संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, May 19, 2010

हरीयल वादियों में खोया रेगिस्तानी मन (यात्रा वृतान्त )

हरीयल वादियों में खोया रेगिस्तानी मन
(यात्रा वृतान्त )


बीकानेर की चिलचिलाती जून महिने की धूप में कालका के लिए प्रस्थान किया। तापमान झूल रहा था छियालिस-सैंतालिस के बीच। धूल से रास्ते भर स्वागत करती आंधियां राजस्थान की सीमा तक विदा करने के लिए मौजूद थी। पंजाब आते आते मौसम कुछ सुहावना हो गया। कालका पहुंचे तो सौ साल से पहाड़रें की सैर कराने वाली टॉय ट्रेन ‘हिमालयन क्वीन‘ तैयार खड़ी थी। पहाड़ी धाटियां, सुरंगों, पुलों, जंगलों और सड़कों के साथ साथ इस खिलौना गाड़ी में सफर करने का आनन्द शब्दों की बयानबाजी से परे है। जहाँ चाहे नजर दौड़ा लें, प्राकृतिक दृश्य आपकी आँखों के रस्ते दिल में उतर जाता है। पहाड़ी चोटियों पर छायी बर्फ ऐसा प्रतीत करा रही थी जैसे हिमालय ने बर्फ का मुकुट पहन रखा है। छोटी छोटी घाटियों जैसे हिमालय के दरबारी हों। सब कुछ जादुई, मनमोहक और अद्भुद। शाम घिरते शिमला पहुंचे। शिमला समुन्द्र तल से 6790 फीट पर बसा देश का सबसे खूबसूरत हिल स्टेशन है। इसकी लम्बाई मात्र 12 किलोमीटर है। इन्टरनेट से पहले ही होटल कमरों की बुकिंग करवा चुके थे इसलिए कोई खास परेशानी नहीं हुई। कल्पना कीजिये कि बीकानेर में जून की गर्मी और शिमला में हाड कंपा देने वाली सदी। होटेल में रजाईयों की अच्छी व्यवस्था थी। थकान ऐसी कि खाना खाने के बाद कब नींद ने अपनी कम्बल में लपेट लिया, अहसास ही नहीं हुआ।
अगले दिन सुबह सवेरे ही शिमला और इसके आसपास के स्थलों के भ्रमण का प्लान बनाया। इसके लिए हमने मारूति वेन को किराये पर लिया। सबसे पहले पहुंचे-कुफरी। खच्चरों पर बैठ कर ये यात्रा डेढ-दो किलोमीटर से पूरी की। दलदली रास्ता, डरे सहमे हम, समझदार खच्चर और हंसी-ठहाकों से गूंजता रास्ता। एक तरफ पहाड़ी और दूसरी और खाई। लेकिन पूरी तरह हरियाली ही हरियाली। हम कुफरी तक पहुंचे ही थे कि घनघोर बरसात आरम्भ हो गई। ठण्ड से मिमियाते यात्री जहाँ तहाँ शरण लिये बैठे थे। यह स्थल बर्फ के खेलों, याक की सवारी तथा कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र के लिए प्रसिद्ध है। बरसात रूकी तो कुफरी से निकले। जंगल के बीच स्थित चिड़िया घर में अजीबोगरीब जानवरों और पक्षियों को देखा। इनमें स्नो लेपर्ड (पहाड़ी तेंदुआ), चीनी मुर्गा जैसे प्राणी भी शामिल थे। यहाँ से हम पहुंचे- द चाईना बैंग्लो। पहाड़ी पर बना लकड़ी का हरे रंग का यह घर किसी बंगले से कम नहीं लगता। कुछ पल यहाँ बिताने के बाद हमने जाखू हनुमान मन्दिर पहुंचे। यह शिमला का सर्वोच्च शिखर है जहाँ पर सीधी और कठिन चढाई है। इसके शिखर पर हनुमान जी का मन्दिर है। इसके बाद कम समय होने के बावजूद फागु तथा ग्रीन वैली का भी भ्रमण किया। बालू के टीले देखने वाले रेगिस्तानी व्यक्ति के लिए हरियाली भरा दृश्य कितना मनोरम रहा होगा, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। 
शाम को थके हारे होटल पहुंचे और अगले दिन के प्रोग्राम का विचार बनाया। अगला दिन हम शिमला में ही व्यतीत करना चाहते थे। इसलिए पहुंचे सुप्रसिद्ध माल रोड। अंग्रेजों के रूआब और भव्यता की मिसाल है- माल रोड। यह एक व्यस्त सैरगाह है। पुरानी कॉलोनियां, दुकानें और रेस्टोरेंट। सब एक से बढ कर एक। हमारी खुशनसीबी रही कि उसी दिन हिमाचल फेस्टिवल भी माल रोड पर आरम्भ हुआ। हमने वहां जम कर खरीददारी की।विशेष रूप से कुछ गर्म कपड़े, अखरोड, काजू, स्ट्रॉबेरी और लीची। माल रोड पर ही गेयटी थियेटर को देखने का सुअवसर भी मिला। 
एक दिन और शिमला में रूकने के बाद हमने एक टाटा स्पेशियो किराये पर ली। ये गाड़ी हमें शिमला से कुल्लु होते हुए मनाली ले जाने वाली थी। मनानी की ट्रिप समाप्त होने पर यही गाड़ी हमें कालका पहुंचाने वाली थी जहाँ से हमें बीकानेर के लिए ट्रेन पकड़नी थी। सुबह सवेरे शिमला को मायूसी के साथ अलविदा कहा और निकल पड़े मनाली की ओर। पार्वती नदी के सहारे सहारे चलता वाहन प्रकृति के प्रति सहज श्रद्धा उत्पन्न कर रहा था। बीच में तो कई मिनिटों तक सुरंग का रास्ता मिला। इंसानी करिश्में के रूप में स्थित यह सुरंग हैरतअंगेज लगी। कुल्लु होते हुए शाम को मनाली पहुंचे। इन्द्र देवता यहाँ हमारा स्वागत करने के लिए तत्पर थे। मॉडल टाऊन में ही होटल में कमरा बुक कराया और रात का खाना गुजराती रेस्टोरेंट में खाकर नींद लेना उचित लगा। 

