर को प्यार से अन्दर जाने के लिए कहा। वह कहां सुनने वाला था। उस पर जो जैसे जुनून सवार हो गया। उसने शांतिप्रसाद के हाथ को झटक दिया। उसके हाथ की मिठाई समाप्त होने को थी और उसने झट से लड़के के हाथ से मिठाई छीन ली। लड़के वाले इसे भला क्यों बर्दाश्त करते। लड़का क्रोधित हो गया और उसने अपने मां-बाप से तत्काल वहां से निकल जाने का इशारा किया। दो ही पल में सब किये धरे पर पानी फिर गया। लड़के वाले चले गये। पूरा परिवार पर जैसे मुर्दनी छा गई। शंकर अब भी मिठाई खा रहा था।
इस वाकये के बाद परिवार महीनों तक उबर नहीं पाया। शांतिप्रसाद ने हिम्मत नहीं हारी। नाते रिश्तेदारों से सुमन के रिश्ते के लिए बात करते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और आखिरकार एक अच्छे परिवार से बात हुई। उन्होंने लड़की को देखने का अनुरोध किया और शांतिप्रसाद ने हां कर दी। दिन, समय तय हुआ।
शांतिप्रसाद परिवार के साथ बैठे। पुराना अनुभव उनके सामने था। शंकर का क्या करें। वैसे वो हमेशा ऐसा नहीं करता था लेकिन यदि उसने फिर वैसा किया तो ? यह प्रश्न सभी को परेशान कर रहा था।
सब विचार कर ही रहे थे कि विमल ने सुझाव दिया, ‘बाबूजी, एक तरीका है। क्‍यों न हम शंकर को नींद का इन्जेक्शन दे दें। वह सोया रहेगा और मेहमानों के सामने ही नहीं आयेगा।‘ शांतिप्रसाद को विमल की यह बात समय के हिसाब से ठीक लगी। मां ने भी सहमति दे दी। विमल खुद कम्पाउण्डरी का ट्रेनिंग ले ही रहा था इसलिए इन्जेक्शपन उसने खुद ही लगाने का निर्णय लिया। मेहमानोंों के आने का दिन था। पहले जैसी ही तैयारियां दोबारा की गई। शंकर को प्यार से खाना खिलाया गया और फिर विमल ने उसे नींद का इंजेक्शन दे दिया। कुछ देर तो शंकर हाथ-पैर मारता रहा फिर शांत होकर सो गया। विमल ने सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं और कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। सब तैयारियां पूर्ण थी। लेकिन उपरवाले को शायद कुछ और ही मंजूर था। शंकर उठ गया। शांतिप्रसाद ने विमल को डांटते हुए पूछा कि नींद का इंजेक्शन देने के बावजूद वह उठ कैसे गया ?
विमल भी परेशान हो उठा, बोला ‘बाबूजी मैंने इंजेक्शन दे दिया था और शंकर सो भी गया था। हां, शायद कम पावर का दिया था, इसलिये उठ गया। अब ऐसा करता हूं कि एक हाई पावर का इंजेक्शन और दे देता हूं।‘ कहते हुए उसने हाथो-हाथ दूसरा इंजेक्शन तैयार कर दिया। शांतिप्रसाद कुछ परेशान हो उठे।  विमल ने उनको निश्चिन्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें बाबूजी!् इस इंजेक्शन से वह वापिस सो जायेगा, हां, यह जरूर है कि अब शाम तक सोता ही रहेगा।‘‘ कहते हुए विमल शंकर के कमरे में गया। आधे सोते, आधे जागते शंकर को एक इंजेक्शन और लगा दिया। कुछ ही पलों में शंकर सो गया। विमल ने उसके माथा सहलाया और बाहर निकला। ‘बाबूजी शंकर सो गया है, अब कोई चिंता की बात नहीं है।‘ विमल ने यह सूचना परिवार के सदस्यों को दी। यह सुनकर शांतिप्रसाद और परिवार ने राहत की सांस ली।
दरवाजे पर घंटी बजी। लड़के वाले आ गए थे। मेहमानों को बिठाया गया। शांतिप्रसाद ने उन्हे सभी के बारे में बताया और खास रूप से शंकर के बारे में भी ईमानदारी से बताया। परिवार सुसंस्कृत था। उन्‍होंने इसे उपर वाले की माया बताया। उन्हे सुमन पसंद आ गई और सभी ने एक दूसरे का मुंह मीठा किया। पंडित ने अगले महीने की बारह तारीख का शुभ मुहूर्त निकाला। लड़के वाले खुशी-खुशी विदा हुए। शांतिप्रसाद को ऐसा लगा जैसे एक बोझ उतर गया। रिश्तेदाारों  को फोन पर सूचना दी गई। बधाई की खबरों का आदान प्रदान होता रहा। इन सब कामों  में कब शाम हो गई किसी को पता ही नहीं चला। शाम को जब खाना बना तो शंकर को बुलाने के लिए आवाज लगाई। कोई जवाब नहीं आया।
