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Sunday, August 28, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव सीरीज - 4

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव - विशेष फीचर - 4
मुददे और द़ष्टिकोण


      8 नवम्‍बर 2016 को अमेरिकी राष्‍ट्रपति के चुनाव की तिथि नियत है। दुनिया की नजर इस चुनाव पर है। ग्‍लोब पर जितने देश नजर आते हैं, उनमें जिज्ञासा है। तनाव है। उत्‍साह है। आशंका है। उम्‍मीद है। ये तो सभी जानते हैं कि वामवादी रूस का भटठा बैठने के बाद से अमेरिका विश्‍व का स्‍वंयभू लीडर है। सभी देशों के हित-अहित किसी न किसी रूप में अमेरिका से जुडे रहते हैं। नाटो देशों की अगुवाई करने वाला यह शक्तिशाली देश इस धरती पर विचरण करने वाले प्रत्‍येक प्राणी के जीवन को प्रभावित करता है। कई देश आर्थिक मदद की आस लगाये बैठे हैं, कई आर्थिक मदद में इजाफे के इंतजार में है। कई देश अपने घर में उत्‍पात मचाये हुए आतंकियों को जमीदोज करने में अमेरिका की गुहार लगा रहे हैं। कई देशों के नेता ऐसे भी हैं कि अपने देश में विरोधियों को शांत करने के लिये अमेरिकी उम्‍मीद पाले हैं। अमेरिका सबकी पंचायती करता है। लेकिन अपने हितों को सर्वप्रथम रखता है। देश छोटा हो या बडा अमेरिका गुण-दोष के आधार पर वहां अपनी राजनीति चलाता है। प्रभुत्‍व जमाने का ये गुण दशकों से अमेरिका खेल रहा है। इसमें कोई कमी आयेगी, इसकी आशा कम ही है। विश्‍व की नजर इसलिये भी अमेरिकी चुनावों पर है क्‍योंकि खुद अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवारों के विभिन्‍न मुददों पर आ रहे बयानों से स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रही है कि आखिर विश्‍व के प्रति अमेरिका की आगामी रणनीति क्‍या होगी।
      आज हम विभिन्‍न मुददों पर दोनों उम्‍मीदवारों के विचारों का विश्‍लेषण करते हैं। सबसे पहले वह मुददा जिससे डोनाल्‍ड ट्रंप उभरे। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि वे मुसलमानों के अमेरिका धुसने पर प्रतिबंध लगा देंगे। इस बयान ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। रिपब्लिकन्‍स पार्टी के भीतर और देश में भी असमंजस का माहौल हो गया। यही वह बयान था जिससे अमेरिका में राष्‍ट्रवाद उभरा। खुले, स्‍वतंत्र और उदारवादी लोगों के अलावा जितने भी अमेरिकन्‍स हैं उनसे डोनाल्‍ड ट्रंप को भारी समर्थन मिलना आरम्‍भ हुआ। ट्रंप का तो ये भी कहना है कि जो लोग संदिग्‍ध हैं उन्‍हे पर्याप्‍त स्‍क्रीनिंग तक अमेरिका से तब तक बाहर कर देना चाहिये जब तक कि अमेरिकी अधिकारी उनके प्रति पूरी तरह आश्‍वस्‍त नहीं हो जाये। डेमोक्रेटिक उम्‍मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने इस बयान का जमकर विरोध किया। इस बयान से एक प्रकार का उदारवादी और कटटरवादियों के बीच ध्रुवीकरण हुआ। डोनाल्‍ड ट्रंप इस बात के भी मुखर समर्थक हैं कि जो आतंकवाद के आरोप में पकडे गये हैं उन्‍हे कोई कानूनी मदद नहीं दी जानी चाहिये, जबकि हिलेरी इस पक्ष की हैं कि उन्‍हे निष्‍पक्ष सुनवाई का अधिकार दिया जाना चाहिये। ये मुददा चुनाव होने तक गर्म रहने की संभावना बनी रहेगी।
      एक मुददा जो कि हाल ही के पांच-सात सालों में पूरे यूरोप के लिये सांसत बना हुआ है, वह शरणार्थियों का। आई.एस.आई.एस. के बर्बर आतंक, निदोर्षों को गाजर मूली की तरह काटने, बच्‍चों से लेकर व़द्धों तक को पैशाचिक तरीके से मारने से अपनी मौत की आशंका से बदहवास लोग अपना घर-बार छोड कर पलायन कर रहे हैं। इनके पलायन से शरणार्थियों के रूप में एक बडी समस्‍या पूरे यूरोप में आ गई है। ये निश्‍चय ही गंभीर समस्‍या है। युरोपियन देशों में इसको लेकर बहस हो रही है। मानवीयता के आधार पर यूरोप के देश शरणार्थियों की दिल खोल कर मदद कर रहे हैं। लेकिन ये दरियादिली उन्‍हे भारी पड रही है। आर्थिक रूप से तो परायों को बैठे-बिठाये खिलाने पर खजाने खाली हो रहे हैं पर इससे बडा डर इस बात का है कि शरणार्थियों के रूप में जिहादी भी घुस आये हैं। पिछले एक साल में आतंक की जितनी घटनायें यूरोप में हुई, उनके तार कहीं न कहीं आई.एस.आई.एस. से जुडे नजर आये। हर देश को अधिकार है कि वह अपने लोगों को बचाने के लिये किसी भी हद तक जाये। हिलेरी क्लिंटन सीरियन शरणार्थियों को शरण दिये जाने की पक्षधर हैं। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बिल्‍कुल सख्‍त हैं। उनका ये मानना है कि अमेरिका में किसी शरणार्थी को शरण नहीं दी जानी चाहिये। इससे भी आगे बढ कर ट्रंप कहते हैं कि जो आ गये हैं, उन्‍हे भी वापिस भेज देना चाहिये।

      रूस के पतन के बाद से अमेरिका का दो दशक तक कोई बराबरी का राष्‍ट्र नहीं था। यह शून्‍य चीन ने भर दिया है। अब दोनों बराबरी की शक्ति वाले ध्रुव राष्‍ट्र बन गये हैं। चीन की शक्ति से उपर रहने में अमेरिका रक्षा खर्च बढाना चाहता है। साथ ही अमेरिका अपनी सैन्‍य ताकत के बल पर दुनियाभर में अभियान चलाता रहा है। अमेरिका का सैन्‍य खर्च भारी भरकम है। इसमें कटौती किये जाने का मुददा जब सामने आया तो डोनाल्‍ड ट्रंप ने स्‍पष्‍ट मत दिया कि वे चाहते हैं कि अमेरिका को आतंक से लडने के लिये और संसाधनों की आवश्‍यकता है। वे सैन्‍य खर्च में भारी बढोत्‍तरी के पक्ष में है। वहीं हिलेरी क्लिंटन की नजर में वर्तमान सैन्‍य बजट पर्याप्‍त है।
      अगला मुददा है अवैध आप्रवास। अमेरिका इस समस्‍या से सबसे ज्‍यादा पीडित है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी संसद सभी जीवित इंसानों के कल्‍याण के लिये प्रतिबद्ध है। दुनिया भर से लोग अवैध तरीके से कैसे भी करके अमेरिका पहुंचना चाहते हैं। अमेरिका की आर्थिक स्थिति अब ऐसा नहीं है कि उनका खर्च भी उठाये। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर कहती है कि आप्रवासियों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये सरकारी सब्‍सिडी जारी रहनी चाहिये और यहां तक कि उन्‍हे नागरिकता अनुदान भी मिलना चाहिये। ट्रंप इसके सख्‍त विरोधी हैं। इसी से जुडा अगला मुददा है मेक्सिकन आप्रवासी। मेक्सिको के अवैध आप्रवासी अमेरिका के लिये गले की हडडी है। अमेरिका में लाखों मैक्सिकन रहते हैं। अमेरिका का मादक पदार्थों का धंधा लगभग पूरा ही मेक्सिकन के हाथों में है। अमेरिका इनसे चाह कर भी निजात नहीं पा सका है। ट्रंप ने यह बयान देकर इस मुददे को लाईम लाईट में ला दिया है कि वह अमेरिका और मेक्सिको की सीमा पर उंची दीवार बनवाना चाहते हैं जिससे मेक्सिको सीमा से अवैध रूप से घुसने वालों को रोका जा सके। जाहिर सी बात है कि हिलेरी इससे सहमत नहीं है।
      आप यदि भारत में हैं और आपको स्‍वरक्षा के लिये बन्‍दुक खरीदनी है तो सरकारी सिस्‍टम उसे इतना उलझा देता है कि केवल दबंग, प्रभावशाली नागरिक ही बन्‍दुक का लाईसेंस ले कर खरीद पाते हैं। अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां बंदुक संस्‍क़ति का हिस्‍सा बन गयी है। इसे 'गन कल्‍चर' के रूप में परिभाषित किया गया है। अमेरिका में पिस्‍तौल खरीदना उतना ही आसान है जितना कि रेस्‍टोरेंट से पिज्‍जा या हॉट डॉग खरीदना। पिछले पांच सालों में इसी संस्‍क़ति के भयानक परिणाम अमेरिका ने स्‍कूलों, कॉलेजों में छात्रों द्वारा की गई फायरिंग में अपने छात्रों को खोने के रूप भुगता है। बराक ओबामा ने अपने साढे सात सालों में इस पर रोक लगाने की पुरजोर कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाये। अमेरिकी नागरिक इन संहारक घटनाओं के बावजूद भी बन्‍दुक के प्रति अपने अधिकार को छोडने को कत्‍तई तैयार नहीं है। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर यह राय रखती है कि बन्‍दुक लेने वाले व्‍यक्ति की प़ष्‍ठभूमि की सख्‍त जांच होनी चाहिये। बन्‍दुक लेने वाले का मनोवैज्ञानिक परीक्षण होना चाहिये और इसके साथ उसे प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिये। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बन्‍दुक खरीदने के स्‍वतंत्र  अधिकार के हामी हैं। जलवायु परिवर्तन पूरे विश्‍व का एक ज्‍वलंत मुददा है। ग्‍लोबल वार्मिंग से दुनिया भर के देश प्राक़तिक घटनाओं को अप्राक़तिक रूप से घटित होते हुए देख रहे हैं। वैज्ञानिक चिंतित हैं लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप नहीं। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये पर्यावरणीय नियमों में परिवर्तन का ट्रंप विरोध करते हैं। उनका मानना है कि ग्‍लोबल वार्मिंग एक प्राक़तिक घटना है। वहीं इस मुददे पर हिलेरी क्लिंटन नियमों में परिवर्तन की पक्षधर है और वैकल्पिक उर्जा स्रोतों को प्रोत्‍साहन की समर्थक हैं। 

