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Sunday, August 14, 2016

अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव --- 2
    दिलेरी से मैदान में डटी हिलेरी

      हिलेरी क्लिंटन। पूरा नाम हिलेरी डायेन रोढम क्लिंटन। उम्र 69 वर्ष। अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की अधिकत उम्‍मीदवार। आम तौर पर हम हिलेरी क्लिंटन को अमेरिका के पूर्व राष्‍ट्रति बिल क्लिंटन की पत्‍नी के रूप में ही जानते हैं। हिलेरी क्लिंटन का परिचय इससे कहीं अधिक और कई माईनों में तो बिल क्लिंटन से अधिक प्रभावशाली भी है। 26 अक्‍टूबर 1947 में जन्‍मी हिलेरी अमेरिका के इलीनॉय प्रान्‍त की निवासी है। हिलेरी ने वर्ष 1969 में वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय से पोलिटिकल साईन्‍स में पोस्‍ट ग्रेजुएड डिग्री प्राप्‍त की। इसके बाद वर्ष 1973 में हिलेरी ने येल लॉ स्‍कूल से वकालत की पढाई पूरी की। इसके बाद अमेरिका के अरकांसास प्रोविन्‍स में वकालत आरम्‍भ की। वेलेस्‍ले विश्‍वविद्यालय में हिलेरी की मुलाकात बिल क्लिंटन से हुई। दोनों ने 1975 में विवाह कर लिया। इनके एक पुत्री चेल्‍सा क्लिंटन है जिसका जनम 1980 में हुआ। हिलेरी एक कठोर तर्कशास्‍त्री है। विषयों की गहरी समझ और तार्किक पकड के बाद ही जुबान खोलने वाली महिला है। वकालत के पेशे में आने के कुछ ही समय बाद वह बेहद प्रभावशाली वकीलों की सूची में शामिल हो गई। अमेरिका के सर्वकालिक प्रभावी वकीलों की सूची में हिलेरी क्लिंटन का नाम शामिल हुआ। सफलता की सीढियां हिलेरी ने धीरे धीरे किंतु ठोस रूप से चढी। हिलेरी न्‍यूयॉर्क प्रोविन्‍स की कनिष्‍ठ सेनेटर रह चुकी है। अमेरिका के बयालिसवें राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में वर्ष 1993 से 2001 तक हिलेरी अमेरिका की प्रथम महिला रही। इससे आगे बढते हुए वर्ष 2001 में हिलेरी ने अमेरिकी सेनेटर का कार्य आरम्‍भ किया। हिलेरी हमेशा से दिलेरी के लिये जानी जाती रही है। येल लॉ स्‍कूल में अपने पहले ही भाषण से वह सुर्खियों में आई। अमेरिकी राष्‍ट्रपति की पत्‍नी के रूप में बिल क्लिंटन-मोनिका लेंविस्किी प्रेम संबंधों पर अमेरिका सहित पूरे विश्‍व में जब गॉसिप का माहौल गरम था, उसी चटखारों से भरी गरमी में सबसे ज्‍यादा झुलसी महिला कोई थी तो वह हिलेरी क्लिंटन थी। हिलेरी ने अपने छलिये और विश्‍वासघाती पति राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन को माफ कर उस दौर में अमेरिकी समुदाय में अपना कद बहुत उंचा उठा लिया।
      वर्ष 2008 आया। डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्‍ट्रपति पद के लिये उम्‍मीदवार का चयन होना था। हिलेरी क्लिंटन दौड में सबसे आगे थी। सब कुछ ठीक चलता रहा किंतु धीरे धीरे मालूम होने लगा कि अपनी खुद की पार्टी में ही हिलेरी को लेकर एक राय नहीं थी। अन्‍तत: हिलेरी क्लिंटन ने हवा का रूख पहचाना और अपनी उम्‍मीदवारी छोड दी। इसका निर्णय हुआ बराक ओबामा को डेमोक्रेटिक पार्टी के रूप में उम्‍मीदवार बनाने के रूप में। 