*दृष्टि*लघुकथा*संजय पुरोहित
पैसेंजर रेल रेंग रही थी। एक ग्रामीण मासूम किशोर रामचरितमानस पढ़ भाव-विभोर था। अहिल्या उद्धार प्रसंग पढ़ दोनों हाथ उठाते बोल उठा, "जय श्री राम।"
यह सुनते ही कम्पार्टमेंट में शांति छा गई। किशोर सहम गया। सब की नज़रें उस पर थी। लाल चश्मे वाले एक बढ़ऊ ने उसे हिकारत से घूरा। भगवा दुपट्टा डाले एक युवक ने उसे गर्व से देखा। एक बुढ़िया ने नेहभाव से निहारा। दाढ़ी-टोपी वाले अधेड़ ने उसे भयभीत हो देखा।
किशोर असमंजस से अपनी त्रूटि ढूंढने लगा !
यह सुनते ही कम्पार्टमेंट में शांति छा गई। किशोर सहम गया। सब की नज़रें उस पर थी। लाल चश्मे वाले एक बढ़ऊ ने उसे हिकारत से घूरा। भगवा दुपट्टा डाले एक युवक ने उसे गर्व से देखा। एक बुढ़िया ने नेहभाव से निहारा। दाढ़ी-टोपी वाले अधेड़ ने उसे भयभीत हो देखा।
किशोर असमंजस से अपनी त्रूटि ढूंढने लगा !
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