      भारत में समलैंगिकता अभी भी मुख्‍यधारा का मुददा नहीं है, लेकिन अमेरिका में है। हिलेरी क्लिंटन समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिये जाने की वकालत करती है लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप इसे अप्राक़तिक संबंध बताते हुए शादी को एक पुरूष और महिला के मध्‍य संबंध के रूप में ही परिभाषित किये जाने के हामीं हैं। इसी प्रकार आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाने के लिये ट्रंप अमेरिकी कम्‍पनियों पर दबाव बनाने के पक्षधर हैं कि वे अमेरिकी बेरोजगारी दूर करे। इसके दूरगामी परिणाम अमेरिकी विदेश नीति पर पड सकते हैं। हिलेरी क्लिंटन इसकी मुखर विरोधी है। उनके अनुसार प्रत्‍येक कम्‍पनी को यह अधिकार है कि वह अपने व्‍यापार के लिये श्रेष्‍ठ युवाओं को विश्‍व भर में कहीं से नियुक्‍त करे और अपना काम करवाए। अमेरिका में पढने वाले युवाओं को ऋण दिया जाता है। इस ऋण की ब्‍याज दर काफी उच्‍च होती है। यह मांग निरंतर उठती चली आ रही है कि छात्रों को दिये जाने वाले ब्‍याज दर को कम किया जाये और इसके बदले में अमीरों पर टेक्‍स में व़द्धि की जाये। हिलेरी इसकी पक्षधर है और धनकुबेर ट्रंप स्‍वाभाविक रूप से इसके विरोधी हैं। ओबामा अपने कार्यकाल में सभी अमेरिकी नागरिकों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दायरे में लाने के लिये 'अफोर्डेबल केयर एक्‍ट' में सुधार कर स्‍वास्‍थ्‍य बीमा करवाया जाना सभी के लिये अनिवार्य कर दिया गया। इसे अमेरिकी जनता 'ओबामा केयर' के रूप में भी जानती है। डेमोक्रेटस इस पर समर्थन जुटा रहे हैं वहीं रिपलिब्‍लकन्‍स का ये कहना है कि यदि वे सत्‍ता में आये तो इसे हटा देंगे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के केवल एक प्रतिशत लोगों के पास पूरी अमेरिका की नब्‍बे फीसदी दौलत है। इस घोर असमानता के मुददे को हिलेरी क्लिंटन के सामने पार्टी की पूर्व उम्‍मीदवार सेंडर्स ने उठाया था। आर्थिक असमानता का यह मुददा महत्‍वपूर्ण है। अमेरिकी जनता सोशल वेलफेयर पॉलिसी, जो कि यूरोपियन युनियन में लागू किया गया है, की तर्ज पर लागू किये जाने की उम्‍मीद हिलेरी क्लिंटन से की जा रही है। डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मुददे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यदि डोनाल्‍ड ट्रंप जीतते हैं तो अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी 'नासा' को भी आने वाले समय में संकट का सामना करना पड सकता है। डोनाल्‍ड ट्रंप का मानना है कि लोगों को अंतरिक्ष यात्राएं करवाने का काम नासा का नहीं है। यह काम निजी कम्‍पनियों पर छोड दिया जाना चाहिये। हिलेरी क्लिंटन इस बात पर सहमत नहीं है और नासा के किसी भी काम में हस्‍तक्षेप को उचित नहीं मानती। 
      बहरहाल मुददे दर मुददे पर दोनों उम्‍मीदवारों में काफी मतभेद है लेकिन कुछ मुददे ऐसे भी हैं जिन पर दोनों उम्‍मीदवारों की राय एक समान हैं। दोनों ही उम्‍मीदवार पुरूष और महिला को समान कार्य के लिये समान वेतन दिये जाने के पक्षधर हैं। पित़त्‍व निधि की सरकारी नीति को निरन्‍तर जारी रखने के लिये भी दोनों ही दिग्‍गज हामी भरते हैं। मादक पदार्थ और चिकित्‍सा के लिये आवश्‍यक मारीजुआना के चिकित्‍सीय प्रयोग की अनुमति प्रदान किये जाने पर भी दोनों ही उम्‍मीदवार अपनी सहमति देते हैं। आईएसआईएस जैसे बर्बर आतंकवादी संगठन सहित अल कायदा और अन्‍य आतंकी संगठनों को समाप्‍त करने के लिये भी दोनों दल एक राय रखते हैं। लेकिन ऐसे मुददे कम हैं जहां दोनों के विचार एक जैसे हों। ज्‍यादातर मुददों पर बंटी ये दोनों पार्टिंया, दोनों उम्‍मीदवार। अमेरिकी जनता इन्‍हे अपनी कसौटी पर एक एक मुददे के साथ परखेगी। गुणावगुण के आधार पर किसे भविष्‍य का राष्‍ट्रपति चुनेगी, इसकी प्रतीक्षा समूचा विश्‍व कर रहा है। 
      8 नवम्‍बर 2016 को अमेरिकी राष्‍ट्रपति के चुनाव की तिथि नियत है। दुनिया की नजर इस चुनाव पर है। ग्‍लोब पर जितने देश नजर आते हैं, उनमें जिज्ञासा है। तनाव है। उत्‍साह है। आशंका है। उम्‍मीद है। ये तो सभी जानते हैं कि वामवादी रूस का भटठा बैठने के बाद से अमेरिका विश्‍व का स्‍वंयभू लीडर है। सभी देशों के हित-अहित किसी न किसी रूप में अमेरिका से जुडे रहते हैं। नाटो देशों की अगुवाई करने वाला यह शक्तिशाली देश इस धरती पर विचरण करने वाले प्रत्‍येक प्राणी के जीवन को प्रभावित करता है। कई देश आर्थिक मदद की आस लगाये बैठे हैं, कई आर्थिक मदद में इजाफे के इंतजार में है। कई देश अपने घर में उत्‍पात मचाये हुए आतंकियों को जमीदोज करने में अमेरिका की गुहार लगा रहे हैं। कई देशों के नेता ऐसे भी हैं कि अपने देश में विरोधियों को शांत करने के लिये अमेरिकी उम्‍मीद पाले हैं। अमेरिका सबकी पंचायती करता है। लेकिन अपने हितों को सर्वप्रथम रखता है। देश छोटा हो या बडा अमेरिका गुण-दोष के आधार पर वहां अपनी राजनीति चलाता है। प्रभुत्‍व जमाने का ये गुण दशकों से अमेरिका खेल रहा है। इसमें कोई कमी आयेगी, इसकी आशा कम ही है। विश्‍व की नजर इसलिये भी अमेरिकी चुनावों पर है क्‍योंकि खुद अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के उम्‍मीदवारों के विभिन्‍न मुददों पर आ रहे बयानों से स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रही है कि आखिर विश्‍व के प्रति अमेरिका की आगामी रणनीति क्‍या होगी।
      आज हम विभिन्‍न मुददों पर दोनों उम्‍मीदवारों के विचारों का विश्‍लेषण करते हैं। सबसे पहले वह मुददा जिससे डोनाल्‍ड ट्रंप उभरे। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कहा कि वे मुसलमानों के अमेरिका धुसने पर प्रतिबंध लगा देंगे। इस बयान ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। रिपब्लिकन्‍स पार्टी के भीतर और देश में भी असमंजस का माहौल हो गया। यही वह बयान था जिससे अमेरिका में राष्‍ट्रवाद उभरा। खुले, स्‍वतंत्र और उदारवादी लोगों के अलावा जितने भी अमेरिकन्‍स हैं उनसे डोनाल्‍ड ट्रंप को भारी समर्थन मिलना आरम्‍भ हुआ। ट्रंप का तो ये भी कहना है कि जो लोग संदिग्‍ध हैं उन्‍हे पर्याप्‍त स्‍क्रीनिंग तक अमेरिका से तब तक बाहर कर देना चाहिये जब तक कि अमेरिकी अधिकारी उनके प्रति पूरी तरह आश्‍वस्‍त नहीं हो जाये। डेमोक्रेटिक उम्‍मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने इस बयान का जमकर विरोध किया। इस बयान से एक प्रकार का उदारवादी और कटटरवादियों के बीच ध्रुवीकरण हुआ। डोनाल्‍ड ट्रंप इस बात के भी मुखर समर्थक हैं कि जो आतंकवाद के आरोप में पकडे गये हैं उन्‍हे कोई कानूनी मदद नहीं दी जानी चाहिये, जबकि हिलेरी इस पक्ष की हैं कि उन्‍हे निष्‍पक्ष सुनवाई का अधिकार दिया जाना चाहिये। ये मुददा चुनाव होने तक गर्म रहने की संभावना बनी रहेगी।
