*नीलामी**लघुकथा*संजय पुरोहित
रंगों की नीलामी पूरी हुई। पार्टियां मालिक, रंग गुलाम हुए। दलों ने अपने-अपने रंग चुने। पुरानी पार्टी को 'हरे' में वोट दिखे। देशभक्तों ने 'केसरिया' रंग में कुर्सी देखी। क्रांति के वहम वाली पार्टी ने 'लाल' चुना। पिछड़ों के तमगे वाली पार्टी ने 'नीले' पर दाव ठोका।
सब रंग बिक गये, सिवाय 'श्वेत' के। मार्केट में उसकी डिमाण्ड ही नहीं थी।
सब रंग बिक गये, सिवाय 'श्वेत' के। मार्केट में उसकी डिमाण्ड ही नहीं थी।
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