5 जून को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपने उम्‍मीदवार की घोषणा की अपनी राजनीति में कूटनीति की पहली शिकस्‍त मिली हिलेरी क्लिंटन को। अमेरिकी राजनैतिक दलों की की ये सबसे बडी खूबसूरती है कि अपनी पार्टी के भीतर आगे बढने के लिये चुनाव लडो। जीत जाओ तो ठीक, नहीं तो पराजय का लेबल चिपका कर दूसरे दलों की चौखट पर नाक मत रगडो। पार्टी तो अपनी ही है। पूरे तन-मन-धन से पार्टी के प्रत्‍याशी को जिताने में जुट जाओ। हिलेरी क्लिंटन ने ऐसा किया भी।  'यस वी केन' के साथ आशा का संचार करते हुए बराक ओबामा अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुने गये। हिलेरी की काबिलियत को ओबामा भलि भांति जानते, समझते थे। वह अमेरिकी विदेशमंत्री बनाई गई। अमेरिकी विदेश मंत्री का कार्य और पद बेहद गंभीर और महत्‍व का माना जाता है। पूरी दूनियां में मची उथल-पुथल के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी हितों के लिये विभिन्‍न देशों, समुदायों, शक्तिकेन्‍द्रेां, उग्रवादी दलों, बागियों से वार्ताएं जारी रखी। घोर विरोधी गुटों जैसे इजरायल और फिलीस्‍तीन जैसों को भी शांति वार्ता हेतु टेबल पर बिठाया। अफगानिस्‍तान, इराक से अमेरिकी सैनिको की कुशल और समयबद्ध वापसी तो कराई ही साथ ही आतंकवादी गुटों पर अमेरिकी कहर जारी रखा। नाटो देशों ने मजहबी मुखौटा लगाये बर्बर आतंकी संगठनों एक भी दिन चैन से नहीं बैठने दिया है, इसके पीछे हिलेरी क्लिंटन की रणनीति भी बहुत हद तक श्रेय की हकदार रही है। सीरिया, लेबनान, इराक में चल रहे ग़हयुद्धों के जिम्‍मेदार आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में अमेरिका कुछ हद तक कामयाब रहा है। हिलेरी क्लिंटन की सबसे बडी कामयाबी इरान के साथ अमेरिका के संबंधों में सुधार होना और साम्‍यवाद के अंतिम कुछ अवशेषों के साथ जीवित देश क्‍यूबा के साथ दोस्‍ताना संबंध स्‍थापित करना रहा। कुछ ऐसे मोर्चे भी रहे जिनमें हिलेरी क्लिंटन असफल रही। साथ ही पाकिस्‍तान जैसे विश्‍व के कालीन पर कलंक की तरह लगे धब्‍बे को हिलेरी भी नहीं सुधार सकी। अमेरिका के साढे तीन हजार निर्दोषों के कातिल ओसामा बिन लादेन को गोद में छिपाये पाकिस्‍तान को करारा चांटा तब पडा, जब उसकी सेना के गढ में ओसामा को अमेरिकी सैनिकों ने मौत की गोदी में सुला दिया। हिलेरी के प्रयासों के बावजूद पाकिस्‍तान अमेरिका की बिगडैल पैदाईश से बिगडा ही बना रहा। हिलेरी क्लिंटन पाकिस्‍तान से आतंकी समूह हक्‍कानी नेटवर्क को खत्‍म करवाने में भी असफल रही। रूस और अमेरिका से अमेरिकी रिश्‍ते उबड-खाबड बने रहे। उत्‍तर कोरिया अमेरिका को आंखें दिखाता रहा। तालीबान फिर से सिर उठाने लगा है। इराक में शांति बहाली अभी दूर की कौडी है। आईएसआईएस, बाको हरम जैसे बर्बर मजहबी आतंकी पिशाचों पर अमेरिका पार नहीं जा सका है। इन तमाम असफलताओं के बावजूद भी इस बात में रत्‍ती भर शक की गुंजाईश नहीं रही कि हिलेरी क्लिंटन शातिर कूटनीतिज्ञ और बेहद सक्रिय विदेश मंत्री रही जिसने दुनियां भर में मच रही उथल-पुथल के बीच भी संतुलन की अपनी कोशिशों में कमी नहीं होने दी। दुनियाभर के नीति-नियंताओं ने इस बात को माना भी। यह बात पिछले दो तीन सालों से निरन्‍तर उठती रही कि आगामी राष्‍ट्रपति चुनावों में हिलेरी के बराबर दूसरा योग्‍य और समर्थ उम्‍मीदवार हो ही नहीं सकता।