      एक मुददा जो कि हाल ही के पांच-सात सालों में पूरे यूरोप के लिये सांसत बना हुआ है, वह शरणार्थियों का। आई.एस.आई.एस. के बर्बर आतंक, निदोर्षों को गाजर मूली की तरह काटने, बच्‍चों से लेकर व़द्धों तक को पैशाचिक तरीके से मारने से अपनी मौत की आशंका से बदहवास लोग अपना घर-बार छोड कर पलायन कर रहे हैं। इनके पलायन से शरणार्थियों के रूप में एक बडी समस्‍या पूरे यूरोप में आ गई है। ये निश्‍चय ही गंभीर समस्‍या है। युरोपियन देशों में इसको लेकर बहस हो रही है। मानवीयता के आधार पर यूरोप के देश शरणार्थियों की दिल खोल कर मदद कर रहे हैं। लेकिन ये दरियादिली उन्‍हे भारी पड रही है। आर्थिक रूप से तो परायों को बैठे-बिठाये खिलाने पर खजाने खाली हो रहे हैं पर इससे बडा डर इस बात का है कि शरणार्थियों के रूप में जिहादी भी घुस आये हैं। पिछले एक साल में आतंक की जितनी घटनायें यूरोप में हुई, उनके तार कहीं न कहीं आई.एस.आई.एस. से जुडे नजर आये। हर देश को अधिकार है कि वह अपने लोगों को बचाने के लिये किसी भी हद तक जाये। हिलेरी क्लिंटन सीरियन शरणार्थियों को शरण दिये जाने की पक्षधर हैं। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बिल्‍कुल सख्‍त हैं। उनका ये मानना है कि अमेरिका में किसी शरणार्थी को शरण नहीं दी जानी चाहिये। इससे भी आगे बढ कर ट्रंप कहते हैं कि जो आ गये हैं, उन्‍हे भी वापिस भेज देना चाहिये।
      रूस के पतन के बाद से अमेरिका का दो दशक तक कोई बराबरी का राष्‍ट्र नहीं था। यह शून्‍य चीन ने भर दिया है। अब दोनों बराबरी की शक्ति वाले ध्रुव राष्‍ट्र बन गये हैं। चीन की शक्ति से उपर रहने में अमेरिका रक्षा खर्च बढाना चाहता है। साथ ही अमेरिका अपनी सैन्‍य ताकत के बल पर दुनियाभर में अभियान चलाता रहा है। अमेरिका का सैन्‍य खर्च भारी भरकम है। इसमें कटौती किये जाने का मुददा जब सामने आया तो डोनाल्‍ड ट्रंप ने स्‍पष्‍ट मत दिया कि वे चाहते हैं कि अमेरिका को आतंक से लडने के लिये और संसाधनों की आवश्‍यकता है। वे सैन्‍य खर्च में भारी बढोत्‍तरी के पक्ष में है। वहीं हिलेरी क्लिंटन की नजर में वर्तमान सैन्‍य बजट पर्याप्‍त है।
      अगला मुददा है अवैध आप्रवास। अमेरिका इस समस्‍या से सबसे ज्‍यादा पीडित है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी संसद सभी जीवित इंसानों के कल्‍याण के लिये प्रतिबद्ध है। दुनिया भर से लोग अवैध तरीके से कैसे भी करके अमेरिका पहुंचना चाहते हैं। अमेरिका की आर्थिक स्थिति अब ऐसा नहीं है कि उनका खर्च भी उठाये। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर कहती है कि आप्रवासियों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये सरकारी सब्‍सिडी जारी रहनी चाहिये और यहां तक कि उन्‍हे नागरिकता अनुदान भी मिलना चाहिये। ट्रंप इसके सख्‍त विरोधी हैं। इसी से जुडा अगला मुददा है मेक्सिकन आप्रवासी। मेक्सिको के अवैध आप्रवासी अमेरिका के लिये गले की हडडी है। अमेरिका में लाखों मैक्सिकन रहते हैं। अमेरिका का मादक पदार्थों का धंधा लगभग पूरा ही मेक्सिकन के हाथों में है। अमेरिका इनसे चाह कर भी निजात नहीं पा सका है। ट्रंप ने यह बयान देकर इस मुददे को लाईम लाईट में ला दिया है कि वह अमेरिका और मेक्सिको की सीमा पर उंची दीवार बनवाना चाहते हैं जिससे मेक्सिको सीमा से अवैध रूप से घुसने वालों को रोका जा सके। जाहिर सी बात है कि हिलेरी इससे सहमत नहीं है।
      आप यदि भारत में हैं और आपको स्‍वरक्षा के लिये बन्‍दुक खरीदनी है तो सरकारी सिस्‍टम उसे इतना उलझा देता है कि केवल दबंग, प्रभावशाली नागरिक ही बन्‍दुक का लाईसेंस ले कर खरीद पाते हैं। अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां बंदुक संस्‍क़ति का हिस्‍सा बन गयी है। इसे 'गन कल्‍चर' के रूप में परिभाषित किया गया है। अमेरिका में पिस्‍तौल खरीदना उतना ही आसान है जितना कि रेस्‍टोरेंट से पिज्‍जा या हॉट डॉग खरीदना। पिछले पांच सालों में इसी संस्‍क़ति के भयानक परिणाम अमेरिका ने स्‍कूलों, कॉलेजों में छात्रों द्वारा की गई फायरिंग में अपने छात्रों को खोने के रूप भुगता है। बराक ओबामा ने अपने साढे सात सालों में इस पर रोक लगाने की पुरजोर कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाये। अमेरिकी नागरिक इन संहारक घटनाओं के बावजूद भी बन्‍दुक के प्रति अपने अधिकार को छोडने को कत्‍तई तैयार नहीं है। हिलेरी क्लिंटन इस मुददे पर यह राय रखती है कि बन्‍दुक लेने वाले व्‍यक्ति की प़ष्‍ठभूमि की सख्‍त जांच होनी चाहिये। बन्‍दुक लेने वाले का मनोवैज्ञानिक परीक्षण होना चाहिये और इसके साथ उसे प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिये। डोनाल्‍ड ट्रंप इस मुददे पर बन्‍दुक खरीदने के स्‍वतंत्र  अधिकार के हामी हैं। जलवायु परिवर्तन पूरे विश्‍व का एक ज्‍वलंत मुददा है। ग्‍लोबल वार्मिंग से दुनिया भर के देश प्राक़तिक घटनाओं को अप्राक़तिक रूप से घटित होते हुए देख रहे हैं। वैज्ञानिक चिंतित हैं लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप नहीं। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये पर्यावरणीय नियमों में परिवर्तन का ट्रंप विरोध करते हैं। उनका मानना है कि ग्‍लोबल वार्मिंग एक प्राक़तिक घटना है। वहीं इस मुददे पर हिलेरी क्लिंटन नियमों में परिवर्तन की पक्षधर है और वैकल्पिक उर्जा स्रोतों को प्रोत्‍साहन की समर्थक हैं। 
      भारत में समलैंगिकता अभी भी मुख्‍यधारा का मुददा नहीं है, लेकिन अमेरिका में है। हिलेरी क्लिंटन समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिये जाने की वकालत करती है लेकिन डोनाल्‍ड ट्रंप इसे अप्राक़तिक संबंध बताते हुए शादी को एक पुरूष और महिला के मध्‍य संबंध के रूप में ही परिभाषित किये जाने के हामीं हैं। इसी प्रकार आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाने के लिये ट्रंप अमेरिकी कम्‍पनियों पर दबाव बनाने के पक्षधर हैं कि वे अमेरिकी बेरोजगारी दूर करे। इसके दूरगामी परिणाम अमेरिकी विदेश नीति पर पड सकते हैं। हिलेरी क्लिंटन इसकी मुखर विरोधी है। उनके अनुसार प्रत्‍येक कम्‍पनी को यह अधिकार है कि वह अपने व्‍यापार के लिये श्रेष्‍ठ युवाओं को विश्‍व भर में कहीं से नियुक्‍त करे और अपना काम करवाए। अमेरिका में पढने वाले युवाओं को ऋण दिया जाता है। इस ऋण की ब्‍याज दर काफी उच्‍च होती है। यह मांग निरंतर उठती चली आ रही है कि छात्रों को दिये जाने वाले ब्‍याज दर को कम किया जाये और इसके बदले में अमीरों पर टेक्‍स में व़द्धि की जाये। हिलेरी इसकी पक्षधर है और धनकुबेर ट्रंप स्‍वाभाविक रूप से इसके विरोधी हैं। ओबामा अपने कार्यकाल में सभी अमेरिकी नागरिकों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दायरे में लाने के लिये 'अफोर्डेबल केयर एक्‍ट' में सुधार कर स्‍वास्‍थ्‍य बीमा करवाया जाना सभी के लिये अनिवार्य कर दिया गया। इसे अमेरिकी जनता 'ओबामा केयर' के रूप में भी जानती है। डेमोक्रेटस इस पर समर्थन जुटा रहे हैं वहीं रिपलिब्‍लकन्‍स का ये कहना है कि यदि वे सत्‍ता में आये तो इसे हटा देंगे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के केवल एक प्रतिशत लोगों के पास पूरी अमेरिका की नब्‍बे फीसदी दौलत है। इस घोर असमानता के मुददे को हिलेरी क्लिंटन के सामने पार्टी की पूर्व उम्‍मीदवार सेंडर्स ने उठाया था। आर्थिक असमानता का यह मुददा महत्‍वपूर्ण है। अमेरिकी जनता सोशल वेलफेयर पॉलिसी, जो कि यूरोपियन युनियन में लागू किया गया है, की तर्ज पर लागू किये जाने की उम्‍मीद हिलेरी क्लिंटन से की जा रही है। डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मुददे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यदि डोनाल्‍ड ट्रंप जीतते हैं तो अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी 'नासा' को भी आने वाले समय में संकट का सामना करना पड सकता है। डोनाल्‍ड ट्रंप का मानना है कि लोगों को अंतरिक्ष यात्राएं करवाने का काम नासा का नहीं है। यह काम निजी कम्‍पनियों पर छोड दिया जाना चाहिये। हिलेरी क्लिंटन इस बात पर सहमत नहीं है और नासा के किसी भी काम में हस्‍तक्षेप को उचित नहीं मानती। 