‘शायद दवा का अभी भी असर है‘ एसा सोचते हुए विमल शंकर को संभालने गया। शंकर पलंग पर लेटा हुआ था। विमल ने उसे धीरे से सहलाया, ‘भैया...भैया।‘‘ शंकर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। विमल ने उसकी नब्ज टटोली तो धक्क से रह गया। शंकर कभी ना खत्म होने वाली नींद सो चुका था।
थोड़ी देर में घर में कोहराम मच गया। सब शंकर की मौत के लिए अपने आप को जिम्मेदार मान रहे थे। आखिरकार समझदारी की बात की गई। घर की बात घर में ही रहे इस लिए शंकर की दौरा पड़ने से मौत नाते रिश्तेदारों को बताई गई। अगले दिन धुंधलते की ओट में जवान मृत्यू होने के कारण उसका अंतिम संस्कार  कर दिया गया।
शंकर शरीर से चला गया था किंतु परिवार के हर सदस्य के मन में वह स्थायी घर बना चुका था। शंकर की यादों के साये में सुमन का विवाह हुआ। वह अपने ससुराल चली गई। परिवार अभी भी शंकर को भुला नहीं पाया।
एक दिन रात शांतिप्रसाद सोने का उपक्रम कर ही रहे थे कि उन्हे शंकर के कमरे से खटखटाने की आवाज आई। वे हड़बड़ा कर उठ बैठे। दरवाजा खोला तो कुछ नहीं था। ऐसा रोज होने लगा। कभी चिल्लाहटें सुनाई देती तो कभी विमल का पलंग हिलने लगता। कभी मां की साड़ी आग पकड़ लेती तो कभी घर के सारे कपड़े उलट-पुलट हो जाते।
आखिरकार एक दिन परिवारजन इकट्ठे होकर शंकर के कमरे में गए। शांतिप्रसाद ने हाथ जोड़ा बोले, ‘‘बेटा, हमें माफ कर दो, हम तेरे अपराधी हैं, तु हमारा बेटा है और सदैव रहेगा। देख, तु बड़ा बेटा है, तुझे परिवार का ख्याल रखना है‘ शांतिप्रसाद प्रसाद ने अपनी बात पूरी की ही नहीं थी कि विमल लहराने लगा। सब सन्न रह गए। अचानक ही विमल ने शंकर की आवाज में बोलना शुरू कर दिया ‘बाबूजी, मेरे साथ ईश्वर ने अन्याय किया और आप लोगों तो उससे भी बड़ा अपराध कर डाला, मैं जो करता था, क्या उस पर मेरा वश था ? आपने मुझे परिवार से अलग कर डाला। बाबूजी, मैं भटक रहा हूं, मेरी गति नहीं हुई है। मैं अकाल मौत मारा गया हूं। मुझे वापिस परिवार में स्थान दो।‘‘ ऐसा कहते हुए विमल बेसुध होकर गिर पड़ा। शांति प्रसाद, उनकी पत्नी हतप्रभ हो देर तक यूं ही खड़े रहे।
अतृप्त आत्माओं के किस्से तो शांतिप्रसाद ने खूब सुने थे। अनेक घरों में अपने पित्तरों, अतृप्त पारिवारिक सदस्यों के लिये ‘थाण‘ या ‘नाडा‘ स्थापित किये जाने की बातें उन्होंने सुनी थी। किंतु आज तो उनका साक्षात स्वंय के पुत्र की अतृप्त आत्मा से हो गया। वह हकबका गये। बहुत देर तक विचार शून्य बैठे रहे। परिवार नैतिकता के कटघरे में था। फिर विचारों ने आत्मा के दरवाजे खोलना शुरू किया। देर तक परिवार के सदस्य शंकर की मृत्यू के लिये अपने आप को कोसते रहे। फिर सबने मन कड़ा किया। कुछ निश्चय किया । पहले तो शंकर की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवाया। इसके बाद शंकर के कमरे में ही उसका स्थान बनाया गया। इस स्थान पर रखे दीपक के स्वयमेव प्रज्ज्वलित होते ही परिवार जान गया कि शंकर फिर से परिवार में आ गया है। ना होकर भी शंकर आज परिवार में है। जिस स्थान पर वह रहता है उसे शंकर का थाण या नाडा कहा जाता है।
शांतिप्रसाद के परिवार में अब आने वाला हर मेहमान अब पहले शंकर के थाण  के दर्शन करता है।
कॉपीराईट संजय पुरोहित 

Saturday, September 3, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव : भारत की आशाएं और आशंकाएं

