संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

रिक्त स्थान**लघुकथा**संजय पुरोहित 
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प्रकाशक ने पुस्तक की प्रथम प्रति लेखक को सौंपी। लेखक ने सरसरी नजर से पन्ने पलटे। एक पृष्ठ में दो गद्यांशों के मध्य अनावश्यक रिक्त स्थान छूटा रह गया। लेखक ने आंखें तरेरी। प्रकाशक ने क्षमा मांगते हुए पुस्‍तक चर्चा न्यौती।
दो युवाओं ने परचे पढ़े। दोनों ने रिक्त स्थान को त्रुटि बताया। अब बारी थी लेखक की। वे बोले, ‘‘काश पत्रवाचक 'रिक्त स्थान' का अर्थ समझ पाते ! ऊपर वाले गद्यांश को पढ़ कर पाठक कुछ मनन करे, फिर अगले गद्यांश पर आएं, इसी का संकेत है यह 'रिक्त स्थान'।‘‘ पत्रवाचक हतप्रभ! लेखक ने एक दृष्टि प्रकाशक पर डाली। मुस्कुरा रहा था वह।

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