लघुकथाएं
(1)
**गीता का ज्ञान**
प्रोफेसर साहब का गीता अध्ययन गहन और तार्किक था। मित्रों ने सलाह दी कि गीता पर
अपनी टीका छपवाएं, पर उनकी कोई रूचि नहीं थी। प्रोफेसर से प्रभावित एक युवा उनका शिष्य
बन गया। उसके साथ घंटों चर्चाएं चलती। शिष्य अपनी जिज्ञासाएं रखता। प्रोफेसर साहब सटीक जवाब देते।
शिष्य जवाब को अपनी डायरी में लिखता। कुछ माह तक यही सिलसिला चला। फिर शिष्य ने
आना बंद कर दिया।
एक दिन प्रोफेसर साहब ने समाचार पत्र में पढ़ा कि ‘गीता‘ पर एक पुस्तक का लोकार्पण होने जा रहा है। लेखक वही युवा
था, जो अपनी डायरी में प्रोफेसर साहब के ज्ञान को दर्ज करता था। समाचार पढ़ कर प्रोफेसर
साहब का मन कड़वा हो गया। उन्होंने रैक से 'गीता' निकाली और फिर से गीता के मर्म को
पढ़ना शुरू किया।
(2)
**मां**
'मम्मा, यू नो,
मेरी फ्रेंडस कहती है कि आई लुक फेट...कल से दो ही रोटी खाउंगी''
'नहीं बिटिया, तुम
बिल्कुल मोटी नहीं हो बल्कि बिल्कुल फिट हो''
''ना मम्मा, ओनली
टू चपाती फ्रोम टुमारो...दिस इज फाईनल''
अगले दिन बिटिया ने देखा, मां ने
उसके लिये दो ही रोटी बनाई पर रोटी का आकार दुगुना था और मोटाई भी।
(3)
**खटटे
अंगूर**
लोमडी कूदी। फिर कूदी। फिर फिर कूदी। अंगूर तक नहीं पहुंच पाई।
चिढ कर बोली, ''अंगूर खटटे हैं''
फिर एक गधा आया। अंगूर देखे । वह उछला। एक झपटटे में अंगूर के गुच्छे को मूंह में भर लिया। अंगूर वाकई खटटे थे।
गधे के मूंह से निकला ,''अंगूर खटटे हैं''
लोमडी दूर से देख रही थी। हंस कर बोली, ''गधा कहीं का''
गधा गंभीरता से सोचने लगा।
चिढ कर बोली, ''अंगूर खटटे हैं''
फिर एक गधा आया। अंगूर देखे । वह उछला। एक झपटटे में अंगूर के गुच्छे को मूंह में भर लिया। अंगूर वाकई खटटे थे।
गधे के मूंह से निकला ,''अंगूर खटटे हैं''
लोमडी दूर से देख रही थी। हंस कर बोली, ''गधा कहीं का''
गधा गंभीरता से सोचने लगा।
(4)
**संकल्प**
आदतन अपराधी पुत्र के दुखियारे पिता चल बसे। बैठक लगी। पंडित प्रतिदिन संध्या समय गरूड़-पुराण बांचते। एक दिन पंडित ने नचिकेता द्वारा देखे गये नर्क के वृतान्त को सुनाना शुरू किया।'' अधर्मी, पापी, दूसरों को हानि पहुंचाने वाले दुष्टों को नर्क में नाना प्रकार से यातना दी जा रही थी। किसी को कोड़े मारे जा रहे थे। कोई खौलते तेल में तला जा रहा था..'' आदि आदि। गरूड़ पुराण सुनते-सुनते दिवंगत पिता के अपराधी बेटे ने मन ही मन एक कठोर 'संकल्प' लिया।
अगले ही दिन से गरूड़ पुराण बन्द कर दिया।
आदतन अपराधी पुत्र के दुखियारे पिता चल बसे। बैठक लगी। पंडित प्रतिदिन संध्या समय गरूड़-पुराण बांचते। एक दिन पंडित ने नचिकेता द्वारा देखे गये नर्क के वृतान्त को सुनाना शुरू किया।'' अधर्मी, पापी, दूसरों को हानि पहुंचाने वाले दुष्टों को नर्क में नाना प्रकार से यातना दी जा रही थी। किसी को कोड़े मारे जा रहे थे। कोई खौलते तेल में तला जा रहा था..'' आदि आदि। गरूड़ पुराण सुनते-सुनते दिवंगत पिता के अपराधी बेटे ने मन ही मन एक कठोर 'संकल्प' लिया।
अगले ही दिन से गरूड़ पुराण बन्द कर दिया।
(5)
**मौन**
''दिवंगत आत्मा की शांति हेतु दो मिनिट का मौन'' संयोजक की घोषणा हुई। कुछ सेकेण्ड गुजरे। एक ने पलको हाले से घड़ी देखी। अभी तो पन्द्रह सेकेण्ड ही हुए थे। दूसरे ने धीरे से आँख खोल अन्यों को देखा। अधिकांश आंखें 'मिच-मिच' कर रही थी। ''अभी तो चालीस सेकेण्ड ही हुए हैं'' वह फुसफुसाया।
