मजा*लघुकथा*संजय पुरोहित
बेटे को गली में पतंग लूटते देख, साहब डांटते हुए बाजार ले गये। पतंग-मांझा दिलाते नसीहत दी-कभी पतंग लूटने के लिए नहीं भागेगा। बेटे ने सिर हिलाया।
कुछ दिनों बाद साहब 'मोटा हाथ' मारकर ब्रीफकेस में डाल घर लौटे। देखा, बेटा फिर गली में पतंग लूट रहा था। साहब डांटते बोले, ‘‘पतंग-मांझा दिलवाया था।अब क्यों पतंग लूटने के लिए भागता है ?‘‘
‘‘पापा, जो मजा लूटने में है, वो खरीद कर उड़ाने में नहीं है।‘‘ बेटे ने उत्तर दिया। साहब कुछ न बोले। ब्रीफकेस को कस कर पकड़, घर के अन्दर हो लिये।
कुछ दिनों बाद साहब 'मोटा हाथ' मारकर ब्रीफकेस में डाल घर लौटे। देखा, बेटा फिर गली में पतंग लूट रहा था। साहब डांटते बोले, ‘‘पतंग-मांझा दिलवाया था।अब क्यों पतंग लूटने के लिए भागता है ?‘‘
‘‘पापा, जो मजा लूटने में है, वो खरीद कर उड़ाने में नहीं है।‘‘ बेटे ने उत्तर दिया। साहब कुछ न बोले। ब्रीफकेस को कस कर पकड़, घर के अन्दर हो लिये।
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