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Tuesday, September 20, 2016

शंकर भोले का थाण***कहानी*** संजय पुरोहित

शंकर भोले का थाण

कहानी:- संजय पुरोहित

शांतिप्रसाद कुछ परेशान थे। उनकी बेटी सुमन को लड़के वाले देखने आने वाले थे। पैसे वाले लोग थे, बिटिया सुख से रहेगी। लड़का सरकारी मुलाजिम था, अच्छी तनख्वाह थी। काश! यह रिश्ता हो जाए, यही कामना करते हुए मन मंे कहीं यह भी आशंका थी कि कहीं मना कर दिया तो ? मन ही मन ईष्ट का ध्याया और सवा किलो देसी घी के लड्डू चढाने का संकल्प लिया।
शंातिप्रसाद खुद सरकारी मुलाजिम थे। पत्नी, एक बीस साल की बेटी सुमन और दो बेटे बाईस साल का शंकर और इक्कीस साल का विमल। बिटिया ने ग्रेजुएशन कर लिया था और अब बी.एड. कर रही थी। बड़ा लड़का शंकर मंदबुद्धि बालक था। उसके लिए सदैव ही शांतिप्रसाद चिंतित रहते कि उनके बाद इसका क्या होगा। बहुत इलाज करवाया। ओझा तांत्रिकांे के पास भटके, मंदिर-मंदिर मन्नते मांगी लेकिन शंकर ठीक ना हो पाया। उस पर ना जाने किसकी छाया थी या भगवान ने उसे बनाया ही ऐसा था। शंकर पर अचानक ही जैसे कोई हावी हो जाता था। वह पागलांे जैसी हरकतें करने लगता। कभी कभी खुद को ही घायल कर लेता तो कभी चिल्लाने लगता। छोटा बेटा विमल पढ़ाई में तेज था। कम्पाउंडरी का कोर्स कर रहा था और प्राईवेट अस्पताल में ट्रेनिंग ले रहा था। शांतिप्रसाद जी को उम्मीद थी कि वह अपना रास्ता पकड़ ही लेगा।
विमल ने शांतिप्रसाद को सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं बस कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। शांतिप्रसाद ने खुद रसोई मंे जाकर सब व्यवस्थाएं देखीं और संतुष्ट हुए कि सब कुछ ठीक-ठाक है। शंकर को लेकर वे कुछ चिंतित थे। परिवार ने निर्णय किया कि शंकर की उपस्थिति से कुछ भी गड़बड़ हो सकता है इसलिए क्यांे न उसे किसी रिश्तेदार के पास भेज दिया जाये। शांतिप्रसाद को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी। उन्हे लगा कि इससे लोगांे को चार बातंे और बनाने का मौका मिल जाएगा। वे ऐसा नहीं चाहते थे। बल्कि वे तो लड़के वालेे  को भी शंकर के बारे में बताना चाहते थे। आखिरकार रिश्ते में  बातें छिपाने से बात बनती नहीं, बल्कि बिगड़ जाती है। अंत मंे यह निर्णय लिया गया कि शंकर को कमरे में बंद कर दिया जाए। सभी ने सहमति में सिर हिलाया। विमल प्यार से अपने भैया को बहला-फुसला कर कमरे में ले गया।
थोड़ी देर में लड़के वाले आ गए। उन्हे सम्मान सहित बिठाया गया। सुमन चाय-नाश्ता लेकर आई। बातचीत चल रही थी। शांतिप्रसाद अपने संभावित समधी को परिवार के बारे में बता रहे थे। शंकर के बारे में वे कुछ बताने वाले ही थे कि अचानक शंकर को जैसे दौरा पड़ा। शांतिप्रसाद अचकचा गए। शंकर ने अपने हाथोंों से दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति के लिए कोई तैयार नहीं था। शांतिप्रसाद ने विमल को इशारा किया कि वो शंकर को बाहर आने दे। विमल ने जैसे ही दरवाजा खोला तो शंकर झट से बाहर निकला। उसकी नजर सीधे टेबल पर पड़ी मिठाई पर पड़ी और वह सीधा टेबल की ओर लपका। कोई उसे रोक पाता उससे पहले ही उसने अपने हााथों में मिठाई उठाई और उसे खाना शुरू कर दिया। मेहमान यह देखकर कुछ असहज हो गए। शांतिप्रसाद उठे और शंकर को प्यार से अन्दर जाने के लिए कहा। वह कहां सुनने वाला था। उस पर जो जैसे जुनून सवार हो गया। उसने शांतिप्रसाद के हाथ को झटक दिया। उसके हाथ की मिठाई समाप्त होने को थी और उसने झट से लड़के के हाथ से मिठाई छीन ली। लड़के वाले इसे भला क्यों बर्दाश्त करते। लड़का क्रोधित हो गया और उसने अपने मां-बाप से तत्काल वहां से निकल जाने का इशारा किया। दो ही पल में सब किये धरे पर पानी फिर गया। लड़के वाले चले गये। पूरा परिवार पर जैसे मुर्दनी छा गई। शंकर अब भी मिठाई खा रहा था।
