*पिता*लघुकथा*संजय पुरोहित
रात के एक बज रहे थे। वह आहिस्ता से दरवाजा खोल घर में घुसा। देखा, पिता मूढ़े पर बैठे, अधजगे उसका इंतजार कर रहे थे। उसे देख, पिता को तसल्ली हुई। वे अपने कमरे में चले गये। वह झुंझलाया, पिताजी अभी भी उसे छोटा बच्चा समझते हैं !!
कुछ वर्ष बाद....
आधी रात गुजर चुकी थी। उसका बेटा घर नहीं लौटा था। उसकी आंखों में चिंता के भाव थे। नींद गायब। रात के एक बज रहे थे।
कुछ वर्ष बाद....
आधी रात गुजर चुकी थी। उसका बेटा घर नहीं लौटा था। उसकी आंखों में चिंता के भाव थे। नींद गायब। रात के एक बज रहे थे।
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