संजय के इस ब्‍लॉग में आपका स्‍वागत है. मेरा सिरजण आप तक पहुंचे, इसका छोटा सा प्रयास।

Wednesday, October 4, 2017

*अडमिसन*लघुकथा*संजय पुरोहित
'बाऊजी, हम बोल रहे हैं.दिल्‍ली से..तुहार बेटा। चरणधोक बाऊजी'
'गंगा मईया की किरपा रहे। बोलो, अडमिसन हुवा के नाही ?'
'ना बाऊजी...।' 
'गए बरस हम बोले न, अऊर पढाई करो, मेहनत करो...पर ना...हमरी बात तो फटा दूध है, सो बहा दिये गंगा मईया मा..'
'बाऊजी, हम मेहनत किये। बहुत किये। सौ परसेंट लाये हैं बाऊजी तब भी ना हुआ..।'
'का बबुआ ? सौ परसेंट ?
'हां बाऊजी, अब इससे ज्‍यादे होते ही नहीं तो हम का लाते ?'
'.......बबुआ। थूक अइसी जूनिवरसीटी पर। थूक रजधानी पर। मार लतिया मोटी पंचायत पर। डाल मिट्टी ससुरे सिस्‍टम पर। आजा। लौट आ बबुआ। गंगा मईया कोनू मारग निकालेगी।'
'हां बाऊजी। हम आ रहे हैं..।'

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