एक बुजुर्ग ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। एक 'शोकाकुल' माथे पर खाज कर रहा था। दूसरा 'शोक संतप्त' कान कुचर रहा था। तीसरा मोबाईल पर अंगुलियां थिरका रहा था। चौथा सेल्फी लेकर 'शोकाभिव्यक्ति' दे रहा था। जो दो-तीन महिलाएं थी, उमस से 'उफ-उफ' मुद्रा में थी। संयोजक ने घडी देखी, अभी तो सवा मिनिट ही नहीं हुआ था। वह वापिस आंखें बंद करने को था, तभी उसकी पसलियों में आयोजक की कुहनी लगी। आयोजक ने सख्त नजर से संकेत किया कि दो मिनिट ''हो'' गये। संयोजक बोला, 'ओम शांति: शांति:'। पुष्प चढी मालाओं के बीच दिवंगत की फ़ोटो ने शोकाकुलों को देखा....मौन पूरा हुआ।
''दिवंगत आत्मा की शांति हेतु दो मिनिट का मौन'' संयोजक की घोषणा हुई। कुछ सेकेण्ड गुजरे। एक ने पलको हाले से घड़ी देखी। अभी तो पन्द्रह सेकेण्ड ही हुए थे। दूसरे ने धीरे से आँख खोल अन्यों को देखा। अधिकांश आंखें 'मिच-मिच' कर रही थी। ''अभी तो चालीस सेकेण्ड ही हुए हैं'' वह फुसफुसाया।
एक बुजुर्ग ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। एक 'शोकाकुल' माथे पर खाज कर रहा था। दूसरा 'शोक संतप्त' कान कुचर रहा था। तीसरा मोबाईल पर अंगुलियां थिरका रहा था। चौथा सेल्फी लेकर 'शोकाभिव्यक्ति' दे रहा था। जो दो-तीन महिलाएं थी, उमस से 'उफ-उफ' मुद्रा में थी। संयोजक ने घडी देखी, अभी तो सवा मिनिट ही नहीं हुआ था। वह वापिस आंखें बंद करने को था, तभी उसकी पसलियों में आयोजक की कुहनी लगी। आयोजक ने सख्त नजर से संकेत किया कि दो मिनिट ''हो'' गये। संयोजक बोला, 'ओम शांति: शांति:'। पुष्प चढी मालाओं के बीच दिवंगत की फ़ोटो ने शोकाकुलों को देखा....मौन पूरा हुआ।
(6)
**रिक्त स्थान**
बडे लेखक की पुस्तक छपी। प्रकाशक ने प्रथम प्रति लेखक को सौंपी। लेखक ने सरसरी नजर से पन्ने पलटे। एक पृष्ठ में दो गद्यांशों के मध्य अनावश्यक रिक्त स्थान छूटा रह गया। लेखक ने आंखें तरेरी। प्रकाशक ने क्षमा याचना की। लेखक काफी दिन तक प्रकाशक से नाराज रहे सो पुस्तक चर्चा न्यौती।
दो पत्र वाचकों ने परचे पढे। दोनों ने गद्यांशों के मध्य छूटे रिक्त स्थान को गलती बताया। अब बारी थी लेखककीय वक्तव्य की। लेखक बोले, ‘‘काश हमारे पत्रवाचक बंधु इस रिक्त स्थान का अर्थ समझ पाते ! यह त्रूटिवश नहीं है। रिक्त स्थान के ऊपर वाले गद्यांश को पढ कर पाठक कुछ मनन करे, फिर अगले गद्यांश पर आएं, इसी का संकेत है यह रिक्त स्थान।'' पत्रवाचक नासमझ साबित हो गये। लेखक ने एक दृष्टि प्रकाशक पर डाली। मुस्कुरा रहा था वह।
बडे लेखक की पुस्तक छपी। प्रकाशक ने प्रथम प्रति लेखक को सौंपी। लेखक ने सरसरी नजर से पन्ने पलटे। एक पृष्ठ में दो गद्यांशों के मध्य अनावश्यक रिक्त स्थान छूटा रह गया। लेखक ने आंखें तरेरी। प्रकाशक ने क्षमा याचना की। लेखक काफी दिन तक प्रकाशक से नाराज रहे सो पुस्तक चर्चा न्यौती।
दो पत्र वाचकों ने परचे पढे। दोनों ने गद्यांशों के मध्य छूटे रिक्त स्थान को गलती बताया। अब बारी थी लेखककीय वक्तव्य की। लेखक बोले, ‘‘काश हमारे पत्रवाचक बंधु इस रिक्त स्थान का अर्थ समझ पाते ! यह त्रूटिवश नहीं है। रिक्त स्थान के ऊपर वाले गद्यांश को पढ कर पाठक कुछ मनन करे, फिर अगले गद्यांश पर आएं, इसी का संकेत है यह रिक्त स्थान।'' पत्रवाचक नासमझ साबित हो गये। लेखक ने एक दृष्टि प्रकाशक पर डाली। मुस्कुरा रहा था वह।
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