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Thursday, March 4, 2010

बोये पेड आतंक का तो अमन कहां ते होय

बोये पेड़ ‘आतंक‘ का तो ‘अमन‘ कहां ते होये

पाकिस्तान के हुक्काम बौखलाये हुए हैं। अमेरिकी भीख के मोहताज बनी पाकिस्तानी सरकार बेमन से तालिबानियों के विरूद्ध युद्ध कर रही है। जिस प्रकार गली के श्वानों को ‘उश..उश‘ कर भौंकने के लिए उकसाया जाता है, ठीक वैसा ही अमेरिका पाकिस्तान सरकार को ‘उश..उश‘ कर तालीबानियों के खिलाफ लड़ने के लिए उकसा रहा है। 
पाकिस्तान में आए दिन बम धमाकों की खबरें आ रही है। मौत के आगोश में समाने वालों की तादाद बढती जा रही है। पाकिस्तान ने जिस दहशत का बीज लगाया था, मासूमों के खून से वर्षो सींचा था, वही बीज अब दहशत का विशाल पेड़ बन चुका है। ठीक ही तो है बोये पेड़ बबूल का तो आम कहां ते होय। पाकिस्तान अपने ही बनाये भस्मासुरों की कैद में है। इस्लामाबाद, पेशावर, लाहौर या कराची पाकिस्तान का कोई शहर महफूज नहीं रह गया है। 
ये बदकिस्मती ही होगी उस मुल्क की कि जहाँ के लोग अमन को तरस रहे हैं और हुक्काम बेसिर पैर के निर्णयों से अवाम के लिए मुश्किल दर मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। वजीरिस्तान में एक लाख लोगों के लिए जीवन-मृत्यु का प्रश्न खड़ा हो गया है। हजारांे लोग बेघर हो गये हैं। उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। पाकिस्तान सेना आज भी सरकार से बड़ा रूतबा रखती है। जब आतंकियों ने सेना के मुख्यालय, आई एस आई के इन्टेरोगेशन सेन्टर में भी हमला किया तो सेना ने आखिरकार वजीरिस्तान में कार्यवाही आरम्भ की। तालीबान को पाकिस्तान ने जितना कमजोर समझा था उतने वे थे नहीं। यदि कोई ग्रुप सेना मुख्यालय पर कब्जा कर बंधक बना सकता है तो यह एक गंभीर संकेत था। पाकिस्तानी सेना को समझ में आ रहा है कि अब आर या पार की लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी। यहाँ एक बात बड़ी रोचक है। पाकिस्तान तालीबान के सभी कमाण्डरों के विरूद्ध हमला नहीं कर रहा है बल्कि जो पाकिस्तानी सेना के कहने में नहीं है उन्ही के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है। पहले वजीरिस्तान में मौलाना फजलुल्लाह से समझौता किया गया। ये समझौता अवाम की आजादी को गिरवी रख कर किया गया था। इसके बाद सोचा गया कि सब कुछ ठीक-ठाक हो जायेगा। लेकिन तालिबान की नजरें पूरे पाकिस्तान पर थी। तालीबान एक सोची-समझी रणनीति के तहत हमले पर हमले कर रहा है। अन्ततः अमेरिकी दबाव ने पाकिस्तान को तो मजबूर कर दिया कि वो तालीबान के खिलाफ कार्यवाही करे लेकिन पाकिस्तान ने तालीबानियों के सामने विकल्प रख दिया-या तो हमारी गोली से मरो, या कश्मीर में जाकर ‘जिहाद‘ लड़ो। तालीबान प्रमुख हकीमुल्ला का हालिया बयान-‘हम पाकिस्तान को इस्लामी मुल्क बनायेंगे और उसके बाद इण्डिया के बॉर्डर पर लडे़गे‘, इसी परिप्रेक्ष्य में समझा जा सकता है। भारत के लिए यह खतरे की घंटी है। हमें तत्काल ही सर्तक हो जाना चाहिये।
यह विडम्बना ही है कि दुनियां का सबसे खतरनाक, बिगड़ैल, आतंक का कारखाना और वह भी परमाणु शक्ति से सम्पन्न देश हमारा पड़ोसी है जिसके घर की लपटें हमारे मुल्क को भी झुलसा सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी के पास विकल्प सीमित-दर-सीमित होते जा रहे हैं। पाकिस्तान विश्व शांति के गले में एक एसी हड्डी बन चुका है, जिसे ना तो निगला जा सकता है और ना ही उगला जा सकता है। बेसिरपैर निर्णय लेते राष्ट्रपति, असमंजस में वजीरे आजम, झूठ पर झूठ बोलते सूचना मंत्री और रहस्यमयी मौन धारण किये हुए सेनाध्यक्ष कियानी। क्या ऐसे मे आशा की जा सकती है कि यह देश उबर पायेगा। बेशक नहीं। भारत के पंजाब, कश्मीर, दिल्ली, मुम्बई में हजारों का खून बहाने वाले आतंकियों के सहयोगी पाकिस्तान को अब हर दिन खुद ही के मुल्क में हो रहे धमाकों से मरने वाले अनजान लोगों की चिल्लाहटों सुनाई देती होगी और शायद अहसास भी होता होगा कि ‘‘बोये पेड़ ‘आतंक‘ का तो ‘अमन‘ कहाँ ते होये‘‘

5 comments:

  1. kya kahu us padosi ke bare mai jo ye kahe ki bhensh safed hoti hai...
    jai hind.
    regards
    yogendra kumar purohit
    M.F.A.
    BIKANER,INDIA

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  2. सच ही तो है कि यदि हम अपने बच्चे को दूसरों पर आंख दिखाने के लिए तैयार करते हैं तो समय आने पर वह खुद हम पर ही आंखें तरेरने लगता है । ठीक वैसा ही हाल पाकिस्तान का है । सही कहा गया है कि "जैसा करोगे वैसा भरोगे" या यूं कहें कि "जैसी करनी वैसी भरनी"।

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  3. बधाई । सजावट बढ़िया है । वर्ग वार सामग्री को रखने के लिए label ज़रूर बनायें ।

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  4. पुरोहित जी रचना बहुत अच्छी है,किंतु आपसे प्रार्थना है की आप अपनी रचना मे हिन्दी के शब्दों का प्रयोग अधिक से अधिक करें तो रचना ओर भी सुंदर बनेगी. आपकी रचना की शैली बहुत अच्छी है किंतु अरबी शब्दों का ज़रूरत से ज़्यादा प्रयोग है.

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  5. संजय सवाह यह है कि भारत कब तक पाकिस्तान की आलोचना करता रहे गा और कब तक कार्यवाही के लिए अमेरीका का इंतजार करता रहेगा।

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