पूरब और पश्चिम |
चारयूंमेर भागम दौड़।
रिपीयो बणग्यो, माईबाप,
चौकी मोटी, छोटी खांप।
जनता कम, अर नेता घणा,
निब्बे पर भारी, दसूं जणा।
नीत अनीत, सुरग रा पट्टा,
आज बण गया, हंसी‘र ठट्टा।
जूण मिनख री है अनमोळ,
बिसरयो ए, संतां रा बोळ।
गरूजी खोल लियो बैपार,
तनखा धोबो, टिंगर चार।
राज रो पईसो, सहसतरधार,
न्हाओ मोकळा, भवसागर पार।
भाठा हो रिया, मालामाळ,
पढ़ियो कूके, बाका फाड़।
कळजुग रो, ओ मेळो देख,
तांबो काढै सोने री मेख।
काग दड़ाछंट, राज करै,
हंसो घुट घुट, मांय मरै।
कळजुग रो, ओ मेळो देख,
ReplyDeleteतांबो काढै सोने री मेख।
काग दड़ाछंट, राज करै,
हंसो घुट घुट, मांय मरै।
संजय जी
घणी खम्मा !
फूटरी ओलिया है थारी .,
खम्मा घणी !
आदरजोग संजय भाई साब, घणी खम्मा सा ! छमा चाऊं के म्हें इत्ती फूटरी अ'र सांच री आंच में तप्योडी रचनावां देर स्यूं पढ़ पायो. काईं केवूँ इण ऊँडी रचनावां री तारीफ़ में, सबद ई आपरी छमता खो रया है. इण रचनावां में कबीर रो दरसण, बिहारी री नीति अ'र नागार्जुन री शैली, सें की तो है... आपरो घणो आभार सा इण रचनावां सारु. आसा है टेम-टेम पर आपरी इणकदरी सांतरी लेखणी स्यूं म्हें फेरूँ हरखीजस्याँ सा !
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