मनाली में पहली सुबह बादलों ने एका कर सूर्य से लुकाछिपी का खेल खेलना शुरू कर दिया। हम सुबह सवेरे ही निकल पड़े। सबसे पहले मनुमन्दिर में पहुंचे और मनु महाराज की मूर्ति के दर्शन किये और मन्दिर के इतिहास के बारे मंे जानकारी हासिल की। यहाँ से हम पहुँचे हिडिम्बा टेम्पल टिपिकल पहाड़ी मन्दिरों की तरह यह भी झोंपड़ीनुमा मन्दिर है। ऊँचे और ऊँचे देवदार के पेड़ों से ढका पूरा इलाका रहस्यमय लगता है। इसी मन्दिर के पास में घटोत्कच का पूजा स्थल भी स्थित है। कुछ ही दूरी पर बौद्ध मठ स्थित है जहाँ जाकर मन को अतीव शांति अनुभूत हुई। इसके बाद हम पहुंचे क्लब हाउस। यह सैर सपाटे और मनोरंजन का मुख्य केन्द्र है। हाँ, बड़ों के लिए कुछ खास नहीं पर बच्चों ने यहाँ जम कर आनन्द उठाया। शाम को होटल पहुंचे और आज पंजाबी खाने का लुत्फ लिया। आज के दिन इतना ही काफी था।
ड्राईवर के निर्देश के अनुसार ही सुबह 4 बजे हम निकल पड़े रोहतांग के लिए। यह वह स्थान है जिसे देखने के लिए अतीव उत्कंठा थी। सुरम्य घाटियों, टेढे मेढे रास्तों और गालों को सहलाते हुए ठण्डे-ठण्डे झोंकों के साथ हम रोहतांग के रास्ते पर थे। यह रास्ता फिसलन भरा और सीधी सड़क वाला है। दूर से ही सफेद टोपियां लगाये पहाड़ियां आमंत्रण देती सी प्रतीत हो रही थी। गाड़ी 15 से 20 कि.मी. प्रतिघंटे से ज्यादा तेज चलाना खतरे से खाली नहीं था। यही हमने बर्फीले मौसम में पहनने वाले विशेष कपड़े, दस्ताने और बूट किराये पर लिये। लगभग तीनघंटे के सफर के बाद हम पहुंचे रोहतांग की वादियों में।
पहाड़ियों ने जैसे धवल वस्त्र धारण कर लिया था। गाड़ी से उतर कर लपक पड़े अनछुई बर्फ पर। बर्फ के आगोश में बैठ कर अनुभूत किये गये भावों को वर्णित करना शब्दों से परे है। बच्चों ने यहाँ स्नो मैन बनाये, एक दूसरे पर बर्फ फेंकी और जम कर आनन्द उठाया। इसी क्षण स्नो फॉल भी आरम्भ हो गया। इन्द्र के हाथों से मुट्ठीयों में भर-भर कर फेंकी गई बर्फ के गिरने का अद्भुत दृश्य रोमान्चित कर गया। यहाँ दो घंटे बिताने के बाद वापिस मनाली लौटे। कुछ देर घूमघाम कर शॉल खरीदने का निर्णय किया। सभी परिजनों, मित्रों के लिए कुछ न कुछ उपहार लेना लाजमी था। सबकी पसंद के अनुसार कुछ न कुछ खरीदा। इसके बाद फास्ट फूड का आनन्द भी लिया। 