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव विशेष सीरीज - समापन कडी

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव : भारत की आशाएं और आशंकाएं



       अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनावों पर इस विशेष सीरीज की पिछली चार कडियों में दोनों बडी पार्टियों, रिपब्लिकन्‍स और डेमोक्रेटस की नीतियों, उनके उम्‍मीदवारों, अमेरिकी जनता की प्रतिक्रियाएं, विश्‍व के देशों की दिलचस्‍पी पर चर्चा की गई। इस कडी में हम इस चुनाव के उपरान्‍त भारत अमेरिकी रिश्‍तों पर आने वाले सकारात्‍मक या नकारात्‍मक परिणामों का विश्‍लेषण करेंगे। भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र है। अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। दोनों ही देश लम्‍बे समय तक एक दूसरे को नजर अंदाज करते रहे। भारत का रूस की तरफ झुकाव, गुट निरपेक्ष आन्‍दोलन के अगुवा के रूप में उभार, भारत के नेताओं के विश्‍वनेता बनने के ख्‍वाब, अमेरिका के पाकिस्‍तान के प्रति आंख मूंद कर भरोसा करने की नीति आदि कुछ ऐसे विषय रहे जिनके कारण दोनों ही देशों के रिश्‍तों में कोई खास गर्मजोशी नहीं आई। अमेरिका भारत का स्‍वाभाविक मित्र कभी नहीं रहा। भारत चीन युद्ध के दौरान अमेरिका का बेरूखापन, भारत पाकिस्‍तान युद्धों में पाकिस्‍तान की तरफदारी, ईरान के प्रति भारत के सहानुभूतिपूर्ण रवैये से नाराजगी जैसे कई ऐसे विषय रहे जिनके कारण अमेरिका ने भारत को वैसी तवज्‍जो कभी नहीं दी] जिसका कि भारत हकदार था। अमेरिकी राष्‍ट्रपतियों के भारतीय दौरे रस्‍मी होते, समझौते कागजी होते और ताजमहल देख कर वे अपने देश चले जाते। भारत ने भी अमेरिका की तरफ कभी आशा भरी नजरों से नहीं देखा। भारत पाकिस्‍तान युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपने युद्धपोतों तक को तैनात किया था। दुनिया की दूसरी सबसे बडी शक्ति रूस का साथ मिला होने के कारण भारत ने अमेरिका के आगे हाथ नहीं फैलाया। बल्कि यूं कहना चाहिये कि अमेरिका भारत का कुटिल शत्रु ही था। आपको याद होगा कि एक दौर ऐसा भी आया जब भारत में अकाल से लोग भूखे मर रहे थे, किंतु अमेरिका ने अपने देश में अनाज का अधिक उत्‍पादन होने पर उसे समुद्र में फेंक दिया पर भारत को नहीं दिया। पूंजीवाद के गढ के रूप में, दुनिया के शक्तिकेन्‍द्र के रूप में अमेरिका ने रूस के साथ शक्ति संतुलन बनाया। शीत युद्ध की समाप्ति पर अमेरिका दुनिया का 'दादा' बन गया। रूस के कमजोर होने का अमेरिका को तो दुनिया भर में अपनी बढत बनाने का मौका मिला, पर भारत असमंजस में रहा। लेकिन भारत पस्‍त नहीं हुआ। धीरे-धीरे ही सही पर भारत ने अपने कदम ठोस रूप से रखे। भारत के लिये तब भी अमेरिका शत्रु के मित्र शत्रु के रूप में ही परिभाषित रहा था।
      अब दुनिया बदल चुकी है। भारत भी बदल चुका है। अमेरिका भी। आज भारत दुनिया की एक तेजी से बढती अर्थव्‍यवस्‍था है। अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया के देशों के लोगों के लिये भारत एक विशाल बाजार है। इस बाजार के नियंत्रकों, यानी भारत सरकार से दोस्‍ती का हाथ बढाने के लिये व्‍यापारी देश तैयार खडे हैं। वैसे तो चीन, ब्राजील, युरोपियन युनियन का हर देश कतार में है लेकिन अमेरिका इनमें सबसे आगे रहा है। इस का कारण भारत के प्रति दुनिया का बदलता रवैया है। पूर्व पी.एम.