*खट्टे अंगूर**लघुकथा**संजय पुरोहित
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लोमड़ी कूदी। फिर कूदी। फिर, फिर कूदी। अंगूर तक नहीं पहुंच पाई। चिढ़ कर बोली, "अंगूर खट्टे हैं।" फिर एक गधा आया। अंगूर देखे । वह उछला। एक झपट्टे में अंगूर के गुच्छे को मुँह में भर लिया। अंगूर वाकई खट्टे थे। गधे के मुंह से निकला ,"अंगूर खट्टे हैं।"
लोमड़ी दूर से देख रही थी। हंस कर बोली, "गधा कहीं का।" गधा गंभीरता से सोचने लगा।
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लोमड़ी कूदी। फिर कूदी। फिर, फिर कूदी। अंगूर तक नहीं पहुंच पाई। चिढ़ कर बोली, "अंगूर खट्टे हैं।" फिर एक गधा आया। अंगूर देखे । वह उछला। एक झपट्टे में अंगूर के गुच्छे को मुँह में भर लिया। अंगूर वाकई खट्टे थे। गधे के मुंह से निकला ,"अंगूर खट्टे हैं।"
लोमड़ी दूर से देख रही थी। हंस कर बोली, "गधा कहीं का।" गधा गंभीरता से सोचने लगा।
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