अगला दिन रवानगी का था। हमने निर्णय किया कि हम सिखों के पवित्र गुरूद्वारे मणिकर्ण के दर्शन कर ही कालका पहुंचेंगे। मणिकर्ण में एक तर्फ सनसनाता ठण्डा पानी तो दूसरी तरफ गर्म पानी का श्रोत, अचरज में डालने वाला लगा। मणिकर्ण सिक्खों के लिए एक अत्यन्त ही प्राचीन और श्रद्धा का केन्द्र है। यहाँ 24 घंटे लंगर चलता है। यहाँ दर्शन कर हमने कालका की राह पकड़ी। कालका से रेल द्वारा रवाना हुए सुबह एक बार पुनः गर्म हवाओं के थपेड़ों ने हमारा स्वागत किया। ऐसा लगा हम रात भर किसी मधुर स्वप्न से अचानक उचक जाग बैठे हों। धीरे-धीरे बीकानेर नगर के निशान दिखने लगे। शिमला मनाली में बिताये अविस्मरणीय दिनों के बावजूद बीकानेर हमेशा की तरह अच्छा लगा, और अधिक प्यारा लगा।     


17 comments:

  1. nice, i had also visited Kullu Manali Last year, its amazing place

    http://madhavrai.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. yade taja kar di bhiya aap ne...

    ReplyDelete
  3. travelogue alwys inspire me to read and whn it comes to hilly experience it fascinates like anything. thank u very much for sharing yr beautiful exprnce. hope u enjoyed wth yr family and had fun :)

    ReplyDelete
  4. वाह जी, आपका सफ़र तो शीतल मनमोहक रहा.
    खिलौना ट्रेन तो बहुत बढ़िया यात्रा है...

    ReplyDelete
  5. sanjay jee
    pranam ,
    aap ki yatra ne hume bhi prayatan sthal ki sher karva di , naynabhiram drishay , mera souobhagya hai ki aap ke dwara zubani bhi sunne ka aur chookar snaps dekhn ne ka awasar paaya hai , ek baar punah aabhar hansi wadiyon me ghumane ke liye.
    thanks

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. 'धीरे-धीरे बीकानेर नगर के निशान दिखने लगे'

    संजय जी, जब यह पंक्ति मैंनें पढी तो मेरा अन्‍तर्मन बहुत भावुक हो उठा। मैंने महसूस किया कि जब बीकानेर के निशान आपको दिखे होंगें, तो आपका मन अति उत्‍साहित व उमंगित हुआ होगा और बच्‍चे तो बस.....एकदम खुशी के मारे उछल रहे होगें।
    चाहे यात्रा कितने ही दिन की क्‍यों न हो, लेकिन जब भी बीकानेर वापस आना होता है, तो लगता है कि बहुत समय हो चुका बीकानेर को छोडे हुए।
    गर्मी हो, सर्दी हो, आँधियां हो, बरसात हो या फिर ओस की बूंदें..........बीकानेर जैसा आनन्‍द तो कहीं भी देखने नहीं मिलता। हॉं, ये अलग बात है कि क्षणिक आनन्‍द, बीकानेर से बाहर भी लिया जा सकता है।

    ReplyDelete
  8. 100% realstic sound of yours about "SHIMLA"
    after read your article i went in my past memory when i was in "SHIMLA" thanks sanjay ji.

    ReplyDelete
  9. अच्छा फोटो एमं दिलचस्प वृतांत!

    ReplyDelete
  10. really very nice ..... but ha ve one prob. i mean aapto in thandi wadityo ka maza le rahe hain in PIXS main or hum ish desert main tap rahe hain .....but humko bhi ishka ehsaash karane ke liye thnx

    ReplyDelete
  11. apana ghar to apana hi hota hai ...saari duniya ghoomane ke baad ghar ka sukun ek alag thandhak deta hai

    ReplyDelete
  12. 50 degree ke lagbhag taapmaan ke beech barfili vaadiyon ka chintan sukoondaayak hai. aapki yatra ke liye badhai or hamein mansik yatra karvane ke liye saadhuvaad

    ReplyDelete
  13. sanjay bhaiya aapka yatra je baare me vistaar se padha aise laga jaise khud he shimla dekh reha hu prakrtik sundarta ka khoobsurti se aapne bayaan kiya hai bikaner vaapsi ke samay aapney kuch bhavuk kiya per yatra sukkh dayi rehi.
    dhayavaad hame is roop main shimla ki yatra kervane ke liye

    ReplyDelete
  14. बढ़िया यात्रा संस्मरण

    ReplyDelete
  15. Aapki yatra vritant ko prh kr mujhe b apni shimla yatra yaad aa gyi...

    ReplyDelete