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Thursday, February 9, 2017

कलियुग केवल नाम अधारा

कलियुग केवल नाम अधारा
व्यंग्य: संजय पुरोहित
            प्रभु श्रीराम निद्रामग्न थे। माता सीता रात्रि भोजन तैयारी हेतु रसोईयों को निर्देश प्रदान कर रही थी। पानी भरने, पानी गरम करने, पंखे झलने, बगीचों से ताजा सब्जियां लाने, साफ-सफाई करवाने जैसे काम अयोध्या से आये वानरों ने संभाल रखे थे। प्रोटोकाॅल के हिसाब से ये सब वानर सीधे सीधे हनुमान को रिपोर्ट किया करते थे। हनुमान, रामजी के अनन्य सेवक। कार्य प्रभुसेवा। प्रभु के आदेशों की पालना। प्रभु का नाम सुमिरण करना। राजमाताएं महलों में व्यस्त थीं। स्वर्गस्थित अयोध्या शांत थी।
            अचानक हनुमान ने पृथ्वी पर श्रीरामका जयघोष सुना। हनुमान आश्चर्यचकित हुए। इतनी अवधि बाद इतनी तीव्रता से प्रभु श्रीराम को किसने याद किया। पृथ्वी के कालचक्र अनुसार इस क्षेत्र विशेष में यह जयघोष लगभग साढे़ चार साल बाद हुआ। ज्ञात हुआ यह आर्यावृत्त के प्रधानसेवक के श्रीमुख से हुआ। हनुमान को ईष्र्या हुई।
‘‘हनुमान। ये ध्वनियां तुम्हे अतीव मात्रा में सुनाई देगी। आर्यावृत्त है। यहां हर पांच वर्ष बाद चुनाव आते हैं।‘‘श्रीराम ने हनुमान के मन की बात समझते हुए कहा।
‘‘जी दशरथनंदन। परंतु चुनाव में आपके नाम का उद्घोष होने का क्या संबंध ?‘‘ हनुमान ने जिज्ञासा रखी।
‘‘हे मारूतिनंदन। पृथ्वी के इस भूभाग में सनातनियों का आधिक्य है। ये अपने शासक का चुनाव एक उत्सव की तरह करते है।‘‘श्रीराम ने समझाया।
‘‘हे सियापति। मेेरे मूल प्रश्न का उत्तर प्रदान कर जिज्ञासा शांत कीजिये। तत्पश्चात् पूरक प्रश्न की घृष्टता कर पाऊंगा।‘‘ हनुमान ने करबद्ध निवेदन किया।
प्रभु हनुमान की निःछल गतिविधि पर हंस पड़े। हनुमान को अपने पास बिठाया।
‘‘पवनपुत्र। मैं तुम्हारे मूल प्रश्न की ओर आ रहा हुं। यहां भांति-भांति के चुनाव होते हैं। कभी वृहद्, कभी लघु चुनाव। इनमें मेरा ही नाम गूंजता है। कोई मुझे माने या ना माने, पर मेरे नाम से भयभीत अवश्य रहता है।‘‘ श्रीराम ने विषय को विस्तारा।
‘‘हे अयोध्या नरेश। आपने भी तो केवट की नैया पार कराई थी।‘‘ हनुमान मुस्कुराते बोले, ‘‘कदाचित उसी प्रसंग से आर्यावृत्त के प्राणी प्रेरित होते हों।‘‘ श्रीराम ने हनुमान को स्नेहासिक्त दृष्टि से देखा। हनुमान ने अपनी दृष्टि पुनः पृथ्वी पर डाली। हलचलों को स्कैन किया।
‘‘हे मर्यादापुरूषोत्तम। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार तो चुनाव वहां पर है, जहां आपने लीलायें की थी।‘‘ हनुमान ने प्रभु को अपडेट करते हुए कहा।