      और ऐसा हुआ भी। अमेरिका के लोकतंत्र के 227 वर्षों के इतिहास में ऐसा हुआ कि किसी मुख्‍य दल ने एक महिला को सर्वोच्‍च पद के लिये नामांकित किया। अपनी ही पार्टी में हिलेरी की आरम्भिक तौर पर विरोधी रही सेंर्डस ने ही हिलेरी के पक्ष में नामांकन कर पार्टी में विरोध की खबरों पर विराम लगा दिया। हिलेरी क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्‍मीदवार बनी और इतिहास रच दिया। हिलेरी क्लिंटन की काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान राष्‍ट्रपति ओबामा ने यह वक्‍तव्‍य दिया कि, ''मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि हिलेरी मुझसे और बिल क्लिंटन से कहीं अधिक योग्‍य है।''

      ये बातें यह तर्क स्‍थापित करती है कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद के लिये एक अच्‍छा विकल्‍प हो सकती है। अपनी पार्टी की उम्‍मीदवारी का एक बडा पडाव हिलेरी ने सफलता के साथ पार कर लिया है किंतु यह है तो एक पडाव मात्र ही। असली टक्‍कर तो अब है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्‍मीदवार डोनाल्‍ड ट्रम्‍प से। हिलेरी क्लिंटन पारम्पिरिक अमेरिकी लोगों की पहली पसंद है। हिलेरी की नीतियों, बातों, विचारों और डेमोक्रेटिक पार्टी की विचाराधारा के प्रति लोगों में विश्‍वास और आस्‍था नजर आती है। असली चुनौती अमेरिकी राष्‍ट्रवाद की धारा के पुन: उठने से ट्रम्‍प के प्रति बढ रहे समर्थन को रोकने की है। ट्रम्‍प, हिलेरी के कार्यकाल के दौरान की गई गलतियों, असफलताओं को प्रचारित कर अपने पक्ष में समर्थन जुटाने की जुगत में लगे हैं। निजी ईमेल से हिलेरी के पत्र व्‍यवहार को देश की सुरक्षा के सबसे बडे खतरे का डर दिखा रहे हैं। मुकाबला काफी रोचक बन रहा है। एक के बाद एक होने वाली रैलियों में हिलेरी के समर्थन में उमड रहे लोगों के हुजूम से हिलेरी उत्‍साहित हैं। उनके पति बिल क्लिंटन सभी प्रान्‍तों में घूम घूम कर अपनी पत्‍नी के लिये समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। हिलेरी क्लिंटन को सबसे बडा साथ और समर्थन वर्तमान राष्‍ट्रपति बराक ओबामा से मिल रहा है। ट्रम्‍प नीतियों को पूरी तरह बदलने के लिये संकल्‍प‍बद्ध होने की बात कह रहे हैं तो हिलेरी संभल संभल कर विभिन्‍न विषयों पर स्‍थापित नीतियों को आगे बढाने की समर्थक है। अमेरिकी जनता दोनों की पक्षों को सुन रही है। समर्थन भी दे रही है, किंतु मन में क्‍या ठान कर बैठी है, इसका भान अभी किसी को नहीं है। अमेरिका ही नहीं बल्कि विश्‍व भर में ये चुनाव चर्चा का केन्‍द्र है। इसके बारे में उत्‍सुकता जहां देशों के राजनेताओं में है वहीं अवश्‍य ही विश्‍व शांति के लिये खतरा बने गुट भी प्रक्रिया को टकटकी लगाये देख रहे होंगे। देखना है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति पद चुनाव का उंट किस करवट बैठता है। अभी तो बस, दोनों उम्‍मीदवारों के भाषणों, नीतियों पर अमेरिकी जनता की पैनी निगाह ही थाह लेने में जुटी है। 

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