      बहरहाल मुददे दर मुददे पर दोनों उम्‍मीदवारों में काफी मतभेद है लेकिन कुछ मुददे ऐसे भी हैं जिन पर दोनों उम्‍मीदवारों की राय एक समान हैं। दोनों ही उम्‍मीदवार पुरूष और महिला को समान कार्य के लिये समान वेतन दिये जाने के पक्षधर हैं। पित़त्‍व निधि की सरकारी नीति को निरन्‍तर जारी रखने के लिये भी दोनों ही दिग्‍गज हामी भरते हैं। मादक पदार्थ और चिकित्‍सा के लिये आवश्‍यक मारीजुआना के चिकित्‍सीय प्रयोग की अनुमति प्रदान किये जाने पर भी दोनों ही उम्‍मीदवार अपनी सहमति देते हैं। आईएसआईएस जैसे बर्बर आतंकवादी संगठन सहित अल कायदा और अन्‍य आतंकी संगठनों को समाप्‍त करने के लिये भी दोनों दल एक राय रखते हैं। लेकिन ऐसे मुददे कम हैं जहां दोनों के विचार एक जैसे हों। ज्‍यादातर मुददों पर बंटी ये दोनों पार्टिंया, दोनों उम्‍मीदवार। अमेरिकी जनता इन्‍हे अपनी कसौटी पर एक एक मुददे के साथ परखेगी। गुणावगुण के आधार पर किसे भविष्‍य का राष्‍ट्रपति चुनेगी, इसकी प्रतीक्षा समूचा विश्‍व कर रहा है।
 