‘‘हे बजरंग बली। ये प्राणी मात्र यहीं मुझे समझने में त्रूटि करते हैं। मेरी लीलायें तो मनुष्यमात्र को सद्मार्ग का राही बनाने को थी। अब जो लीलायें मेरे नाम पर होती रही है, वो तो कष्टप्रद है। इसका प्रादुर्भाव दो-तीन दशक पूर्व हुआ जब नूतन अभियांत्रिकी और मशीन से निर्मित रथ में सवार होकर मेरे भक्तों को उत्तेजित किया गया। तत्पश्चात् हे पवनसुत! इसकी परिपाटी चल पड़ी। समयावधि व्यतीत होने के साथ-साथ ऐसी गतिविधियों में वृद्धि हुई। अब इन लीलाओं के पात्रों की हास्यस्पद क्रीड़ाएं देखता हूं तो अनुभूत होता है कि ये चिंता की बात नहीं है। ये तो मनोरजंक, रोचक है।‘‘ प्रभु बोले। 
            हनुमान ने हांमें गरदन हिलाते हुए एक बार पुनः नीचे भारत भूभाग को देखा।
‘‘प्रभु, यह क्या ?!!,‘‘हनुमान को कुछ अप्राकृतिक हलचल दृष्टिगोचर हुई, ‘‘इस बार तो लगता है सिंघासन आसीन समाजवाद की देह में श्रीरामवाद प्रविष्ट हो गया है। हे प्रभु, ये आपकी कैसी माया है ? समाजवादी आपके नाम पर कुछ बड़ा करने की जुगत में है।‘‘
प्रभु ठहाका मार हंस पड़े। फिर बोले, ‘‘हे प्रथम सेवक। ये मेरी माया नहीं। सत्ता की माया है। तुम इन गतिविधियों के केन्द्र बिन्दु को समझो।‘‘श्रीराम ने कहा।
‘‘आर्यावृत्त के केन्द्रीय शासक चयन के लिये हुए चुनाव को पृथ्वीकाल अनुसार तीन वर्ष हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश नामक राज्य में चुनाव को साढे़ चार वर्ष हो चुके हैं। सो अब यहां चुनाव नियत है। अयोध्या वाले भूस्थल में।‘‘ हनुमान ज्ञान को ग्रहण कर रहे थे।
‘‘हे महाबली हनुमान। ऐसी गतिविधियों का मुख्य कारण राज्य में चुनाव ही है। अब इन्हे देखो। ये समाजवादी हैं। सत्ता की पंचर साईकिल चला रहे हैं। इन्हे पहले कलह समाप्त करनी चाहिये, अन्यथा प्रजा वनवास भेजने में विलम्ब नहीं करेगी। उहापोह की मनःस्थिति में इन्हे मेरे नाम का भय इन्हे सता रहा है। कदाचित उसी भय के वशीभूत कुछ जुगत लड़ा रहे होंगे।‘‘श्रीराम बोले।
‘‘हे कौशल्यानंदन। जुगत ऐसी वैसी नहीं है। आपके नाम पर एक विशाल बगीचा बना रहे हैं। लगभग बाईस कोटि आर्यावृत्त मुद्रा से अन्तर्राष्ट्रीय पटकथा बगीचा‘‘ हनुमान ने भव्यता का अनुमान लगाया। प्रभु कुछ समझे नहीं। हनुमान ने सरल शब्दों में बताया, ‘‘इन्टरनेशनल थीम पार्क।‘‘ प्रभु मंद-मुद मुस्कुरा उठे।
‘‘हे हनुमान। मुझे तो यह भी ज्ञात हुआ है कि इन्होंने इस बार साईकिल के हैण्डल पर मेरा नाम अंकित कराया है। खैर! इन समाजवादियों की चर्चा को विराम दो। अब यह उवाचो कि मेरे नाम का होलसेल भण्डार खोलने वाले भक्तों की गतिविधि क्या है ?‘‘ प्रभु ने पूछा। 
            हनुमान ने अपनी दृष्टि को विस्तारा। भूस्थल पटल पर दृष्टि केन्द्रित की। भगवा रंग को सर्च किया। इमेजेज को मार्क किया। आकलन किया।
