*जी...।*लघुकथा*संजय पुरोहित*
‘‘बधाई हो! हम समधी हुए। आपकी बिटिया अब हमारी बहूरानी हुई। मैं शीघ्र कोई अच्छा मुहूर्त निकलवाता हूँ।"
‘‘जी! जी!!"
‘‘देखिये, हमें ना तो कार चाहिए, ना मोटर साईकिल ना फ्रिज-टीवी। भगवान का दिया सब कुछ है।‘‘
‘‘जी !"
‘‘मैं तो चाहूंगा कि आप इन सब के बदले कैश ही दे दें।"
‘‘जी ??!!"
"जी।"
"..जी..।"
‘‘जी! जी!!"
‘‘देखिये, हमें ना तो कार चाहिए, ना मोटर साईकिल ना फ्रिज-टीवी। भगवान का दिया सब कुछ है।‘‘
‘‘जी !"
‘‘मैं तो चाहूंगा कि आप इन सब के बदले कैश ही दे दें।"
‘‘जी ??!!"
"जी।"
"..जी..।"
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