मनमोहन सिंह ने भारत के आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया बिल्‍कुल सही समय पर शुरू की। इसका जबर्दस्‍त फायदा भारत को आर्थिक शक्ति की कुर्सी की ओर बढने में हो रहा है। अब भारत उस स्थिति में पहुंच रहा है, जिसमें दूसरों को भारत की दरकार है, भारत को नहीं। भारत के युवाओं के देश होने, सस्‍ती लेबर उपलब्‍ध होने, विशाल जनसंख्‍या में विशाल बाजार के मौजूद होने, प‍रमाणु शक्ति बनने, अंतरिक्ष में लगातार मिल रही सफलताओं ने, एक से एक मारक मिसाईलें, हेलीकॉप्‍टर, सुपर कम्‍प्‍युटर भारत में ही बनाने, सूचना और प्रादयोगिकी क्षेत्र में भारत के युवाओं का कब्‍जा होना जैसी उपलब्धियों ने दुनिया को भारत को सोचने के नजरिये में आमूलचूल बदलाव ला दिया है।
      अमेरिका के नागरिक ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग इस बात को भलि-भांति जानते हैं, कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति का चुनाव कोई भी जीते, अमेरिका की पारम्‍परिक नीतियों में कोई खास बदलाव नहीं आता। अमेरिका दुनिया भर में अपने हितों के लिये ही रणनीतियां बनाता है, उनको क्रियान्वित करता है। फिर भी बदलते विश्‍व परिद़श्‍य में इन उम्‍मीदवारों के भाषणों, नीतियों का विश्‍लेषण करने पर जो तसवीर सामने आती है, वह आशाएं भी जगाती है और आशंकाएं भी। हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्‍मीदवार है। यदि हिलेरी चुनाव जीतती हैं तो मेरा विश्‍लेषण ये है कि भारत के लिये इसके परिणाम सकारात्‍मक होंगे। हिलेरी अपने पति पूर्व राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ अमेरिका की प्रथम लेडी के रूप में दो बार भारत आ चुकी है। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री के रूप में भी भारत का दौरा एक नहीं बल्कि तीन बार कर चुकी हैं। हिलेरी भारत की संस्‍क़ति की रग-रग से वाकिफ है। वह भारत को एक आध्‍यात्मिक देश, एक सुसंस्‍क़त देख, विशाल संपदा वाला और दुनिया का नेत़त्‍व करने के गुण रखने वाला स्‍वाभाविक मित्र मानती हैं। हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा की नीतियों को ही आगे बढाने की पक्षधर है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत के प्रति बराक ओबामा शासन की सैन्‍य, सामरिक, आर्थिक नीतियां ही आगे बढेंगी।

      चाहे कोई नाक-भौं सिकोडे, लाख आलोचना करे, पर यह मानना ही होगा कि बराक ओबामा और नरेन्‍द्र मोदी की कैमिस्‍ट्री ने विश्‍व के दो महानतम लोकतांत्रिक राष्‍ट्रों को बेहद करीब ला दिया है। भारत ने अमेरिका को हमेशा मुददों पर आधारित समर्थन दिया था, लेकिन बदलती हुई विश्‍व व्‍यवस्‍था के चलते भारत ने परम्‍परागत नीतियों से हट कर देशहित में कुछ ऐसे कदम उठाये हैं, जिनका दूरगामी अनुकूल परिणाम सामने आयेगा। हाल ही में अमेरिका और भारत में एक ऐसा रणनीतिक समझौता हुआ है जो अनतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मील का पत्‍थर साबित होगा। भारत ने अपनी जमीन, समुद्र और वायू सीमा का सामरिक एवं अन्‍य कारणों से उपयोग करने की अनुमति अमेरिका को दे दी है। वहीं अमेरिका ने विश्‍वभर में फैले अपने सभी बेस पर भारतीय विमानों के उतरने में सहमति दी है। आतंकवाद से पीडित इन दोनों देशों के बीच बढते जा रहे सटीक समन्‍वय और साझा सम्‍पर्क ने नयी सफलताएं दिलाई है। भारत और पाकिस्‍तान को एक तराजू में तोलने के पूर्व के अमेरिकी रवैये को कब्रिस्‍तान में दफना दिया जा चुका है। आज पाकिस्‍तान आतंकवाद की पाठशाला और मजहबी दरिंदों का देश बन कर रह गया है। भारत हर लिहाज से काफी आगे निकल चुका है। इसके अलावा ओबामा की नीतियों में भारत को प्राथमिकता के आधार पर सूची में सबसे उपर रखा जाने लगा है। यदि हिलेरी इन्‍ही नीतियों पर चले तो भारत को फायदा होगा। इसके अलावा भारतीय भारत की चिंता आप्रवासियों और विशेष रूप से आउटसोर्सिंग को लेकर रही है। हिलेरी वर्तमान नीतियों की ही पक्षधर है, जिसका मतलब ये है कि भारत के छात्रों को पूर्ववत लाभ मिलता रहेगा। हिलेरी का चुना जाना भारत के हित में होगा और यही शायद विश्‍व हित में भी होगा।

