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Monday, February 15, 2010

पाकिस्‍तान जी, हम बातचीत के लिए तैयार हैं

पाकिस्तान जी, हम बातचीत के लिए तैयार हैं

मुम्बई, भारत पर 26/11 के हमले के बाद चैदह महिनों की बातचीत विहीन किंतु पाकिस्तान पर दबावपूर्ण चुप्पी से भारत ने दुनियां भर का समर्थन हासिल कर लिया था। पाकिस्तान विश्वमंचों  पर भारत को बातचीत के लिए गुहार लगा रहा था। सार्क सम्मेलन के अन्तर्गत गृहमंत्री पी.चिदम्बरम अगले महिने पाकिस्तान जाने वाले थे। पाकिस्तान पर पूरी तरह दबाव था कि अचानक भारत के कर्णधारों को ना जाने क्या सूझी कि पाकिस्तान को बातचीत के लिए औपचारिक निमंत्रण भेज दिया। भईये, इतनी क्या जल्दी थी, आखिरकार आपके गृहमंत्री जा ही तो रहे थे। बस फिर क्या था, पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित करना आरम्भ कर दिया। इतना महान देश अपने विचारहीन सरमायादारों के हाथों फिर लज्जित हुआ। पहले भी ऐसा हो चुका है। लालबहादुर शास्त्री ने भारतीय विजय को टेबल पर एक कागज का टुकड़ा मात्र बना कर रख दिया और भारत द्वारा विजित क्षेत्र पाकिस्तान को लौटा दिया गया। उसी पाकिस्तान ने भारत के आधे कश्मीर पर कब्जा कर रखा है। यही नहीं, भारत के दुसरे दुश्मन राष्ट्र चीन को नाजायज रूप से भारतीय जमीन ही उपहार के रूप में भेंट कर रखी है। उसी पाकिस्तान से मनमोहन सिंह ने बातचीत के द्वार फिर खोल दिये। आम भारतीय ये समझना चाहता है कि आखिर भारत को क्या पड़ी है उस देश से कोई भी बातचीत करने की जिसके हाथ खून से रंगे हैं, हजारों निदोष और मासूम भारतीयों के खून से। किसे पड़ी है कि वो पाकिस्तान से बातचीत करे, और करे ही क्यूं। बहुत हो लिया नाटक दोस्ती के नाम का। जिस देश की नींव नफरत की हो, बीज घृणा के हों, तो पौधा प्रेम के फल और दोस्ती के फूल कैसे खिला सकता है। क्या ये छोटी सी बात हमारे हुक्मरानों के समझ में नहीं आती ? वर्षो से सीमाओं पर हमारे जवान शहीद होते रहे हैं, होते जा रहे हैं। क्यों ? किसलिए ? क्या कभी किसी एक शहीद के घर के हालात जानने का प्रयास भर भी करते हैं ये तथाकथित दोस्ती को बढ़ावा देने वाले तत्व ? क्यों खुशहाल जवानी को छोड़ कर हमारे जवान शहीद होते रहें ? केवल इसीलिये कि बाद में हम उन्ही लोगों से दोस्ती की पींगे बढाते रहें जिनके कारण हमारे सैनिक शहीद होते रहें। बातचीत की तारीख फाईनल हुई और एक और धमाका हुआ इस बार पुणे में मासूम मारे गये। भला किन्हे पड़ी है कि कौन जीता है, कौन मरता है। अपने इण्डिया में तो सब, बस यूंही चलता है। लेकिन कब तक..............................................
थोड़ा और पीछे चलें,‘पिपल टू पिपल‘ सम्पर्क के नाम पर हमने समझौता एक्सप्रेस और थार एक्सप्रेस को शुरू करवा डाली। अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का हमने ऐसा काम किया जिसका भुगतान हमंे लम्बे समय तक करना पड़ेगा। करोड़ों रूपये के जाली नोट ये पाकिस्तानी नागरिक भारत में लाते हैं। कुछ पकड़े जाते हैं और कहना न होगा कि बाकि पकड़े नहीं जाते। कई भारत मे आकर रहस्यमयी रूप से गायब हो जाते हैं। बाद में देश की जड़ों को कमजोर करने के काम में जुट जाते हैं। कहीं आतंकवादी बन कर प्रकट होते हैं तो कहीं जासूस बन कर। समझ नहीं आता कि काहे ‘समझौता‘ और काहे की ‘थार‘ जब पाकिस्तान बन रहा है मासूम हजारों निर्दोषों को मार। 
और हमे क्या पड़ी है कि हम उनसे बातचीत करें जिनका एक मात्र ध्येय भारत का विखण्डन करना है। जिसके पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ के हाथ कारगिल के शहीदों के खून से सने हैं, जिसके सेनाध्यक्ष जनरल कियानी  जो पूर्व में आईएसआई के मुखिया रहे थे, जो मुम्बई हमलों का षडयंत्रकारी है, उस देश से क्यों कर करें हम बात। अण्डरवल्र्ड मुखिया दाउद इब्राहीम, मैनन, छोटा शकील आदि आदि भारत के दुश्मनों को पनाह देने वाले, मुम्बई हमलों के मुख्य आरोपी हाफिज सईद की ढाल बन कर खड़े होने वाले मुल्क से दोस्ती की बात करना भी सरासर गलत है। दोस्ती के नाम पर जिस मुल्क ने हमेशा भारत की पीठ मे छुरा भौंका है उससे शराफत की उम्मीद करना कहां की अक्लमंदी है। काश! बातचीत के लिए ज़मीन तैयार करने वाले जनप्रतिनिधि, साहित्यकार, कार्यकर्ता, कलाकार आदि आदि के कोई प्रियजन शहीद तो होते। तब ही उन्हे अहसास होता कि उनके दिल पर क्या गुजरती है जब पाकिस्तान से दोस्ती की बात होती है। क्या कोई जवाब एक आम भारतीय को मिलेगा ? शायद नहीं। हाँ, जवाब पाकिस्तान जरूर देगा, ये पक्का है- एक और आतंकवादी हमले के रूप में। तो आईये दोस्ती की बात आरम्भ करें और इंतजार भी आरंभ करें एक और हमले का। क्यों कि आखिरकर हमने कह दिया है -पाकिस्तानजी हम बातचीत के लिये तैयार हैं। 

