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Monday, November 30, 2009

सहनशीलता और विनम्रता का भारतीय ठेका

यदि सहनशीलता और विनम्रता का कोई पैमाना होता तो हम भारतीय उसमें नम्बर वन होते। सदियों से हम भारतीयजन अन्याय, अत्याचार, शोषण को इतनी हद तक सहन कर सकते हैं, जितना कोई और नहीं। पता नही ये गुण है या कायरता, बहरहाल हम इसके अन्तराष्ट्र्रीय सरमायादार हैं। यह हमारी सहिष्णुता ही है, कि पाकिस्तान जैसा कोई देश आतंकवादियों को बाकायदा अपनी सरकारी एजेंसी आईएसआई के माध्यम से भारत में नंगी मारकाट के लिए भेजे, फिर भेजे, बार-बार भेजे, हर बार भेजे और भेजता ही रहे, फिर भी हम हैं कि सहन करते हैं, करते रहे हैं ना जाने कब तक सहन करते रहेंगे। हालात ये है कि मुम्बई के आतंकी हमले के बाद पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ के भारतीय प्रतिनिधिजी आतंक के विरूद्ध बोले, मुम्बई हमलों के बारे में बोले, जमात-उल-दावा को बैन करने के बारे में बोले लेकिन वे एक बार भी ‘‘पाकिस्तान‘‘ शब्द नहीं बोले। आखिरकार सहिष्णुता की बात है। ये ठेका तो हमारे देश के नाम ही छुटा है। देश के एक-एक नागरिक का जीवन कीमती है लेकिन इससे कहीं ज्यादा कीमती है भारतीयता का विनम्र चेहरा। हम पाकिस्तान से बड़ी विनम्रता से कहते रहे हैं आप ऐसा न कीजिये, आप हमें न मारिये, हम बड़े हैं, हम आप पर हाथ नहीं उठा सकते, आखिर छोटे के प्रति बड़े को लिहाज करना पड़ता है। हम कहते रहेंगे कि आप अच्छा नहीं कर रहे हैं, हम अमेरिका ब्रिटेन बड़े-बड़े लोगांे को बुलायेंगे कि इन्हे समझाओ किंतु वह फिर भी हमें मुंह चिढाता रहता है। एक शहर में आतंक सेंचुरी लगाता है और वार्तओं का लम्बा दौर शुरू हो जाता है। कुछ ठोस हो उससे पहले आतंकवाद डबल सेंचुरी लगा चुका होता है। कुछ सौ हजार नागरिकों की जान तो विनम्रता और सहनशीलता के नाम कुर्बान की ही जा सकती है। लेकिन ‘कब तक‘। आखिर ‘कब तक‘ और क्यों ‘कब तक‘ ?
आपको कुछ दशक पीछे यदि ले जाऊं तो याद करें जनरल ज़िया उल हक़ को। जनाब कहते थे कि हिन्दोस्तान को हम जंग में नहीं हरा सकते। किंतु हम हिन्दोस्तान को हजार घाव तो दे ही सकते हैं। हमने इसे हल्के में लिया। उन्हे जयपुर किक्रेट डिप्लोमेसी के लिए बुलाया। याद करें बेनज़ीर को मोहतरमा कहती थी कि हम हिन्दोस्तान के साथ हज़ार साला जंग लड़ेंगे। दोनों के चीथड़े आतंक में कहीं उड़ गए। बात यह भी है कि पाकिस्तान की पैदाईश ही नफरत की है। घृणा का बीज मौत के फल, आतंक की कलियां और भय की छांह उगल रहा है। इसके शिकार हो रहे हैं हम । वही हम, जिनके पास है सहनशीलता और विनम्रता का अन्तर्राष्ट्रीय ठेका। हां, कभी कभी मुम्बई हमलों के बाद जब लाखों हाथ एक साथ विरोध के लिए उठते हैं तो हमारे लीडरान को भी गुस्सा आ जाता है (क्षणिक) इसके तुरन्त बाद उन्हे समझाया जाता है कि ऐसा गुस्सा शोभा नहीं देता। आखिरकार हमें सहनशील होना चाहिए यही हमारी पूंजी है, यही हमारा धर्म है। बहुत से कमअक्ल लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि भारत को पाकिस्तान के आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को ठीक वैसे ही नेस्तानाबूद कर देना चाहिए जैसे कि अमेरिका ने अफगानिस्तान मंे अलकायदा और तालीबां के साथ किया था। लेकिन ये लोग ये कहां जानते हैं कि अमेरिका के पास विनम्रता का और सहनशीलता का ठेका थोड़े ही है। उसमें तो अपनी मोनोपोली है। जो अमेरिका कर सकता है वह हम भी कर सकते हैं लेकिन फिर वही भारतीय सहिष्णुता, भारतीय सहनशीलता और भारतीय विनम्रता हमारे आड़े आ जाती है। हम तो विनम्रता से पाकिस्तान से यही कहेंगे कि भाई क्यों कर रहा है तू ये सब ? मान जा, न माने तो भी हम तेरा कुछ बिगाड़ थोड़ी ही सकते हैं, हम तो तुझे समझा ही सकते है, हाथ तो नहीं ना उठा सकते, छोटा भाई जो ठहरा। ये बात अलग है कि ये काम हम छह दशकों से कर रहे हैं, अपने हजारों जवानों और निर्दोष नागरिकों को खोकर।

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