      डोनाल्‍ड ट्रम्‍प रिपलब्लिक पार्टी के उम्‍मीदवार हैं। उनका सोच अलग है और अमेरिका की नीतियों से बिल्‍कुल अलग है। स्‍थापित नीतियों को पूरी तरह बदलने की उनकी योजना से भारत को नकारात्‍मक परिणाम झेलने के लिये तैयार रहना होगा। सबसे पहले तो उनके बयान का विश्‍लेषण करने की आवश्‍यकता है। मुसलमानों के प्रति उनके सख्‍त रवैये से नयी समस्‍या उत्‍पन्‍न हुई है। उन्‍होंने मुसलमानों को अपने देश में घुसने नहीं देने की धमकी दी है। वैसे हर देश को यह अधिकार है कि वह समस्‍त कदम उठाये जो देश की सुरक्षा के लिये जरूरी हो लेकिन इसकी आड में एक धर्म को कटघरे में खडा करने की उनकी कोशिश खतरनाक है। ट्रंप यकीनन आईएसआईएस सहित सभी आतंकी संगठनों को अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोप से भी भगाने की नीति अपनायेंगे। यदि ऐसा होता है तो यह भारत के लिये खतरे की घंटी है। आतंकियों का अगला टारगेट भारत हो सकता है। उनका मार्ग सरल होगा। अफगानिस्‍तान में अलकायदा, तालीबान उनका स्‍वागत करेंगे तो पाकिस्‍तान पलक पांवडे बिछायेगा। लश्‍कर ए तोयबा, जमात उल दावा जैसे संगठन तो वैसे ही पूरी दूनिया में इस्‍लामिक शासन की स्‍थापना के मंसूबे पाले हुए है। इधर कश्‍मीर में आईएसआईएस के झंडे लहराते हुए लोग उनका रास्‍ता बुहारने के लिये तत्‍पर है। भारत से युवाओं का आईएसआईएस में भर्ती होने का मामला छोटा हो सकता है, पर कम गंभीर नहीं। यह संकेत करता है कि आतंकवादियों की हरकतों के प्रति मौन रहने वाले, चुपचाप अपना काम करने वाले 'स्‍लीपर सेल' जैसे लोग कभी भी अपने असली रंग में सक्रिय हो सकते हैं। इन सबका मिश्रण भारत के लिये घातक हो सकता है।
      ट्रंप के चुने जाने पर दूसरी बडी समस्‍या जिससे भारत को दो चार होना पडेगा, वह है उसके छात्रों के हाथ से रोजगार छीन कर अमेरिकन्‍स को दिये जाने की योजना। अमेरिका की सेकडो कम्‍पनियां विश्‍व और विशेष रूप से भारत के मेधावी छात्रों से अपना काम करवाती हैं। इससे अमेरिका में बेरोजगारी निरन्‍तर बढती जा रही है। ट्रंप ने इस पर कडा रूख अपनाने का वादा किया है। इससे भारत को विदेशी मुद्रा के साथ ही अपने छात्रों के लिये नये क्षेत्र तलाशने होंगे। ट्रंप व्‍यापारी है और उनके चुने जाने पर यह संभव है कि विशाल भारतीय बाजार के मध्‍यनजर भारत उनकी आंखों का तारा भी बन जाये। यह भी हो सकता है कि भारत की वास्‍तविकता के अध्‍ययन के बाद ट्रंप का नजरिया कुछ बदल जाये। भारत के साथ अमेरिका इन विषयों पर और अधिक जुड जाये। मजे की बात यह भी कम नहीं है कि अमेरिका में करोडों डॉलर दोनों उम्‍मीदवारों को भारतीय उद्योगपति चंदे के रूप में दे रहे हैं, यकीनन वे इसका हिसाब भी मांगने की कूवत भी रखते होंगे, जिसका मतलब भारतीय हित होंगे।

      दोनों उम्‍मीदवारों से भारत को आशाएं हैं, तो आशंकाएं भी। हमें उम्‍मीद यही करनी चाहिये कि जो भारत के बारे में सकारात्‍मक सोच रखता हो, भारतीयों का भला करने की भावना रखता हो, वही अगला राष्‍ट्रपति बने।