संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

*रिश्ता*लघुकथा - संजय पुरोहित
'‘देख सरफू, तेरा अब्बू मेरा जिग़री था। हम दोनों लंगड़े हमेशा साथ रहे। ऊपर वाले ने तुझे भी लंगडा..खैर, चिंता न करना। अपना भूख का रिश्ता है, समझा ?‘‘ कैलाश बोला। सरफू ने सिर हिलाया।
‘‘आज शनिवार है। शनिचर मंदिर में भरपेट खाने को मिलेगा। कल इतवार है। सुबह गिरजे पहुंच जाना। वहां कुछ मिल ही जायेगा।‘‘कैलाश ने समझाया।
‘‘सोमवार को पुलिया वाले शिव मंदिर में चलेंगे, मंगल को चौराहे वाले हनुमान मंदिर में। बुध को किले वाले गणेश मंदिर में और गुरूवार..।‘‘कैलाश सोचने लगा।
'‘..गुरूवार यानि जुम्मेरात, जुम्मेरात को तो सैयद साहब का उर्स शुरू होगा, वहीं चलेंगे।‘‘ सरफू चहका।
‘‘और जुम्मे पर..?" कैलाश ने पूछा।
"मस्जिद।‘‘ दोनों हंसते हुए बोले और अपनी-अपनी बैसाखियों को संभाला।

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