‘‘हे कौशल अधिपति। समाजवादियों के प्रस्ताव से इतर आपके नाम का प्रतिलिप्याधिकार का दावा करने वाले भगवाई भी भव्य लीला की जुगत में है।‘‘ हनुमान ने बताया।
‘‘वो क्या हनुमान ?‘‘ प्रभु ने जिज्ञासावश पूछा।
‘‘प्रभु वे भी आपकी लीलाओं पर आधारित एक भव्य स्मारक बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं। ‘‘रामायण सर्किट।‘‘ इस इन्फोर्मेशन पर श्रीराम ठहाका मार कर हंसें।
            इसी क्षण सीता माता कक्ष में प्रविष्ट हुई। सीता माता ने वार्तालाप के विषय को जाना। उन्हे भी यह पर्याप्त मनोरंजक लगा। कुछ सोच कर सीता माता ने अपनी रूचि प्रकट की।
‘‘हे हनुमान। यह भी बताईये कि इस प्रखण्ड की नारी शक्ति की क्या स्थिति है ?‘‘ सीता माता ने पूछा।
            हनुमानजी ने शीश नवाया। पुनः धरती की ओर देखा। अपनी दृष्टि से उत्तरप्रदेश की गतिविधियों में से नारी हलचल को फिल्टर किया।
‘‘हे माते..‘‘ हनुमान ने हाल सुनाया, ‘‘..वैसे तो वहां सभी कुछ प्रभु के नाम के आधार पर ही हो रहा है, किंतु नारी शक्ति में उथल-पुथल चल रहा है। पूर्व में एक वृद्धा को खेवैया बना कर पुराना दल ताल ठोक रहा था किंतु अब जिनके विरूद्ध थे, उन्ही के साथ समूह गान गा रहे हैं। यह कदाचित उचित निर्णय है प्रभु क्योंकि प्रजा जर्जर खटिया को भी खड़ी करने पर तुली प्रतीत हो रही थी।‘‘
‘‘क्या ये भी श्रीराम का नाम रट रहे हैं ?‘‘ सीता माता ने जिज्ञासा रखी।
‘‘नहीं माते!‘‘ हनुमान बोले, ‘‘इनकी मनःस्थिति आज भी वही कन्फयूजन वाली है। ये आज भी सोच रहे हैं कि श्रीराम का नाम लिया जाये अथवा नहीं‘‘
‘‘ओह ! प्रभु के नाम का अतिशय उपयोग करने वाले दल में नारी शक्ति की क्या स्थिति है हनुमान ?‘‘ सीता माता ने अगला प्रश्न किया।
‘‘हे माते!‘‘हनुमान ने प्रत्युत्तर दिया,‘‘अभद्र भाषा का उपयोग करने पर निष्कासित भक्त की भार्या को पावर दिया गया है। इसके अतिरिक्त एक और नारी शक्ति है, जिसे मुद्रा से अतिशय स्नेह है। वह मुद्रा अथवा सत्ता दोनों अथवा दोनों में से एक प्राप्त करने की रणनीति में व्यस्त है। जोड़-बाकी-गुणा-भाग की अभियांत्रिकी में लीन है। वह प्रभु के नाम के मसाले का उपयोग करने का तरीके और उसकी काट ढूंढने की जुगत में है।‘‘
‘‘प्रभु...यह चुनाव निश्चय ही रोचक होंगे। हमें भी परिणामों की प्रतीक्षा होगी...‘‘हनुमान बोले, ‘‘....सभी श्रीराम के नाम के सहारे चुनावी भवसागर पार करने की जुगत में है। कदाचित तुलसीदासजी ने इसी कालखण्ड और क्षेत्र विशेष के लिखा हो, ‘‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा
            यह सुन सीतामाता के साथ प्रभु श्रीराम भी मुस्कुरा उठे।
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