इस वाकये के बाद परिवार महीनों तक उबर नहीं पाया। शांतिप्रसाद ने हिम्मत नहीं हारी। नाते रिश्तेदारों से सुमन के रिश्ते के लिए बात करते रहे। उनकी मेहनत रंग लाई और आखिरकार एक अच्छे परिवार से बात हुई। उन्होंने लड़की को देखने का अनुरोध किया और शांतिप्रसाद ने हां कर दी। दिन, समय तय हुआ।
शांतिप्रसाद परिवार के साथ बैठे। पुराना अनुभव उनके सामने था। शंकर का क्या करें। वैसे वो हमेशा ऐसा नहीं करता था लेकिन यदि उसने फिर वैसा किया तो ? यह प्रश्न सभी को परेशान कर रहा था।
सब विचार कर ही रहे थे कि विमल ने सुझाव दिया, ‘बाबूजी, एक तरीका है। क्‍यों न हम शंकर को नींद का इन्जेक्शन दे दें। वह सोया रहेगा और मेहमानों के सामने ही नहीं आयेगा।‘ शांतिप्रसाद को विमल की यह बात समय के हिसाब से ठीक लगी। मां ने भी सहमति दे दी। विमल खुद कम्पाउण्डरी का ट्रेनिंग ले ही रहा था इसलिए इन्जेक्शपन उसने खुद ही लगाने का निर्णय लिया। मेहमानोंों के आने का दिन था। पहले जैसी ही तैयारियां दोबारा की गई। शंकर को प्यार से खाना खिलाया गया और फिर विमल ने उसे नींद का इंजेक्शन दे दिया। कुछ देर तो शंकर हाथ-पैर मारता रहा फिर शांत होकर सो गया। विमल ने सूचना दी कि लड़के वाले निकल चुके हैं और कुछ ही देर मंे पहुंचने वाले हैं। सब तैयारियां पूर्ण थी। लेकिन उपरवाले को शायद कुछ और ही मंजूर था। शंकर उठ गया। शांतिप्रसाद ने विमल को डांटते हुए पूछा कि नींद का इंजेक्शन देने के बावजूद वह उठ कैसे गया ?
विमल भी परेशान हो उठा, बोला ‘बाबूजी मैंने इंजेक्शन दे दिया था और शंकर सो भी गया था। हां, शायद कम पावर का दिया था, इसलिये उठ गया। अब ऐसा करता हूं कि एक हाई पावर का इंजेक्शन और दे देता हूं।‘ कहते हुए उसने हाथो-हाथ दूसरा इंजेक्शन तैयार कर दिया। शांतिप्रसाद कुछ परेशान हो उठे।  विमल ने उनको निश्चिन्त करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता न करें बाबूजी!् इस इंजेक्शन से वह वापिस सो जायेगा, हां, यह जरूर है कि अब शाम तक सोता ही रहेगा।‘‘ कहते हुए विमल शंकर के कमरे में गया। आधे सोते, आधे जागते शंकर को एक इंजेक्शन और लगा दिया। कुछ ही पलों में शंकर सो गया। विमल ने उसके माथा सहलाया और बाहर निकला। ‘बाबूजी शंकर सो गया है, अब कोई चिंता की बात नहीं है।‘ विमल ने यह सूचना परिवार के सदस्यों को दी। यह सुनकर शांतिप्रसाद और परिवार ने राहत की सांस ली।
दरवाजे पर घंटी बजी। लड़के वाले आ गए थे। मेहमानों को बिठाया गया। शांतिप्रसाद ने उन्हे सभी के बारे में बताया और खास रूप से शंकर के बारे में भी ईमानदारी से बताया। परिवार सुसंस्कृत था। उन्‍होंने इसे उपर वाले की माया बताया। उन्हे सुमन पसंद आ गई और सभी ने एक दूसरे का मुंह मीठा किया। पंडित ने अगले महीने की बारह तारीख का शुभ मुहूर्त निकाला। लड़के वाले खुशी-खुशी विदा हुए। शांतिप्रसाद को ऐसा लगा जैसे एक बोझ उतर गया। रिश्तेदाारों  को फोन पर सूचना दी गई। बधाई की खबरों का आदान प्रदान होता रहा। इन सब कामों  में कब शाम हो गई किसी को पता ही नहीं चला। शाम को जब खाना बना तो शंकर को बुलाने के लिए आवाज लगाई। कोई जवाब नहीं आया।
