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Monday, February 1, 2010

ना हल्‍ला मचाओ, ना आवाज ही दो, अभी मुल्‍क मेरा सोया हुआ है

भारत की महानता का बखान करने वाले हम करोड़ों करोड़ नागरिकों में आज यह भाव दिलो दिमाग में कहीं न कहीं शंका का बीज सिंचित कर रहा है कि कहीं हम असुरक्षित तो नहीं होते जा रहे। भारत विरोधी तत्व अपनी जड़ें तो कभी के जमा चुके थे, अब तो वो उन्हे गहरी, और गहरी कर रहे हैं। भारत की सीमाओं पर चीन घुसपैठ करता हुआ आँखंे दिखा रहा है। अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा को तो वो भारत का हिस्सा ही नहीं मानता। भारत में यह आम धारणा है कि चीन से शत्रुता को लम्बा नहीं किया जा सकता। लेकिन क्या हम कोई ऐसा कदम नहीं उठा सकते जिससे चीन को यह तो कम से कम अहसास हो कि भारत अब 1962 वाला मुल्क नहीं रह गया है। क्यों नहीं भारत में आने वाले अरबों-खरबों रूपये के ‘मेड इन चाईना‘ के उत्पादों पर रोक लगाई जाए। ये उत्पाद वैसे भी भारतीय अर्थ व्यवस्था को रसातल में डालने के लिए आ रहे हैं। लेकिन हमारे कर्णधार सो रहे हैं। बात पाकिस्तान की करें तो पाकिस्तान हमारी सीमाओं में आतंकवादियों की घुसपैठ करवा रहा है। ये सब जानते हैं, हम भी, और अमेरिका भी। लेकिन हो ये रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान की सहायता को बढाते बढाते तिगुनी कर चुका है। यह कोई सामान्य बुद्धि वाला बालक ही समझ सकता है कि पाकिस्तान को दी गई हर सैन्य सहायता का उपयोग अल कायदा या तालीबानियांे के विरूद्ध नहीं बल्कि भारत के विरूद्ध किया जाता रहा है और किया जायेगा। इसके लिए पाकिस्तान कृत संकल्प है। क्यों नहीं भारत अमेरिका के सामने इस पार या उस पार वाली कूटनीति अपनाता। बेशक भारत ज्यादा कुछ नहीं कर सकता लेकिन विश्व परिदृश्य में निरन्तर बयानबाजी कर एक माहौल तो बना सकता है। लेकिन नहीं हम तो सो रहे हैं। भारत के पड़ोसी नेपाल में भारत विरोधी हवा को भड़काया जा रहा है। नेपाल की राजनीति में एक नया फैशन भारत विरोध का उभर रहा है। अरबों डॉलर्स की प्रतिवर्ष की भारतीय सहायता प्राप्त करने वाला नेपाल भारत को भड़का रहा है। ये तो वही मिसाल हुई कि ‘‘हमारी बिल्ली हमीं को म्याऊं।‘‘ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का तमगा लगाये भारत ने कभी म्यानमार में लोकतंत्र की स्थापना के लिए प्रयास नहीं किया। उलटे म्यानमार के फौजी शासकों से सामान्य संबंध बनाये रखे। भारत की खामोशी ने चीन के हौसले बढाये और अब म्यानमार में चीनी दखल बढ रहा है। बांग्लादेश की बात करें तो इसने नया ही तरीका अपने देश के गरीबी मिटाने का निकाल लिया है। बांग्लादेश अपने भूखे-नंगे नागरिकों को भारत में धकेल रहा है। बांग्लादेश से सटी भारतीय सीमा से करोड़ों बांग्लादेशी भारत आ चुके हैं। वो वर्षो से यहां रह रहे हैं और अधिकांश ने अपने भारतीय होने के कागजात भी बनवा लिये हैं। क्या आपको हैरानी नहीं होती यह तथ्य जानकर कि आसाम विधानसभा की कई सीटों का निर्णय बांग्लादेशी करते हैं। और तो और इनकी तरफदारी के लिए भी सत्ता के दीवाने मौजूद है। आखिर हम कर क्या रहे हैं। क्या यह प्रश्न बुद्धिजीवियों को असहज नहीं करता कि भारत को चारों तरफ से घेरा जा रहा है ? हाल ही में लीबीया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी ने और कहीं नहीं बल्कि युएनओ में भाषण दे डाला कि कश्मीर को अलग राष्ट्र बना देना चाहिए। हमारे नीति निर्धारकों ने इसका विरोध करना तो दूर रहा, अपनी प्रतिक्रिया तक नहीं दी। क्या भारत ‘‘साफ्ट स्टेट‘‘ बनता जा रहा है, जिसके बारे मे जिसके जो जी मे आए कहे, बके क्यों कि हम तो मामले को तूल ही नहीं देना चाहते। मनमोहन सिंह सरकार के द्वितीय कार्यकाल में विदेश नीति अब तक पूरी तरह असफल रही है। हमारे विदेशमंत्री को यह तक नहीं मालूम कि कब बोलना चाहिये, कब चुप्प रहना चाहिये और कब धमकाना भी चाहिये। देश में जब सलमान खुर्शीद, जयराम रमेश, कपिल सिब्बल जैसे कुटनीतिज्ञ मौजूद थे जब क्या जरूरत थी कि उम्र की आखिरी ढलान पर बैठे व्यक्ति को विदेश मंत्री बना दिया गया। भारत की स्थिति महाभारत काल के अभिमन्यू की तरह हो गई है जो चक्रव्यूह में घिर चुका है और उसे नहीं मालूम कि बाहर कैसे निकला जाये। बहरहाल हम तो चुप हैं और हमारा देश सोया हुआ है। किसी ने ठीक ही कहा है -‘‘ना हल्ला मचाओ, ना आवाज़ ही दो, अभी मुल्क मेरा सोया हुआ है।‘‘


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