Saturday, August 20, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव विशेष सीरीज - 3

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव-3

ट्रंप बनाम हिलेरी : प्‍लस बनाम माईनस
      वर्तमान अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की लोकप्रियता के लिये हाल ही में हुए सर्वेक्षण में 54 फीसदी लोगों ने उन्‍हे पसंद किया। यह बात इसलिये जरूरी है कि इस शख्‍स ने साढे सात साल से अमेरिकी राष्‍ट्रपति का पद संभाल रखा है। सामान्‍यता विदा होने के वक्‍त समर्थन की घडी उल्‍टी चलने लगती है, किंतु ओबामा के साथ ऐसा नहीं है। ये तो हुई एक बात पर दूसरी और हकीकत की बात ये है कि बराक ओबामा की विदाई का वक्‍त करीब आ रहा है। कुछ माह का समय शेष रहा है। अगले चार सालों तक विश्‍व के सबसे शक्तिशाली व्‍यक्ति के पद के चुनाव का बिगुल बज चुका है। ट्रंप बनाम हिलेरी। दोनों ही उम्‍मीदवार लगभग बराबरी पर चल रहे हैं। मजे की बात ये भी है कि दोनों ही उम्‍मीदवारों को अपनी ही पार्टी में शत-प्रतिशत समर्थन नहीं मिला। डोनाल्‍ड ट्रंप ने तो अपनी गिनती शून्‍य से ही आरम्‍भ की। हिलेरी भी जॉन मैक्‍क्‍ेन और सैंडर्स से बराबरी की टक्‍कर के बाद आगे बढी। रिपलब्लिकन्‍स तो आज भी एकमत से अपने उम्‍मीदवार के पक्ष में नहीं है। डोनाल्‍ड ट्रंप की उम्‍मीदवार से रिपलब्लिकन्‍स भी परेशान हैं। हाल ही में लगभग पचास वरिष्‍ठ रिपलब्लिकन्‍स ने एक बयान जारी कर कहा है कि 'यदि डोनाल्‍ड ट्रंप राष्‍ट्रपति बनते हैं, तो यह सबसे खतरनाक राष्‍ट्रपति होंगे'। यहां यह बात उल्‍लेखनीय है कि यह बयान जारी करने वाले वे रिपलब्लिकन्‍स हैं, जिन्‍होने जॉर्ज डब्‍ल्‍यू बुश के साथ काम किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डोनाल्‍ड ट्रंप के लिये अपनी पार्टी की राह भी आसान नहीं रही होगी। डोनाल्‍ड ट्रंप के लिये जितनी मुश्किलें पार्टी ने खडी की, लगभग उतनी ही मुश्किलों के साथ हिलेरी क्लिंटन भी अपनी पार्टी में आगे बढी। लगभग आठ साल पहले के चुनावों में पार्टी की उम्‍मीदवारी से चूकने के बाद इस बार हिलेरी ही डेमोक्रेटिक पार्टी की स्‍वाभाविक उम्‍मीदवार थी। लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गये, हिलेरी के लिये भी राह मुश्किल होती गई। जॉन मैक्‍केन और सैंडर्स ने हिलेरी को कडी टक्‍कर दी, लेकिन आखिरकार बाजी हिलेरी के हाथ लगी। ये सब बातें भूतकाल के गर्भ में समा चुकी है, इतिहास के पन्‍ने बन चुकी है। वर्तमान में चुनाव दो चेहरों के बीच लडा जा रहा है - ट्रंप और हिलेरी
      चुनाव अभियान तेजी पकड़ रहा है। हर दिन कोई ना कोई नई बात आती जा रही है। हिलेरी क्लिंटन का कैम्‍प आरम्भिक दिनों में उतना सक्रिय नजर नहीं आ रहा था। जैसे-जैसे डोनाल्‍ड ट्रम्‍प की लोकप्रियता बढती जा रही थी, उसने एकबारगी तो डेमोक्रेटस को हिला कर रख दिया। हिलेरी हार मानने वाली महिला है ही नहीं। पूरी तरह मैदान में कूदने के बाद हिलेरी के तेवर बदल गये हैं। अब वह ट्रम्‍प के हमलो से खुद का बचाव ही नहीं कर रही, बल्कि आगे बढ कर हमले कर भी रही है। अमेरिका दुनिया का दबंग देश है। उसका राष्‍ट्रपति बनने के लिये मुख्‍य दोनों ही दलों ने इस बार जो प्रत्‍याशी मैदान में उतारे हैं, वे पहले के सभी चुनावों से अलग हट कर है। तेजी से बदलती जा रही दुनिया में चुनावों के रंग-रूप भी बदल गये हैं। नीतियों से ज्‍यादा व्‍यक्ति और उससे भी ज्‍यादा व्‍यक्ति की निजी जिंदगी चुनावों में चटखारों के साथ हावी हो रही है। लेकिन इसके साथ ही दोनों उम्‍मीदवारों के गुण-दोष भी कसौटी पर हैं। 
      पहले बात डोनाल्‍ड ट्रंप के प्‍लस-माईनस की। अमेरिका में रिपलब्लिकन पार्टी को 'ग्रेंड ओल्‍ड पार्टी' कहा जाता है। संयोग है कि रिपलब्लिकन्‍स ने अपना उम्‍मीदवार भी 'ग्रेंड ओल्‍डमैन' को ही चुना है। डोनाल्‍ड ट्रंप अपने आक्रामक तेवरों के साथ मैदान में आये हैं। इस तेजी से बदलते, खुले स्‍वतंत्र अमेरिकी समाज में वे अपना नया शफूगा लाये हैं। ट्रंप के अब तक के भाषणो का विश्‍लेषण किया जाये, तो लगता है कि वे अमेरिका को एक बंद समाज के रूप में आगे बढाना चाहते हैं। उनके बयान उनको न केवल अमेरिकी लोगों अपितु दुनिया भर के लोगों के निशाने पर ले आते हैं। कहना ही होगा कि आरम्भिक तौर पर यह माना जा रहा था कि यदि ट्रंप सामने आते हैं, तो हिलेरी आसानी से उन्‍हे हरा देगी। कुछ राजनैतिक विचारकों ने ट्रंप के रिपलब्लिकन्‍स उम्‍मीदवार बनने पर मखौल भी उडाया। समय गुजरने के साथ ही ट्रंप अपने बड़बोलेपन के साथ किसी स्‍पाईडर मैन की तरह उछल-उछल कर आगे बढ गये। ट्रंप की अति हमलावार नीति, मुसलमानों को अमेरिका में घुसने नहीं देने संबंधी बयान और कई मुददों पर बेहद कठोर बयान से हवा बदलने लगी। शुरूआत में बेवकुफाना बयानों के कारण उन्‍हे अधिक गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था, लेकिन बाद में वह अपनी जमीन बनाने मे सफल हो गये। जहां अमेरिका के एक तबके के लोग ट्रंप की इन नीतियों के कारण खफा नजर आते हैं, वहीं एक बडा तबका ऐसा भी है जो ट्रंप से सहमत नजर आता है। अमेरिकी मूल निवासियों की बढती बेरोजगारी, अमेरिकी समाज को खोखला करने वाले मादक पदार्थों की तस्‍करी पर ट्रंप की दो टूक उन्‍हे मुख्‍यधारा में ले आई। आतंकवाद को एक धर्म विशेष से जोड़ने की तुच्‍छ सी अमेरिकी मानसिकता को ट्रंप ने मुददा बना कर रख दिया। जिन लोगों की समझ में ये बातें ट्रंप के लिये माईनस पोईन्‍ट थीं, वही हकीकतन प्‍लस बन कर ट्रंप को आगे बढा ले गई। आतंक का धार्मिक चेहरा पढ सकने वाले अमेरिकियों को ट्रंप के रूप में विकल्‍प नजर आने लगा। महिलाओं और उदारवादी नेताओ के संबंध में उनके बयान भी उनके लिये नुकसानदेह ही हुए। उनके कई बयान तो इतने बेहुदा रहे कि अमेरिकियों को उनके मानसिक संतुलन पर ही शक हुआ। उत्‍तर कोरिया के तानाशाह शासक किंग जोंग उन को अमेरिका बुलाने जैसे कई बयान ट्रंप को उलटे भी पडे। फिर भी ट्रंप की लोकप्रियता तेजी से बढी। आतंकवाद पर उनका स्‍पष्‍ट कडा रूख, आई.एस.आई.एस. से निर्णायक लडाई लड़ने के संकल्‍प, 'अमेरिका के हित प्रथम' नीति, आउटसोर्सिंग में कटौती, अमेरिकी बेरोजगारी पर ठोस नीति, मैक्सिको से आव्रजन पर कडी दीवार जैसे कुछ मुददें हैं, जिन पर ट्रंप की बातें लोगों को पसंद आ रही है। यह हिलेरी के लिये चिंता की बात है। ट्रंप अरबपति व्‍यापारी है। अमेरिकी चुनावों में वे अपनी दौलत को जल-प्रपात से झर रहे पानी की तरह बरसा रहे हैं। अमेरिकी जनता से ट्रंप को मिल रहा समर्थन उनके इन्‍ही प्‍लस-माईनस पर निर्भर करता है।

