*यू-टर्न*लघुकथा*संजय पुरोहित
"देखिए, मुझे सम्मान की कोई इच्छा नहीं। बहुत हो गया सम्मान, अब तो चिढ़ सी लगती है।" साहित्यकार बोले।
"श्रीमान्जी, हम आपकी भावनाओं का आदर करते हैं। कृपा कर एक सुयोग्य नाम तो सुझा दीजिये, जिन्हे ये सवा दो लाख का पुरस्कार दिया जा सके।" संस्था प्रतिनिधि ने निवेदन किया।
"हैं !! सवा दो लाख ?!!? आप लोगों के आग्रह ने मुझे भावुक कर दिया है। मैं अपनी स्वीकृति देता हूं। कब रख रहे है समारोह ?" अब साहित्यकार के शब्दों में मिसरी का पुट था। संस्था प्रतिनिधि निहाल हो गए।
"श्रीमान्जी, हम आपकी भावनाओं का आदर करते हैं। कृपा कर एक सुयोग्य नाम तो सुझा दीजिये, जिन्हे ये सवा दो लाख का पुरस्कार दिया जा सके।" संस्था प्रतिनिधि ने निवेदन किया।
"हैं !! सवा दो लाख ?!!? आप लोगों के आग्रह ने मुझे भावुक कर दिया है। मैं अपनी स्वीकृति देता हूं। कब रख रहे है समारोह ?" अब साहित्यकार के शब्दों में मिसरी का पुट था। संस्था प्रतिनिधि निहाल हो गए।
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