संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

*कहानी ख़त्म:* लघुकथा *संजय पुरोहित
"आओ आओ युवा लेखक जी। बैठो। मैंने तुम्हारी भेजी कहानी पढ़ी। बुरा ना मानना भाई, इसमें काफी कमियां है। शिल्प का अता-पता नहीं है। कथ्य स्पष्ट नहीं है। नरेशन की तो अति ही हो गयी है। प्रवाह नज़र नहीं आता। माफ़ करना भाई, इसे कहानी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।"
"कोई बात नहीं श्रीमन, परंतु जिस कहानी की आप बात कर रहे है, वो मेरी नहीं, मुंशी प्रेमचंद की है। अच्छी लगी तो आपको भेज दी। अपनी कहानी तो मैं अपने साथ लाया हूँ।" 
कहानी ख़त्म।

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