      हिलेरी क्लिंटन पूरी तरह अलग हैं। वे द़ढ निश्‍चयी है, कठोर है, तार्किक है। ट्रंप से लगभग उलट। अमेरिका ने 234 साल लगा दिये तब कहीं जाकर पहला अश्‍वेत अमेरिकी राष्‍ट्रपति बन पाया। लगभग इतना ही समय अमेरिका ने लगाया जब 227 सालों बाद किसी मुख्‍य दल ने अपना उम्‍मीदवार महिला को बनाया। लेकिन इतिहास का यह दूसरा प़ष्‍ठ अ‍भी आधा ही है। हिलेरी को इतिहास बनाने के लिये इसे पूरा करना होगा। हिलेरी उम्‍मीद की लहर पर सवार नहीं है। हां, महिला होने के नाते और इससे भी अधिक अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के इतने करीब पहुंचने वाली 'पहली महिला' के रूप में हिलेरी को अतिरिक्‍त समर्थन बोनस के रूप में मिलेगा, ये तो तय है। उन लोगों का भी समर्थन हिलेरी को मिलेगा, जो अमेरिका के सबसे उदार और मजबूत लोकतत्र में यकीन रखते हैं। हिलेरी के अमेरिकी विदेशमंत्री के रूप में हुए कार्यकाल को अमेरिकी जनता ने भलि-भांति देखा हुआ है। हिलेरी पूर्णतया सफल नहीं हुई तो यह भी सही बात है कि असफल भी नहीं हुई। उनके प्रति अमेरिकी जनता में विश्‍वास है और वह पहले कम, तो अब अधिक रूप से लोगों के रैलियों में आने से दिख रहा है। ओबामा की लोकप्रियता का फायदा, पति बिल क्लिंटन की मेहनत के साथ हिलेरी आगे बढ रही है। हिलेरी कूटनीतिज्ञ हैं और ट्रंप के भ्रामक आक्रमण का जवाब तर्कपूर्ण ढंग से दे रही हैं। वे अमेरिकी जनता से निरन्‍तर कह रही है कि आपको 'नफरत और प्रेम के मध्‍य किसी एक को चुनना है'। हिलेरी को यह भी मालूम है कि वैश्‍वरीकरण आज विश्‍व व्‍यवस्‍था का मुख्‍य अंग बन चुका है। कोई देश ना तो इससे पीछे लौट सकता, ना हट सकता है। इसी बात को वे अपने बयानों में उठा भी रही है कि, ''कोई ऐसा व्‍यक्ति है जा वैश्‍वरीकरण की प्रक्रिया को ही रिवर्स-गियर में डालना चाहता है'' कहना ना होगा कि उनका इशारा किस ओर है। वे आम तौर पर अगली अमेरिकी राष्‍ट्रपति के रूप में स्‍वाभाविक तौर पर सही उम्‍मीदवार लगती हैं लेकिन लगना और हकीकत में हो जाना, दो अलग अलग बातें हैं। हिलेरी पारम्‍परिक अमेरिकी संस्‍क़ति से आती है। उनकी नीतियों में तर्क होता है। सामाजिक मुददों पर वे भावनात्‍मक तर्क को प्राथमिकता देती है, तो सामरिक मुददों पर 'अमेरिका फर्स्‍ट' नीति पर। अराकांसास प्रान्‍त की प्रथम लेडी के रूप में, अमेरिका की प्रथम लेडी के रूप में, सीनेटर के रूप में और अमेरिकी विदेश मंत्री के रूप में अर्जित किये गये अपार अनुभव उनके लिये ट्रंप की अकूत दौलत का सामना करने के लिये पर्याप्‍त लगती है। दूनिया भर के नेताओं से उनका अच्‍छा संबंध है। वे सही समय पर, सही पद के लिये, सही उम्‍मीदवार नजर आती है। अपनी कार्यशैली और कार्यक्षमता से उन्‍होंने निरन्‍तर ही देश के भीतर और बाहर लोगों को प्रभावित किये रखा है। वे एक ही समय लिबरल भी है और कन्‍जरवेटिव भी। यही बात हिलेरी क्लिंटन को दूसरों से अलग बनाती है। कागजों में, व्‍यवहार में, कुशलता में और प्रभावशीलता में निश्‍चय ही हिलेरी, ट्रंप से इक्‍कीस है किंतु लोकतंत्र की यही तो खूबी है कि उन्‍नीस हो या इक्‍कीस, निर्णय जनता ही करती है। अमेरिकी जनता के इस फैसले की घड़ी अब करीब आ रही है। 

Sunday, August 14, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव --- 2
    दिलेरी से मैदान में डटी हिलेरी

      हिलेरी क्लिंटन। पूरा नाम हिलेरी डायेन रोढम क्लिंटन। उम्र 69 वर्ष। अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की अधिकत उम्‍मीदवार। आम तौर पर हम हिलेरी क्लिंटन को अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रति बिल क्लिंटन की पत्‍नी के रूप में ही जानते हैं। हिलेरी क्लिंटन का परिचय इससे कहीं अधिक और कई माईनों में तो बिल क्लिंटन से अधिक प्रभावशाली भी है। 26 अक्‍टूबर 1947 में जन्‍मी हिलेरी अमेरिका के इलीनॉय प्रान्‍त की निवासी है। हिलेरी ने वर्ष 1969 में वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय से पोलिटिकल साईन्‍स में पोस्‍ट ग्रेजुएड डिग्री प्राप्‍त की। इसके बाद वर्ष 1973 में हिलेरी ने येल लॉ स्‍कूल से वकालत की पढाई पूरी की। इसके बाद अमेरिका के अरकांसास प्रोविन्‍स में वकालत आरम्‍भ की। वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय में हिलेरी की मुलाकात बिल क्लिंटन से हुई। दोनों ने 1975 में विवाह कर लिया। इनके एक पुत्री चेल्‍सा क्लिंटन है जिसका जनम 1980 में हुआ। हिलेरी एक कठोर तर्कशास्‍त्री है। विषयों की गहरी समझ और तार्किक पकड के बाद ही जुबान खोलने वाली महिला है। वकालत के पेशे में आने के कुछ ही समय बाद वह बेहद प्रभावशाली वकीलों की सूची में शामिल हो गई। अमेरिका के सर्वकालिक प्रभावी वकीलों की सूची में हिलेरी क्लिंटन का नाम शामिल हुआ। सफलता की सीढियां हिलेरी ने धीरे धीरे किंतु ठोस रूप से चढी। हिलेरी न्‍यूयॉर्क प्रोविन्‍स की कनिष्‍ठ सेनेटर रह चुकी है। अमेरिका के बयालिसवें राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में वर्ष 1993 से 2001 तक हिलेरी अमेरिका की प्रथम महिला रही। इससे आगे बढते हुए वर्ष 2001 में हिलेरी ने अमेरिकी सेनेटर का कार्य आरम्‍भ किया। हिलेरी हमेशा से दिलेरी के लिये जानी जाती रही है। येल लॉ स्‍कूल में अपने पहले ही भाषण से वह सुर्खियों में आई। अमेरिकी राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में बिल क्लिंटन-मोनिका लेंविस्किी प्रेम संबंधों पर अमेरिका सहित पूरे विश्‍व में जब गॉसिप का माहौल गरम था, उसी चटखारों से भरी गरमी में सबसे ज्‍यादा झुलसी महिला कोई थी तो वह हिलेरी क्लिंटन थी। हिलेरी ने अपने छलिये और विश्‍वासघाती पति राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन को माफ कर उस दौर में अमेरिकी समुदाय में अपना कद बहुत उंचा उठा लिया।
      वर्ष 2008 आया। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्‍ट्रपति पद के लिये उम्‍मीदवार का चयन होना था। हिलेरी क्लिंटन दौड में सबसे आगे थी। सब कुछ ठीक चलता रहा किंतु धीरे धीरे मालूम होने लगा कि अपनी खुद की पार्टी में ही हिलेरी को लेकर एक राय नहीं थी। अन्‍तत: हिलेरी क्लिंटन ने हवा का रूख पहचाना और अपनी उम्‍मीदवारी छोड दी। इसका निर्णय हुआ बराक ओबामा को डेमोक्रेटिक पार्टी के रूप में उम्‍मीदवार बनाने के रूप में। 5 जून को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने उम्‍मीदवार की घोषणा की अपनी राजनीति में कूटनीति की पहली शिकस्‍त मिली हिलेरी क्लिंटन को। अमेरिकी राजनैतिक दलों की की ये सबसे बडी खूबसूरती है कि अपनी पार्टी के भीतर आगे बढने के लिये चुनाव लडो। जीत जाओ तो ठीक, नहीं तो पराजय का लेबल चिपका कर दूसरे दलों की चौखट पर नाक मत रगडो। पार्टी तो अपनी ही है। पूरे तन-मन-धन से पार्टी के प्रत्‍याशी को जिताने में जुट जाओ। हिलेरी क्लिंटन ने ऐसा किया भी।  'यस वी केन' के साथ आशा का संचार करते हुए बराक ओबामा अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुने गये। हिलेरी की काबिलियत को ओबामा भलि भांति जानते, समझते थे। वह अमेरिकी विदेशमंत्री बनाई गई। अमेरिकी विदेश मंत्री का कार्य और पद बेहद गंभीर और महत्‍व का माना जाता है। पूरी दूनियां में मची उथल-पुथल के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी हितों के लिये विभिन्‍न देशों, समुदायों, शक्तिकेन्‍द्रेां, उग्रवादी दलों, बागियों से वार्ताएं जारी रखी। घोर विरोधी गुटों जैसे इजरायल और फिलीस्‍तीन जैसों को भी शांति वार्ता हेतु टेबल पर बिठाया। अफगानिस्‍तान, इराक से अमेरिकी सैनिको की कुशल और समयबद्ध वापसी तो कराई ही साथ ही आतंकवादी गुटों पर अमेरिकी कहर जारी रखा। नाटो देशों ने मजहबी मुखौटा लगाये बर्बर आतंकी संगठनों एक भी दिन चैन से नहीं बैठने दिया है, इसके पीछे हिलेरी क्लिंटन की रणनीति भी बहुत हद तक श्रेय की हकदार रही है। सीरिया, लेबनान, इराक में चल रहे ग़हयुद्धों के जिम्‍मेदार आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में अमेरिका कुछ हद तक कामयाब रहा है। हिलेरी क्लिंटन की सबसे बडी कामयाबी इरान के साथ अमेरिका के संबंधों में सुधार होना और साम्‍यवाद के अंतिम कुछ अवशेषों के साथ जीवित देश क्‍यूबा के साथ दोस्‍ताना संबंध स्‍थापित करना रहा। कुछ ऐसे मोर्चे भी रहे जिनमें हिलेरी क्लिंटन असफल रही। साथ ही पाकिस्‍तान जैसे विश्‍व के कालीन पर कलंक की तरह लगे धब्‍बे को हिलेरी भी नहीं सुधार सकी। अमेरिका के साढे तीन हजार निर्दोषों के कातिल ओसामा बिन लादेन को गोद में छिपाये पाकिस्‍तान को करारा चांटा तब पडा, जब उसकी सेना के गढ में ओसामा को अमेरिकी सैनिकों ने मौत की गोदी में सुला दिया। हिलेरी के प्रयासों के बावजूद पाकिस्‍तान अमेरिका की बिगडैल पैदाईश से बिगडा ही बना रहा। हिलेरी क्लिंटन पाकिस्‍तान से आतंकी समूह हक्‍कानी नेटवर्क को खत्‍म करवाने में भी असफल रही। रूस और अमेरिका से अमेरिकी रिश्‍ते उबड-खाबड बने रहे। उत्‍तर कोरिया अमेरिका को आंखें दिखाता रहा। तालीबान फिर से सिर उठाने लगा है। इराक में शांति बहाली अभी दूर की कौडी है। आईएसआईएस, बाको हरम जैसे बर्बर मजहबी आतंकी पिशाचों पर अमेरिका पार नहीं जा सका है। इन तमाम असफलताओं के बावजूद भी इस बात में रत्‍ती भर शक की गुंजाईश नहीं रही कि हिलेरी क्लिंटन शातिर कूटनीतिज्ञ और बेहद सक्रिय विदेश मंत्री रही जिसने दुनियां भर में मच रही उथल-पुथल के बीच भी संतुलन की अपनी कोशिशों में कमी नहीं होने दी। दुनियाभर के नीति-नियंताओं ने इस बात को माना भी। यह बात पिछले दो तीन सालों से निरन्‍तर उठती रही कि आगामी राष्‍ट्रपति चुनावों में हिलेरी के बराबर दूसरा योग्‍य और समर्थ उम्‍मीदवार हो ही नहीं सकता।
      और ऐसा हुआ भी। अमेरिका के लोकतंत्र के 227 वर्षों के इतिहास में ऐसा हुआ कि किसी मुख्‍य दल ने एक महिला को सर्वोच्‍च पद के लिये नामांकित किया। अपनी ही पार्टी में हिलेरी की आरम्भिक तौर पर विरोधी रही सेंर्डस ने ही हिलेरी के पक्ष में नामांकन कर पार्टी में विरोध की खबरों पर विराम लगा दिया। हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्‍मीदवार बनी और इतिहास रच दिया। हिलेरी क्लिंटन की काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान राष्‍ट्रपति ओबामा ने यह वक्‍तव्‍य दिया कि, ''मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि हिलेरी मुझसे और बिल क्लिंटन से कहीं अधिक योग्‍य है।''

