संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

**फिर कहां ?**लघुकथा**संजय पुरोहित
जुलूस में नारा बुलंद हुआ, 'लोकतंत्र में गुण्‍डागर्दी'
जोश भरे सैकड़ो बोले,"नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।"
माथे पर गमछा धरे, दांत कुचरते एक मिनख ने पूछा, "तो फिर कहां चलेगी ?"
उसको हाशिये पर धकेल, जुलूस आगे बढ़ गया।

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