संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

*जमाई*लघुकथा*संजय पुरोहित*
साहब ने महसूस किया कि कॉन्‍ट्रेक्‍ट पर लगा लड़का बहुत मेहनती है। जल्दी ऑफिस आना, देर तक काम करना। वाह। परमानेंटों को तो शर्म आनी चाहिये। इतनी तनख़्वाह लेते हैं, धैले का काम नहीं करते। लड़के से प्रभावित साहब ने बड़े साहब से सिफारिश की। बड़े साहब ने लड़के को देखा। पहले प्रोबेशन पर रखा, फिर परमानेंट कर दिया।
साहब ने महसूस किया, अब लड़का देर से ऑफिस आने लगा। हाज़री लगा कर गायब। चाय पीने जाता, तो घंटों नहीं आता। सीट पर टिकता ही नहीं।
साहब भूल गये थे कि अब वह 'जमाई' बन गया है।

No comments:

Post a Comment