      ये बातें यह तर्क स्‍थापित करती है कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के लिये एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकती है। अपनी पार्टी की उम्‍मीदवारी का एक बडा पडाव हिलेरी ने सफलता के साथ पार कर लिया है किंतु यह है तो एक पडाव मात्र ही। असली टक्‍कर तो अब है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्‍मीदवार डोनाल्‍ड ट्रम्‍प से। हिलेरी क्लिंटन पारम्पिरिक अमेरिकी लोगों की पहली पसंद है। हिलेरी की नीतियों, बातों, विचारों और डेमोक्रेटिक पार्टी की विचाराधारा के प्रति लोगों में विश्‍वास और आस्‍था नजर आती है। असली चुनौती अमेरिकी राष्‍ट्रवाद की धारा के पुन: उठने से ट्रम्‍प के प्रति बढ रहे समर्थन को रोकने की है। ट्रम्‍प, हिलेरी के कार्यकाल के दौरान की गई गलतियों, असफलताओं को प्रचारित कर अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की जुगत में लगे हैं। निजी ईमेल से हिलेरी के पत्र व्‍यवहार को देश की सुरक्षा के सबसे बडे खतरे का डर दिखा रहे हैं। मुकाबला काफी रोचक बन रहा है। एक के बाद एक होने वाली रैलियों में हिलेरी के समर्थन में उमड रहे लोगों के हुजूम से हिलेरी उत्‍साहित हैं। उनके पति बिल क्लिंटन सभी प्रान्‍तों में घूम घूम कर अपनी पत्‍नी के लिये समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। हिलेरी क्लिंटन को सबसे बडा साथ और समर्थन वर्तमान राष्‍ट्रपति बराक ओबामा से मिल रहा है। ट्रम्‍प नीतियों को पूरी तरह बदलने के लिये संकल्‍प‍बद्ध होने की बात कह रहे हैं तो हिलेरी संभल संभल कर विभिन्‍न विषयों पर स्‍थापित नीतियों को आगे बढाने की समर्थक है। अमेरिकी जनता दोनों की पक्षों को सुन रही है। समर्थन भी दे रही है, किंतु मन में क्‍या ठान कर बैठी है, इसका भान अभी किसी को नहीं है। अमेरिका ही नहीं बल्कि विश्‍व भर में ये चुनाव चर्चा का केन्‍द्र है। इसके बारे में उत्‍सुकता जहां देशों के राजनेताओं में है वहीं अवश्‍य ही विश्‍व शांति के लिये खतरा बने गुट भी प्रक्रिया को टकटकी लगाये देख रहे होंगे। देखना है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद चुनाव का उंट किस करवट बैठता है। अभी तो बस, दोनों उम्‍मीदवारों के भाषणों, नीतियों पर अमेरिकी जनता की पैनी निगाह ही थाह लेने में जुटी है। 

Friday, August 5, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव :: डोनाल्‍ड ट्रम्‍प का उभार और अमेरिका के लिये दोराहा

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव
 विशेष फीचर - (1)