‘शायद दवा का अभी भी असर है‘ एसा सोचते हुए विमल शंकर को संभालने गया। शंकर पलंग पर लेटा हुआ था। विमल ने उसे धीरे से सहलाया, ‘भैया...भैया।‘‘ शंकर ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। विमल ने उसकी नब्ज टटोली तो धक्क से रह गया। शंकर कभी ना खत्म होने वाली नींद सो चुका था।
थोड़ी देर में घर में कोहराम मच गया। सब शंकर की मौत के लिए अपने आप को जिम्मेदार मान रहे थे। आखिरकार समझदारी की बात की गई। घर की बात घर में ही रहे इस लिए शंकर की दौरा पड़ने से मौत नाते रिश्तेदारों को बताई गई। अगले दिन धुंधलते की ओट में जवान मृत्यू होने के कारण उसका अंतिम संस्कार  कर दिया गया।
शंकर शरीर से चला गया था किंतु परिवार के हर सदस्य के मन में वह स्थायी घर बना चुका था। शंकर की यादों के साये में सुमन का विवाह हुआ। वह अपने ससुराल चली गई। परिवार अभी भी शंकर को भुला नहीं पाया।
एक दिन रात शांतिप्रसाद सोने का उपक्रम कर ही रहे थे कि उन्हे शंकर के कमरे से खटखटाने की आवाज आई। वे हड़बड़ा कर उठ बैठे। दरवाजा खोला तो कुछ नहीं था। ऐसा रोज होने लगा। कभी चिल्लाहटें सुनाई देती तो कभी विमल का पलंग हिलने लगता। कभी मां की साड़ी आग पकड़ लेती तो कभी घर के सारे कपड़े उलट-पुलट हो जाते।
आखिरकार एक दिन परिवारजन इकट्ठे होकर शंकर के कमरे में गए। शांतिप्रसाद ने हाथ जोड़ा बोले, ‘‘बेटा, हमें माफ कर दो, हम तेरे अपराधी हैं, तु हमारा बेटा है और सदैव रहेगा। देख, तु बड़ा बेटा है, तुझे परिवार का ख्याल रखना है‘ शांतिप्रसाद प्रसाद ने अपनी बात पूरी की ही नहीं थी कि विमल लहराने लगा। सब सन्न रह गए। अचानक ही विमल ने शंकर की आवाज में बोलना शुरू कर दिया ‘बाबूजी, मेरे साथ ईश्वर ने अन्याय किया और आप लोगों तो उससे भी बड़ा अपराध कर डाला, मैं जो करता था, क्या उस पर मेरा वश था ? आपने मुझे परिवार से अलग कर डाला। बाबूजी, मैं भटक रहा हूं, मेरी गति नहीं हुई है। मैं अकाल मौत मारा गया हूं। मुझे वापिस परिवार में स्थान दो।‘‘ ऐसा कहते हुए विमल बेसुध होकर गिर पड़ा। शांति प्रसाद, उनकी पत्नी हतप्रभ हो देर तक यूं ही खड़े रहे।
अतृप्त आत्माओं के किस्से तो शांतिप्रसाद ने खूब सुने थे। अनेक घरों में अपने पित्तरों, अतृप्त पारिवारिक सदस्यों के लिये ‘थाण‘ या ‘नाडा‘ स्थापित किये जाने की बातें उन्होंने सुनी थी। किंतु आज तो उनका साक्षात स्वंय के पुत्र की अतृप्त आत्मा से हो गया। वह हकबका गये। बहुत देर तक विचार शून्य बैठे रहे। परिवार नैतिकता के कटघरे में था। फिर विचारों ने आत्मा के दरवाजे खोलना शुरू किया। देर तक परिवार के सदस्य शंकर की मृत्यू के लिये अपने आप को कोसते रहे। फिर सबने मन कड़ा किया। कुछ निश्चय किया । पहले तो शंकर की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवाया। इसके बाद शंकर के कमरे में ही उसका स्थान बनाया गया। इस स्थान पर रखे दीपक के स्वयमेव प्रज्ज्वलित होते ही परिवार जान गया कि शंकर फिर से परिवार में आ गया है। ना होकर भी शंकर आज परिवार में है। जिस स्थान पर वह रहता है उसे शंकर का थाण या नाडा कहा जाता है।
शांतिप्रसाद के परिवार में अब आने वाला हर मेहमान अब पहले शंकर के थाण  के दर्शन करता है।
कॉपीराईट संजय पुरोहित 

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