6 comments:

  1. यह सब महंगाई के मुद्दे से जनता का ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा है .ताकि अखबारों कि सुर्खिया बदल जाये.अन्यथा कोई कारण नहीं कि २६/११ के बाद कुछ भी नहीं बदला,या देश को यह बताया जाये कि ऐसी कौनसी मजबूरी आ गयी कि हमे अपनी ही
    घोषणा
    से पीछे हटना पड रहा है .क्या यह अजीब बात नहीं है कि २६/११ के बाद हम कहे कि पाकिस्तान से बात नहीं करेंगे और पुणे ब्लास्ट के बाद कहे कि हम बात करेंगे.

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  2. भला किन्हे पड़ी है कि कौन जीता है, कौन मरता है...theek kaha

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  3. Problem ye hai ki janta sab samjhati hai par uski samjh ko samjhnewala koi hai nahi aur hai bhi to na sanjhne ka bahana karta hai. Kya kai baar nahi lagta economy se jyada badh kar ijjat naam ki bhi koi cheez hoti hai. Sanjay Bhai aapne bahut sahi likha hai, kabile taarif. Jyadatar janta to soi padi hai aur jo thodi bahut jaag rahi hai uski koi sunane wala nahi varna log 'my name is khan' to shouq se dekhne jaate hai aur jo hazaro kashmiri pandit saalo se apne hi desh me refugee ban gaye hai un par koi film banane wala paida hi nahi hua hai, is sab ka ek hi karan hai - Hindu samaj soya hua hai, jaatiyo me banta pada hai agar saare hindu ek ho jaaye tabhi is desh ka kalyan hoga varna nahi, aap khud dekh lena. Agar is desh me parivartan aayega to sirf isi tarike se varna nahi.

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  4. आलोक राष्ट्र का पश्चिम की बदली में अटक गया है।
    अन्धकार की राह पकड़कर सूरज भटक गया है।
    सहना कोई अन्याय यह कायरता का सूचक है।
    यह किसी राष्ट्र की जनशक्ति की जड़ता का सूचक है।
    मात्र अहिंसा तो ऋषियों का आभूषण होती है।
    par राज मार्ग पर कायरता का आकर्षण होती है।
    हिंसा के प्रतिशोधों को तो युद्ध किए जाते है।
    प्रस्ताव अमन के वीरों द्वारा नही दिए जाते है.

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  5. बहुत ही सारगर्भित एवं समय की आवश्यकतानुसार लिखा गया यह लेख है। लेखक महोदय इसके लिये आपको धन्यवाद तथा सदा मार्ग प्रशस्त रहने हेतु शुभकामनायें।

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