डोनाल्‍ड ट्रम्‍प का उभार और अमेरिका के लिये दोराहा
(संजय पुरोहित)
अमेरिका के राष्‍ट्रपति का चुनाव आम भारतीय के लिये हमेशा से कौतुहल का विषय रहा है। एक तो ये लम्‍बा, थका देने वाला बोरिंग चुनाव है दूसरा निर्वाचित होने वाले व्‍यक्ति के भारत के प्रति द़ष्टिकोण के प्रति उत्‍सुकता बनी रहती है। क्‍या कुछ है अमेरिकी चुनाव की खासियत और क्‍यों ये चुनाव दुनिया के राजनैतिक चक्र को अपने अक्ष पर गतिशील करने वाले साबित होंगे। इन्‍ही विषयों पर विशेष सीरीज का पहला भाग।
इस वर्ष का चुनाव सदी का महत्‍वपूर्ण और निर्णायक मोड वाला चुनाव होने जा रहा है। यह चुनाव अमेरिका के ही नहीं अपितु पूरे विश्‍व की राजनैतिक व्‍यवस्‍था में आमूलचुन परिवर्तन करने वाला टर्निंग पोईन्‍ट वाला चुनाव होने जा रहा है। इस विशेष सीरीज की पहली कडी में आज हम डोनाल्‍ड ट्रम्‍प के अमेरिकी राजनीति परिद़श्‍य में उभरने और उसके व्‍यापक असर की चर्चा करेंगे।
बराक ओबामा ने अपना चुनाव 'येस वी केन' के नारे के साथ लडा। अमेरिका ही नहीं बल्कि मानवीयता, समानता की सोच रखने वाले विश्‍व के सभी देशों में उनके निर्वाचन को सकारात्‍मक रूप से लिया गया। आतंकवाद के प्रति कडे रूख और 11 सितम्‍बर के हमले के बाद अमेरिका पर किसी भी दूसरे हमले को रोकने में सक्षम रह कर ओबामा प्रशासन ने अमेरिकियों के बीच ठोस जगह बनाई। दुनियां की आतंकी पाठशाला पाकिस्‍तान में अपने सबसे बडे गुनहगार ओसामा लादेन को मार कर ओबामा ने अमेरिकी लोगों का विश्‍वास बनाये रखा। निजी मोर्चों पर अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन्‍स के लगातार विरोध होता रहा किंतु ओबामा डटे रहे। इस बीच इराक, सीरिया से आईएसआईएस के उदय ने अमेरिका के सामने बेहद बडी चुनौती खडी कर दी। नेटो सेनाओं के सरदार के रूप में अमेरिका आईएसआईएस से युद्धरत है। लेकिन इस बीच ओबामा का दूसरा कार्यकाल समाप्ति पर आ गया। आज भी यदि अमेरिका में जनमत संग्रह कराया जाये तो अमेरिकी जनता की भावना बराक ओबामा को हटाने की कत्‍तई नहीं होगी लेकिन अमेरिकी संविधान में एक राष्‍ट्रपति दो बार से ज्‍यादा राष्‍ट्रपति नहीं रह सकता। बराक ओबामा को कभी खुशी कभी गम वाले आठ सालों के बाद विदा होना होगा। लेकिन ओबामा का पद भरने के लिये जो विकल्‍प अमेरिका को मिल रहे हैं, वे उस दर्जे के तो कत्‍तई नहीं है जिसकी अमेरिकन अपेक्षा करते थे।
ट्रम्‍प। डोनाल्‍ड ट्रम्‍प। आये और छा गये। अमेरिका के हितों को विश्‍व के हितों के उपर रखने का वादा कर रिपब्लिकन पार्टी के उम्‍मीदवार ट्रम्‍प अचानक से नयी और आक्रामक छवि के साथ सामने आये। उधर हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की अधिक़त उम्‍मीदवार के रूप में सामने आई है। अभी हालात ये हैं कि राष्‍ट्रवादी लहर पर सवार होकर डोनाल्‍ड ट्रम्‍प बढत बना रहे हैं। ट्रम्‍प बेलाग, बेखौफ, दो टुक, खरी खरी कहने वाले शख्‍स के रूप में उभरे हैं। वे फुफकारते बैल की भांति बढे चले जा रहे हैं। दुनिया के लिये कलंक बने आतंकवाद और इसके समर्थक, इसके प्रति नरम रूख अपनाने वाले, चुप रहकर मौन समर्थन करने वालों के लिये ट्रम्‍प के कैम्‍प में कोई जगह नहीं है। ट्रम्‍प मीठे शब्‍दों का मुलम्‍मा चढा कर लिजलिजी बात नहीं कहते। उनके बयान झन्‍नाटेदार चांटों की तरह सटीकता से लक्ष्‍य को बिलबिला रहे हैं। ट्रम्‍प के बयान उनके समर्थकों के लिये लहर पैदा कर रहे हैं। ट्रम्‍प ने अपने पहले ही महत्‍वपूर्ण बयान से अपनी प्राथमिकताओं को अमेरिकी जनता के साथ साझा किया। मजहब का आवरण ओढ कर अमेरिकी अवाम में घुलमिल कर आतंकवाद के लिये जमीन तैयार करने वालों के विरूद्ध ट्रम्‍प ने खुल्‍लम खुल्‍ला बयान देकर अमेरिकी राजनीति में भूचाल ला खडा कर दिया। इससे बडी बात ये हुई कि बडी संख्‍या में पीडित अमेरिकी जनता ने ट्रम्‍प को समर्थन देकर वर्षों से विदेशियों के बढते आधिपत्‍य के प्रति अपनी भडास निकालनी शुरू कर दी। जो ट्रम्‍प पहले मुकाबले में कमजोर ही नहीं बल्कि दिखाई तक नहीं दे रहे थे, अचानक ही लाईमलाईट में आ गये। डेमोक्रेटस हिलेरी के कैम्‍प में ट्रम्‍प ने भूचाल ला दिया। ट्रम्‍प का चुनाव अभियान शुरू से ही आक्रामक रहा है। वे मुसलमानों को अमेरिका में घुसने नहीं देने की नीति बनाने का दावा कर रहे हैं। अमेरिकी बाजारों की नौकरियों जो होशियार भारतीयों विद्यार्थियों के आधिपत्‍य में बढती जा रही है, उन्‍हे पुन: अमेरिकी युवाओं के लिये बहाल करने का सब्‍जबाग दिखा रहे हैं। आउटसोर्सिंग से हो रही रोजगार की कमी के विरूद्ध में ठोस कदम उठाने का भरोसा दे रहे हैं। मैक्सिको से आने वाले अपराधियों के गिरोहों, मादक पदार्थों और अवांछित शरणार्थियों को रोकने के लिये अमेरिका मेक्सिकों की अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सीमा पर दीवार बनाने का वादा भी कर रहे हैं। बाहर से आकर अमेरिका में बस गये लोगों के प्रति उनका रवैया बेहद कठोर है। यही भारत सहित अन्‍य विकासशील देशों के लिये चिंता का कारण है। पर्यावरणीय जिम्‍मेदारी उठाने के लिये अमेरिका पर दबाव के सख्‍त विरोध की दलीलें भी ट्रम्‍प के पास मौजूद है।  
      ट्रम्‍प बेलाग हैं। उनके पास अकूत दौलत है। जाहिर सी बात है कि यह चुनाव विचारों से ज्‍यादा दौलत की ताकत पर लडा जा रहा है। ट्रम्‍प की खुद की पार्टी रिपब्लिकन्‍स के कई साथ खुले तौर पर ट्रम्‍प का विरोध कर रहे हैं। पर इससे ट्रम्‍प को कोई फर्क पडता नजर नहीं आ रहा है। वे तो बस दौडे चले जा रहे हैं। डेमोक्रेटस उनकी उन्‍मुक्‍त मॉडल रही पत्‍नी, उनके व्‍यापार, उनकी जीवनशौली पर अंगुलियां उठा रहे हैं। लेकिन उनके विरोध का असर उल्‍टा हो रहा है। उनका समर्थन बढता ही जा रहा है। अपने भडकाउ बयानों से सुर्खियां बटोर रहे हैं। पर हैरानकुन बात यह है कि उन्‍हे अमेरिकी जनता का अविश्‍वसनीय और अपार समर्थन मिल रहा है।

अमेरिका विश्‍व परिद़श्‍य में अपने लिये नई भूमिका, अपने समाज के लिये सुरक्षा की आशा करता है। इराक, सीरिया, अफगानिस्‍तान, लीबिया और दूसरे देशों में अपने हितों को साझने की अमेरिकी नीति के कारण पिछले डेढ दो दशकों में हजारों अमेरिकी सैनिकों को कुर्बानी देनी पडी है। तेल का खेल हो या हथियारों का व्‍यापार, दुनिया के बॉस बनने की आकांक्षा हो या ग्‍लोब के सभी देशों को अपनी अंगुलियों पर नचाने की साम्राज्‍यवादी परम्‍परा, अमेरिका की नीतियां उसके सहयोगी कम, शत्रु ज्‍यादा बढाती रही है। अन्‍तत: ऐसा नीतियों का खामियाजा आम अमेरिकी भुगतता रहा है। ऐसा लगता है कि वह उकता सा गया है। इस उहापोह वाली स्थिति में बराक ओबामा का पद खाली होना और ट्रम्‍प का विकल्‍प के रूप में उभरना अमेरिकियों के लिये अस्‍वा‍भाविक निर्णय लेने में महत्‍वपूर्ण साबित हो सकता है। यह वस्‍तुत: अमेरिकियों के लिये दोराहा है। क्‍या ट्रम्‍प बयानवीर साबित होंगे या वास्‍तव में कथनी को करनी में बदलने का दुस्‍साहस भी करेंगे। यदि ऐसा करेंगे भी तो क्‍या उसे व्‍यापक रूप से मान्‍यता मिल पायेगी विश्‍व भर की संस्‍क़तियों, परम्‍पराओं, भाषाओं, धर्मों और देशों के लोगों से रचा बसा अमेरिका कहीं अपने पहियों को रिवर्स गियर में तो नहीं डालेगा ? ट्रम्‍प के उलजुलूल फैसले अमेरिका के लिये ही आत्‍मघाती तो साबित नहीं हो जायेंगे ? ये सभी प्रश्‍न अभी समय से पहले उठ रहे हैं, काल्‍पनिक परिस्थितियों पर आधारित हैं, जिनका उत्‍तर भविष्‍य के गर्भ में है। फैसला अमेरिकी मतदाता को करना है। डगर बदलेगी या बदलेगी सहर। वक्‍त बतायेगा। हिलेरी क्लिंटन या डोनाल्‍ड ट्रम्‍प। निर्णय जो भी होगा, विश्‍व परिद़श्‍य को बदलने वाला होगा।